कोविड-19 (Covid-19) ने हमारे समाज को पिछले दो वर्षों में झिंझोड़ डाला है, बीमारियां बढ़ीं हैं और मृत्यु दर में भी वृद्धि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 2021 वैश्विक टीबी रिपोर्ट के अनुसार, कोविड महामारी (Covid-19 Pandemic) की वजह से, एक दशक से अधिक की अवधि में तपेदिक (Tuberculosis) से होने वाली मौतों के मामले भी बढ़े हैं।
इस रिपोर्ट से यह उजागर हुआ कि 2019 के मुकाबले, 2020 में तपेदिक का निदान और इलाज घटा। जिसके परिणामस्वरूप, इससे होने वाली वाली मौतों के मामलों में बढ़ोतरी हुई।
मृत्यु दर में एकाएक होने वाली इस तेज़ी का कारण टीबी (TB) सेवाओं तक पहुंच में व्यवधान तथा टीबी के इलाज के लिए उपलब्ध संसाधन को कोविड-19 के लिए पुनर्आबंटन रहा है।
दूसरा प्रमुख कारण, कोविड19/टीबी कोइंफेक्शन (Co-infection) के निदान में देरी है। देश भर में लगे लॉकडाउन (Lockdown) और कोविड संक्रमण (Covid-19 infection) की आशंका के चलते अधिकांश अस्पतालों में बाह्य रोगियों की संख्या में बड़े पैमाने पर कमी आयी। जिससे तपेदिक के शीघ्र निदान की राह में बाधा पहुंची।
इसके अलावा, देशभर की लैबोरेट्रीज़ भी कोविड जांच के लिए ज्यादा तत्पर थीं। ऐसे में टीबी की जांच एवं निदान को पीछे धकेल दिया गया।
एक अन्य अध्ययन में यह भी सामने आया कि एक-तिहाई कोइंफेक्शन मरीज़ों में टीबी से पहले कोविड-19 का पता चला था। इसका कारण कोविड-19 के गंभीर लक्षणों और समाज में व्याप्त डर को बताया जा रहा है। क्योंकि उस दौर में हर बुखार का इलाज कोविड-19 इंफेक्शन मानकर किया जा रहा था।
भारत की रिपोर्टों के मुताबिक, टीबी से 2019 में 26.4 लाख मरीज़ संक्रमित हुए थे और इसके चलते 4,50,000 लोग मौत की नींद सो गए थे। इसी तरह, विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ने 2020 में टीबी से मरने वाले करीब 25 लाख मरीज़ों का आंकड़ा दर्ज किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलनों के अनुसार 2021 और 2022 में टीबी से मौत के मुंह में समाने वाले मरीज़ों की संख्या अधिक हो सकती है। और भी चिंताजनक बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्तमान में करीब 41 लाख लोग टीबी के मरीज़ हैं, लेकिन उनके रोग का निदान नहीं हुआ है और न ही उनका मामला कहीं रिपोर्ट किया गया है।
साथ ही, भारत में मार्च 2020 के हाल के आंकड़ों से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि पिछले साल की तुलना में इस साल में बैसिलस कामेट ग्वेरिन वैक्सीन (BCG Vaccine) 2,60,000 कम बच्चों को वैक्सीन दी गई। भारत में, मल्टीड्रग रेजिस्टेंस और एक्सटेंसिव ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का जोखिम भी काफी अधिक है।
हाल के अध्ययनों में यह पाया गया कि कोविड-19 इंफेक्शन की वजह से तपेदिक का संक्रमण बढ़ा है। यह देखा गया कि मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लॉसिस बैक्टीरिया से संक्रमित हर व्यक्ति में रोग नहीं पनपता, लेकिन उसमें सुप्त तपेदिक संक्रमण पैदा हो जाता है। इस तरह के सुप्त रोग वाले लोगों में न तो कोई लक्षण दिखायी देता है और न ही वे रोग का आगे प्रसार करते हैं।
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लेकिन कोविड-19 से प्रभावित हो चुके मरीज़ों का इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ जाता है, जो शरीर में मौजूद सुप्त (निष्क्रिय) बैक्टीरिया को सक्रिय करता है। इसकी वजह से तपेदिक भी क्रियाशील हो जाता है। विभिन्न अध्ययनों में यह संभावना दिखायी दी है कि कोविड-19 से मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लॉसिस बैक्टीरिया सक्रिय हो जाता है। जिसके चलते कोविड-19 से उबरने वाले मरीज़ों में रोग अधिक गंभीर रूप से हमला बोलता है और रोग की गंभीरता तथा परिणामस्वरूप मृत्यु दर भी बढ़ सकती है।
एक अन्य आकलन यह भी है कि कोविड के इलाज के लिए कुछ खास दवाओं के बढ़ते प्रयोग से मौजूदा ट्यूबरकुलर इंफेक्शन के रोग में बदलने की रफ्तार तेज हुई है। कोविड के मौजूदा दौर और कोविड पूर्व दौर में, ट्यूबरकुलर कीमोथेरेपी का सही ढंग से अनुपालन नहीं करने की वजह से एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज़ों की संख्या बढ़ी है। एक अन्य पहलू जिसकी पड़ताल जारी है, वह यह है कि टीबी की वजह से कोविड-19 कितना गंभीर रूप ले सकता है।
भारत द्वारा 2025 तक टीबी का उन्मूलन करने का लक्ष्य कोविड-19 महामारी के चलते खतरे में पड़ गया है। अब इस स्थिति में सुधार के लिए घर-घर दौरा करना और आरंभिक मूल्यांकन और मरीज़ों के स्तर पर अनुपालन के लिए स्मार्टफोन टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा सकता है। सभी टीबी मरीज़ों की टैस्टिंग, ट्रेसिंग और मैनेजमेंट प्रक्रियाओं को पर्सनलाइज़ बनाने तथा टीबी के साथ कोविड-19 के कारगर तरीके से प्रबंधन के लिए नई उन्नत टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
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