मकोय से बन रही यह औषधि हो सकती है कोविड-19 का तोड़, शुरुआती लैब टेस्ट से बढ़ी उम्‍मीद

ऐसा नजर आ रहा है कि सोलेनियम निग्रम यानी मकोय कोविड-19 का कारगर उपाय हो सकता है।
शुरुआती परीक्षणों से यह उम्‍मीद जताई जा रही है कि मकोय कोविड-19 से मुकाबला कर सकता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
शुरुआती परीक्षणों से यह उम्‍मीद जताई जा रही है कि मकोय कोविड-19 से मुकाबला कर सकता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
टीम हेल्‍थ शॉट्स Published: 7 Sep 2020, 20:45 pm IST
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कोविड-19 के इलाज की तलाश कर रही शोधकर्ताओं की एक टीम का कहना है कि इस पौधे ने शुरुआती लैब टेस्ट पास कर लिए हैं। दिल्ली फार्मास्यूटिकल साइंस और रिसर्च यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दिल्ली के अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में मौजूद इस पौधे पर रिसर्च की है। दरअसल शोधार्थी इस पौधे पर रिसर्च मार्च से ही कर रहे थे।

मॉलिक्यूलर डॉकिंग स्टडीज में मकोय ने काफी आशा जनक परिणाम दिए हैं। मकोय के फल छोटे, काले बेरी जैसे होते हैं जिसे देश के कई भागों में खाया जाता है।

इस रिसर्च के अनुसार मकोय में मौजूद कंपाउंड्स, SARS-CoV-2 वायरस में मौजूद एंजाइम ACE2 के साथ बाइन्ड कर सकता है और वायरस को बढ़ने से रोकने की क्षमता रखता है।

यूनिवर्सिटी के वाईस चान्सलर प्रोफेसर रमेश के गोयल ने बताया, “हम कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एक फाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग तैयार करना चाहते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस सी आर बाबू, जिन्होंने अरावली बायोडाइवर्सिटी पार्क बनाया है, ने हमको आठ पेड़ों से सैंपल लेने में मदद की। उस वक्त हमें इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, उसकी पैथोजेनेसिस नहीं पता थी। इसलिए पहले हमने इस पर रिसर्च किया कि यह बीमारी शरीर पर कैसे प्रभाव डालती है।”

कोविड-19 से मुकाबले के लिए मकोय से औषधि तैयार की जा रही है। चित्र: शटरस्‍टॉक
कोविड-19 से मुकाबले के लिए मकोय से औषधि तैयार की जा रही है। चित्र: शटरस्‍टॉक

10 अप्रैल तक भारत में जो 206 केस रिपोर्ट हुए थे, उनके प्राप्त डेटा के अनुसार यह साफ था कि हृदय रोगियों, डायबिटिक मरीजों और हाइपरटेंशन के मरीजों में यह समस्या ज्यादा गंभीर है। इस बात की पुष्टि एलसेवीर डायबिटीज रिसर्च एंड क्लीनिकल प्रैक्टिस नामक जर्नल ने भी की। हालांकि अब तो यह तथ्य जग जाहिर है।

शोधकर्ताओं की टीम ने यह समझने की कोशिश की कि कैसे कोविड-19 शरीर के रेनिन एंजियोटेनसिन सिस्टम (RAS) से छेड़छाड़ करता है। RAS हमारे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है।

यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर जसीला मजीद बताती हैं, “किसी भी बीमारी की दवा खोजते वक्त हम मॉलिक्यूलर मॉडलिंग स्टडी से यह देखते हैं कि वायरस का केमिकल कंपाउंड बॉडी के साथ कैसे रिएक्ट करता है। मॉडलिंग में आया स्कोर हमें यह आइडिया देता है कि जो दवा हम बना रहे हैं वह कितनी असरदार होगी। अप्रैल के अंत तक यह साफ हो चुका था कि कोविड-19 SARS-CoV-2 से मिलता हुआ है। इसमें ACE-2 से मॉलिक्यूलर लिंक हैं और ओपन रीडिंग फ्रेम प्रोटीन (ORF8) एक सेरोलॉजिकल मार्कर है।”

