स्किन के लिए ऑबसेस्ड समाज में जहां शेड भी बहुत अंतर पैदा कर देता है, वहां स्किन संबंधी समस्याएं कई तरह के मिथ्स पैदा करती हैं। ऐसी ही एक समस्या है दाद। साधारण स्किन रैश से लेकर शिंगल्स तक यह कई तरह का हो सकता है। इससे पीड़ित मरीज पहले से ही शारीरिक और मानसिक दबाव का सामना कर रहा होता है, उसके बाद जागरुकता की कमी अन्य लोगों में उसके प्रति एक अलग तरह का अलगाव पैदा कर देती है। इसलिए शिंगल्स जागरुकता सप्ताह (Shingles awareness week) में हम बात कर रहे हैं, उन मिथ्स की जिनका शिंगल्स या दाद की समस्या से कोई संबंध नहीं है।
इस बारे में विस्तार से बात करने के लिए हमारे साथ हैं डॉ मोनिका महाजन। डॉ मोनिका मैक्स मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली में मेडिकल डायरेक्टर हैं।
त्वचा पर होने वाली इस समस्या को कुछ लोग पुर्नजन्म, पाप और जादू-टोने से जोड़कर देखते हैं। जबकि यह केवल एक स्किन डिजीज है। जो एक वायरस के द्वारा पैदा होती है। असल में यह वही वायरस है जिससे चिकनपॉक्स होता है। कुछ समय पहले तक चिकनपॉक्स के बारे में ऐसी ही भ्रामक अवधारणाएं फैली हुईं थीं। दोनों बीमारियों के बीच एक और कॉमन फैक्टर यह है कि, चिकनपॉक्स से ग्रसित रहा व्यक्ति आसानी से शिंगल्स की चपेट में आ सकता है।
इसके बारे में प्रचलित विभिन्न भ्रामक अवधारणाओं को दूर करने और इसके उपचार को ज्यादा लाेगों तक पहुंचाने के लिए हर साल मार्च के पहले सप्ताह में शिंगल्स अवेयरनेस वीक का आयोजन किया जाता है। इस सप्ताह के दौरान इसके कारणाें और उपचार पर विस्तार से बात की जाती है। साथ ही उन लोगों को भी नॉर्मलाइज किया जाता है, जो इस समस्या से जूझ रहे हैं।
फैक्ट : जी नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। पाप या पुण्य का व्यक्ति के शरीर से कोई संदर्भ नहीं है। ये माइथोलॉजी और मेडिकल साइंस दो अलग-अलग दुनिया हैं। मेडिकल साइंस में हम समस्या के कारणों और उपचार पर ज्यादा फोकस करते हैं, बजाए व्यक्ति के प्रति घृणा को प्रसारित करने के।
डॉ माेनिका महाजन शिंगल्स के बारे में बात करते हुए कहती हैं, “यह समस्या चिकनपॉक्स वायरस द्वारा जनित है। अमूमन चिकन पॉक्स के बाद वेरिसेला ज़ोस्टर (Varicella Zoster) वायरस लंबे समय तक शरीर में पड़ा रहता है। इसकी उपस्थिति किसी की भी नर्वस में हो सकती है। जिसके कारण धीरे-धीरे शरीर की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। परिणामस्वरूप त्वचा पर दाद और चकत्ते उभरने लगते हैं।
फैक्ट : यह सही है कि कोविड-19 महामारी के बाद लोगों में शिंगल्स का जोखिम बढ़ा है। लेकिन इसका संबंध कहीं भी वैक्सीन से नहीं है। असल में सार्स-कोवि वायरस के कारण लोगों की इम्युनिटी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। शिंगल्स का संबंध कमजोर इम्युनिटी से है। यही वजह है कि किसी भी महामारी के बाद, जो आपकी इम्युनिटी को प्रभावित करती है, शिंगल्स का खतरा बढ़ जाता है।
फैक्ट : इसे अगर हेल्दी लाइफस्टाइल से जोड़ा जाए तो यह कुछ हद तक सही है। पर इसका मूल संंबंध आपकी इम्युनिटी से है। वे लोग जो खराब जीवनशैली से उपजने वाली बीमारियों से ग्रस्त हैं, वे चाहें कितने भी साफ-सुथरे रहें, उन्हें दाद हो सकता है। जैसे डायबिटीज, हार्ट डिजीज या किडनी संबंधी बीमारियां।
फैक्ट : इसी तरह की भ्रामक अवधारणाओं को दूर करने के लिए शिंगल्स जागरुकता सप्ताह का आयोजन किया जाता है। ये कमजोर इम्युनिटी और वायरस से होने वाला इंफेक्शन है। यह मरीज के संपर्क में आने से नहीं फैलता। इससे ग्रस्त मरीज भयंकर दर्द का सामना करते हैं। ऐसे में उन्हें आपके सपोर्ट और उचित उपचार की जरूरत होती है। आपके पूर्वाग्रह और घृणा उन्हें मानसिक आघात दे सकती है।
फैक्ट : ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इस समय मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि शिंगल्स का उपचार संभव है। त्वचा पर चकत्ते उभरने पर तत्काल मरीज को दर्द कम करने वाली दवाएं दी जा सकती हैं। वहीं इसके लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है, जिससे इसके जोखिम को कम किया जा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंखासतौर से बुजुर्गों को इसकी वैक्सीन जरूर दिलवानी चाहिए, इससे दोबारा शिंगल्स होने के जोखिम से बचा जा सकता है। यह न सोचें कि एक बार शिंगल्स होने के बाद वह दोबारा नहीं होगा। बल्कि विशेषज्ञ परामर्श से उचित उपचार करवाएं।
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