सार्स कोव-2 (SARS-CoV-2) वायरस से होने वाली कोरोना महामारी के कारण दुनिया की बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई। कोविड-19 से जूझने वाले लाखों लोगों ने सूंघने और स्वाद की क्षमता के नुकसान की बात कही। अस्थायी रूप से गंध या स्मेल खोने की समस्या अक्सर समय के साथ दोबारा हासिल हो जाती है। पर ऐसा सभी लोगों के साथ नहीं हुआ। इस पर हुईं 18 रिसर्च के मेटा-विश्लेषण से पता चलता है कि कोविड-19 के बाद गंध की कमी की समस्या वाले लगभग 5.6% व्यक्ति छह महीने बाद भी ठीक से सूंघने या स्वाद लेने में असमर्थ हैं। पर इन लोगों के लिए अच्छी खबर ये है कि, स्मेल ट्रेनिंग इनके लिए मददगार साबित हो सकती है। आइए जानते हैं, क्या है स्मेल ट्रेनिंग (Smell training to get smell back) और ये कैसे ली जाती है।
देखने और सुनन की क्षमता दिलाने वाली कोशिकाओं की तरह गंध का पता लगाने वाली कोशिकाएं भी सेल्फ रिन्यूअल करने में सक्षम होती हैं। नाक की स्टेम सेल्स लगातार नई ओल्फेक्ट्री रिसेप्टर सेल्स को बाहर निकालती रहती हैं, ताकि गंध का पता चल सके। ओल्फेक्ट्री सेंसरी न्यूरॉन्स मॉलीक्यूलर नेट से ढके होते हैं, जो नाक में आने वाली खास गंध मॉलीक्यूल्स का पता लगा पाते हैं। मस्तिष्क इन कोशिकाओं के एंगेज होने पर संकेत प्राप्त करता है।
यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि किस मैकेनिज्म के सहारे स्मेल सेंस बाधित होती है। हालांकि नए सबूत बताते हैं कि वायरस नाक में स्थायी कोशिकाओं को संक्रमित और नष्ट कर देते हैं।
इन कोशिकाओं को ग्लूकोज की आपूर्ति और सॉल्ट बैलेंस रेगुलेट कर ओल्फेक्ट्री न्यूरॉन्स को स्वस्थ रखा जाता है। नेजल कैविटी लाइंस में ओल्फेक्ट्री एपिथिलियम मौजूद होता है। यदि उस पर वायरस का हमला होता है, तो इसके जवाब में उसमें सूजन आ जाती है।
स्मेल ट्रेनिंग उन कुछ उपचारों में से एक है, जो अभी तक उपलब्ध हुए हैं। यदि आप इस पर गौर करेंगी, तो पाएंगी कि यह एक सीधी एक्सरसाइज से अधिक कुछ भी नहीं है। इसमें चार अलग-अलग सुगंधों (अक्सर गुलाब, नीलगिरी, नींबू और लौंग) की गंध ली जाती है।
एक महीने तक लगातार दिन में दो बार तीस सेकंड की अवधि के लिए अपना ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पड़ती है।
एक शोध के अनुसार, गंध की समस्या वाले 40 व्यक्तियों ने प्रशिक्षण में भाग लिया। प्रशिक्षण में भाग नहीं लेने वाले 16 लोगों की तुलना में प्रशिक्षण लेने वाले लोगों की औसतन सूंघने की क्षमता में वृद्धि दर्ज हुई।
इस विधि पर किए गए अधिकांश अध्ययनों से पता चला है कि यह तकनीक 30 से 60 प्रतिशत व्यक्तियों के लिए प्रभावी है। इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं। हालांकि, एक्सरसाइज को उचित तरीके से पूरा करने के लिए आत्म-अनुशासन और धैर्य बहुत जरूरी है। यह तभी असरकारक होता है जब आप इसे लगातार 1 महीने तक आजमाती हैं। यदि केवल 14 दिनों के बाद छोड़ दिया जाता है, तो यह प्रभावी नहीं होता है।
इस बात का अब तक पता नहीं चल पाया है कि यह विधि व्यक्ति पर कैसे काम करती है। लेकिन यह फायदेमंद है। संभव है कि यह रिप्लेसमेंट सेल्स के क्रिएशन को स्टिम्यूलेट करता है। यह मस्तिष्क में उपस्थित विशिष्ट सर्किट को मजबूत कर सकती है। इस तरह के प्रशिक्षण को अन्य प्रजातियों में स्मेल सेंसरी न्यूरॉन्स की संख्या को बढ़ावा देने में भी सक्षम पाया गया है।
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