यूनिवर्सिटी के एक अन्य एसोसिएट प्रोफेसर महावीर धोबी बताते हैं, “कोविड-19 से होने वाली सभी गंभीर समस्याओं जैसे साइटोकिन सर्ज और सूजन के लिए ACE2 ही जिम्मेदार है। दुर्भाग्यवश ACE2 की कोई ड्रग नहीं बना है। हमने पाया है कि मकोय में मौजूद कुछ कंपाउंड ACE2 से रिएक्ट करते हैं। कुछ अन्य ड्रग टेस्ट भी हो रहे हैं, लेकिन शुरुआती चरण में मकोय से बना ड्रग अन्य मौजूदा ड्रग्स से ज्यादा सफल है। हमारे अन्य साथी प्रोफेसर राजीव टोनक और अजीत ठाकुर इन परिणामों की पुष्टि के लिए काम कर रहे हैं।”

मकोय को आयुर्वेद में औषधीय पौधा माना गया है। चित्र: शटरस्‍टॉक

शुरुआती परिणामों के आधार पर यह माना जा सकता है कि बनने के बाद यह ड्रग सिम्पटम्स वाले मरीजों के लिये फायदेमंद होगा। इस रिसर्च के रिजल्ट जल्द ही जर्नल ‘रिव्यू इन कार्डियोवस्कुलर मेडिसिन’ में उपलब्ध होंगे।

काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) भी कोविड-19 के लिए एक फाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग बनाने के लिए प्रयासरत है।

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CSIR के डायरेक्टर जेनेरल शेखर सी मंदे बताते हैं, “यूएस FDA ने फाइटोफार्मास्यूटिकल को बोटानिकल्स के रूप में मंजूरी 2005 में ही दे दी थी। 2015 में DGCI के द्वारा भी यह पास कर दिए गए थे। लेकिन तब से कोई ट्रायल नहीं हुए थे। हम ACQH का ट्रायल कर रहे हैं जो इस वक्त दूसरे फेज में है। हमारा मानना है कि ACQH एंटीवायरल है।”

वह आगे बताते हैं, “फाइटोफार्मास्युटिकल्स मॉडर्न मेडिसीन से अलग काम करती हैं। इसमें किसी प्राकृतिक रूप में मौजूद कंपाउंड को इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह आयुर्वेद से भी अलग है। जहां मॉडर्न मेडिसीन सिर्फ एक केमिकल और एक टारगेट बीमारी के लिए बनती हैं, इसमें गाइडलाइंस मॉडर्न मेडिसीन की ही फॉलो होती हैं।”

“यह साइंस तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले समय में फाइटोफार्मास्यूटिकल दवाइयां पेन किलर या सपोर्टिव मेडिसीन की तरह इस्तेमाल होंगी। अभी मुख्य रूप से इनका प्रयोग होने में लम्बा समय लगेगा।

AIIMS के डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी की पुरानी हेड डॉ शोभा ब्रूर बताती हैं, “शोधकर्ता एंटीवायरस ढूंढ रहे हैं, लेकिन अभी इसमें समय लगेगा क्योंकि यह वायरस बहुत जल्दी बढ़ता है।”

ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डॉ वी जी सोमानी के अनुसार,”कुछ ड्रग्स पहले ही कोविड-19 के ट्रायल से गुजर रहे हैं। फाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग्स आयुर्वेद या अन्य चिकित्सा प्रणाली से काफी अलग हैं। यह केमिकल कंपाउंड पेड़-पौधों से लिये जरूर जाते हैं लेकिन इनका केमिकल और क्लीनिकल ट्रायल मॉडर्न मेडिसिन की तरह ही होता है।”

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