अक्सर खानपान में गड़बड़ी और खराब लाइफस्टाइल के कारण पाचन तंत्र में कई प्रकार की समस्याएं होने लगती हैं। हम अक्सर खानपान में कुछ गलतियां कर देते हैं। इसके कारण हमारी आंत में भोजन चिपक जाता है। बोवेल मूवमेंट सही नहीं हो पाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इन गलतियों के कारण कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर(colorectal cancer) क्या है और किन वजहों (common mistakes that cause colorectal cancer) से यह होता है। यह जानने के लिए हमने बात की पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में एसोसिएट डायरेक्टर( सर्जिकल ओन्कोलोजी) डॉ. पियूष कुमार अग्रवाल से।
डॉ. पियूष बताते हैं, ‘कोलन और रेक्टम मिलकर बड़ी आंत बनाते हैं। पाचन तंत्र में ये दोनों अंग मुख्य भूमिका निभाते हैं। अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर कोलन या रेक्टम की अंदरूनी परत पर वृद्धि के साथ शुरू होता है। इन्हें पॉलीप्स (Polyps) कहा जाता है। जरूरी नहीं है कि सभी पॉलिप्स कैंसर ही हों। कैंसर में बदलने की संभावना पॉलीप्स के प्रकार पर निर्भर करती है।
कोलोरेक्टल कैंसर(colorectal cancer) कोलन (Colon) या मलाशय(Rectum) में शुरू होता है। यदि कैंसर कोलन में होता है, तो कोलन कैंसर(Colon cancer) कहलाता है। रेक्टम में रेक्टल कैंसर(Rectal Cancer) हो सकता है। कोलन कैंसर और रेक्टल कैंसर में काफी समानताएं पाई जाती हैं। इसलिए दोनों को मिलाकर कोलोरेक्टल कैंसर कहा जाता है।’
डॉ. पियूष बताते हैं, ‘रेड मीट कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम बढ़ा देता है। हम रेड मीट को हाई टेम्प्रेचर पर पकाते हैं, तो नाइट्राइट्स प्रोडूस होते हैं। ये शरीर में एन-नाइट्रोसो कंपाउंड बना सकते हैं। यह रसायन कैंसर के जोखिम को बढा देता है।’ प्रोसेस्ड मीट में यह खतरा और अधिक बढ़ जाता है।
भोजन में फाइबर की कमी के कारण पाचन तंत्र प्रभावित हो सकता है। इससे आंतों में दिक्कत होना लाजिमी है। कम फाइबर वाले आहार के कारण हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल, कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
डॉ. पियूष बताते हैं, ‘जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज है, उनमें सामान्य लोगों की तुलना में कोलन कैंसर विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। डायबिटीज रहने पर कोलन कैंसर ट्रीटमेंट भी मुश्किल हो जाता है।’
कई रिसर्च बताते हैं कि शरीर में बहुत अधिक फैट जमा होने या मोटापे से कोलन और रेक्टम के कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
यदि आपको धूम्रपान या शराब पीने की आदत है, तो सावधान हो जाएं। इसके कारण कोलन में पॉलीप्स विकसित होने लगते हैं। ये पॉलीप्स कैंसर के जोखिम को बढ़ा भी सकते हैं।
सामान्य लोगों की तुलना में इन्फ्लेमेटरी बोवेल डिजीज के रोगियों में कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा अधिक रहता है। अध्ययन भी बताते हैं कि किसी व्यक्ति को यदि 30 साल तक इन्फ्लेमेटरी बोवेल डिजीज रहा है, तो उनमें कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम 7 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
यदि आपके परिवार में किसी को कोलोरेक्टल कैंसर है, तो आपके होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
आंत्र की आदतों में बदलाव(Change in bowel habits)
दर्द के साथ-साथ मल में खून (Blood in stool) आना
वजन घटना (Weight loss)
थकान (Fatigue)
डॉ. पीयूष कहते हैं, ‘ कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज हो सकता है। सर्जरी(surgery), कीमोथेरेपी(chemotherapy) और विकिरण(radiation) के माध्यम से कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज किया जा सकता है। सर्जरी में ज्यादातर मामलों को लैप्रोस्कोपिक (Laparoscopic) रूप से किया जा सकता है। कुछ मामलों में साइटोरिडक्टिव सर्जरी(cytoreductive surgery) और एचआईपीईसी(HIPEC) किया जाता है।’