सोशल मीडिया की चकाचौंध से भरी दुनिया को ज्यादातर युवा सच मान बैठते हैं। दिनों दिन बढ़ने वाला फेम और फॉलोअर्स की बढ़ती हुई संख्या उन्हें खुशी देने लगती है। मगर फॉलोअर्स की संख्या में आने वाली गिरावट न केवल इंफ्लूएंजर की चिंता को बढ़ाता है बल्कि सुसाइड का कारण भी साबित हो सकता है। इसी कड़ी में इंफ्लुएंसर मिशा अग्रवाल की मौत का एक मामला सामने आया। इंस्टाग्राम पोस्ट में हुए खुलासे के अनुसार फेमस कंटेंट क्रिएटर मिशा अग्रवाल ने सोशल मीडिया फॉलोअर्स की कम होती संख्या के कारण आत्महत्या कर ली। इस बात का खुलासा उनके परिवार ने किया। उनके अनुसार मिशा (Misha Agarwal suicide) अपने करियर को लेकर डर और चिंता का सामना कर रही थी।
मिशा की बहन ने एक पोस्ट के ज़रिए बताया कि वो एक मिलियन फॉलोअर्स को हासिल करना चाहती थीं। मगर अप्रैल महीने की शुरूआत से ही फॉलोअर्स की संख्या कम होने से वो निराश रहने लगी थी। वो अंदर ही अंदर इस कदर टूट चुकी थी कि उसने बीती 26 अप्रैल को खुदखुशी करने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। दरअसल, मिशा सोशल मीडिया को जीवन का एकमात्र उद्देश्य मान चुकी थीं। सोशल मीडिया इंफ्लूएंजर मिशा अग्रवाल (Misha Agarwal suicide) एनएलबी की डिग्री हासिल कर चुकी थीं और पीसीएसजे की भी तैयारी कर रही थीं।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि युवा जीवन में बहुत जल्द बुलंदियों को छूना चाहते हैं। हांलाकि हर इंसान के जीवन की मोटिवेशन अलग अलग होती है। जहां कुछ पैसा कमाना चाहते हैं, तो कुछ फेम पाने की चाहत रखते हैं। युवा वर्ग बाहरी चकाचौंध को असल मानकर उसे अपने जीवन का आधार बना लेता है। दरअसल, जीवन में ज़रूरतें दो प्रकार की होती है बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल।
कुछ लोग जहां पैसा कमाना चाहते हैं, तो कुछ चाहते हैं कि समाज में उनकी अलग पहचान बने और लोग उसे पसंद करें। सामाजिक स्वीकार्यता न मिलने पर और लोगों से डिस्कनेकट हो जाने के कारण वो साइकोलॉजिकल ट्रामा के शिकार हो जाते है। ऐसे में जीवन में आने वाला ज़रा सा भी उतार चढ़ाव वो सहन नहीं कर पाते हैं। सोशल रिजेक्शन मिलने पर कुछ लोग सेल्फ हार्मिंग (Misha Agarwal suicide) होने लगते है। इसी के चलते लोगों में आत्महत्या के मामले देखने को मिलते हैं।
वे लोग जो साशेल मीडिया से जुड़े हुए हैं, उन्हें बदलते ट्रेंड के साथ कंटेट में बदलाव लाना पड़ता है। अपनी जगह को बनाए रखने के लिए स्ट्रगल का सामना करना पड़ता हैं। इससे जीवन में कई बार अप्स तो कई बार डाइनफॉल बढ़ जाता है। हांलाकि जीवन में दोनों का रोल ही अह्म होता है। मगर ज़रूरत है उसे मेंटेन करने ली। इसके लिए फेलियर के कारणों को जान लें। साथ ही इस बात को समझें कि लाइफ में सक्सेस और फेलियर पर्मानेंट नहीं होते हैं।
व्यक्ति को हर परिस्थ्ति का सामना करने के लिए खुद को मज़बूत बनाने की आवश्यकता होती है। सोशल मीडिया की इस दुनिया में युवा वर्ग भावनाओं में बहकर जीवन में किसी भी नतीजे पर पहुंचने लगते है। उन्हें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि फेम और शोहतर उम्र भर साथ नहीं रह पाते है। ऐसे में सिचुएशन के अनुसार खुद को ढ़ाल लेना ज़रूरी है।
दिनों दिन सोशल मीडिया के कारण मिलने वाले फेम के कारण लोग अपने दोस्तों से दूरियां बना लेते है। ऐसे में विपरीत परिस्थितियों में वो उन्हीं दोस्तों से खुलकर बात करने से हिचकते हैं। ऐसे में जीवन में किसी भी मकाम पर पहुंचने के बावजूद भी दोस्तों से अपनी अंडरस्टैंडिंग को बनाए रखें। इससे व्यक्ति हर मुश्किल घड़ी का सामना आसानी से कर लेता है।
दिनभर फोन पर अपना समय व्यतीत करने वाले युवा जीवन में आत्म केंद्रत बने रहते हैं। वे आसपास की दुनिया से खुद को कटा हुआ महसूस करने लगते है। ऐसे में उनकी अपनी खुशी और दुख उनके लिए महत्वपूर्ण होने लगते हैं। लाइफ में नई चीजों को अचीव करने के लिए स्क्रीन टाइम को सीमित करें और आगे बढ़ने का प्रयास करें।
सोशल मीडिया के बढ़ते चलन का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। ऐसे में तनाव और एंगज़ाइटी का सामना करने पर मनोचिकित्सक की सलाह लें और समस्या को समझने का प्रयास करें। साथ ही थेरेपीज़ की भी मदद लें।
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