भारत में जैसे-जैसे कोरोना वायरस संक्रमण का नया वैरिएंट ओमिक्रोन फैल रहा है, तीसरी लहर का डर सताने लगा है। दक्षिण अफ्रीका से निकलने के बाद यह नया वैरिएंट अब तक दुनिया के 90 से भी ज्यादा देशों में अपनी पकड़ बना चुका है।
भारत में अब तक इस नए वेरिएंट के 800 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। विश्व स्वास्थ संगठन के इसे वैरिएंट ऑफ कन्सर्न बताए जाने के बाद से यह वैज्ञानिक समुदाय के लिए चिंता का कारण रहा है। हालांकि कोरोना वायरस संक्रमण के इस भय के बीच वैज्ञानिकों द्वारा 2 ऐसी रिसर्च की गईं, जो पूरी दुनिया के लिए राहत की खबर साबित हुईं।
ओमिक्रोन वैरिएंट के खतरे के बीच वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने उन एंटीबॉडीज की पहचान कर ली है, जो इस नए वैरिएंट और कोरोना वायरस संक्रमण के अन्य वैरिएंट को बेअसर करने में सक्षम होगी। शोधकर्ताओं के अनुसार एंटीबॉडी वायरस के उस हिस्से को निशाना बनाती हैं जिनमें म्यूटेशन के दौरान कोई बदलाव नहीं होता है।
वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस स्टडी को नेचर जर्नल में पब्लिश किया गया है। इस रिसर्च के बाद वैक्सीन और एंटीबॉडीज को विकसित करने में काफी मदद मिल सकती है। जो न केवल नए वैरिएंट ओमीक्रोन पर प्रभावी होंगी, बल्कि कोरोना के हर वैरिएंट पर इसका असर देखने को मिलेगा।
यानी अगर इसके बाद कोरोना वायरस संक्रमण का कोई अन्य वैरिएंट भी सामने आता है, तो यह एंटीबॉडीज हमारे शरीर को उस वायरस से लड़ने में सहायता प्रदान करेंगी।
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन’ में प्रोफेसर डेविड वेस्लर के अनुसार, एक दूसरी रिसर्च में सामने आया है कि कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के सबसे सुरक्षित हिस्से को टारगेट करने वाली एंटीबॉडी इस पर ध्यान देकर, खुद को नए रूप में ढालने की क्षमता से लड़ सकती हैं।
यह बात बहुत पहले ही सामने आ चुकी है कि नए वैरिएंट ओमिक्रोन के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन की संख्या 37 है। दरअसल स्पाइक प्रोटीन किसी भी वायरस का वह नुकीला हिस्सा होता है जिसके जरिए शरीर की कोशिकाओं में वायरस प्रवेश करता है। उनसे जुड़ कर संक्रमण फैलाता है। इन एंटीबॉडी से वायरस को फैलने से रोका जा सकता है।
इस बात को बखूबी समझा जा सकता है कि आखिर ओमिक्रोन वैरिएंट के यह बदलाव वैक्सीन लगावाने वाले और पहले से संक्रमित हो चुके लोगों को कैसे दोबारा संक्रमित करने में सक्षम है। वेस्लर ने कहा, “हम जिन सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहे थे, वे थे कि ओमिक्रॉन वैरिएंट में स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन ने कोशिकाओं से जुड़ने और इम्यूनिटी की एंटीबॉडी से बचने की क्षमता को कैसे प्रभावित किया है।
शोधकर्ताओं ने चीजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए स्यूडोवायरस बनाया जिसमें ओमिक्रॉन वैरिएंट जैसे स्पाइक प्रोटीन थे। वहीं दूसरी तरफ़ उन्होंने शुरुआती वैरिएंट वाला स्यूडोवायरस बनाया। शोधकर्ताओं ने वायरस के अलग-अलग वेरिएंट्स का कंपैरिजन किया और पाया कि महामारी के शुरुआती वायरस में पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन की तुलना में ओमिक्रॉन वैरिएंट स्पाइक प्रोटीन 2.4 गुना बेहतर ढंग से खुद को कोशिकाओं से जकड़ने में सक्षम है।
दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि जो लोग कोरोनावायरस के ओमिक्रोन वैरिएंट से संक्रमित हुए हैं, उनमें पुराने डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले रोग प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। डरबन स्थित अफ्रीका स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान में किए गए एक नए अध्ययन के परिणाम के अनुसार, अध्ययन में 33 टीकाकरण और बिना टीकाकरण वाले लोग शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि संक्रमण के लगभग दो सप्ताह बाद ओमिक्रोन के और अधिक संपर्क के खिलाफ प्रतिरक्षा 14 गुना बढ़ गई। जबकि यह भी पता चला कि डेल्टा के खिलाफ प्रतिरक्षा में 4.4 गुणा सुधार हुआ।
इन अध्यानों के निष्कर्ष से आप राहत की सांस ज़रूर ले सकते हैं, मगर लापरवाही करने की भूल बिल्कुल भी न करें। इसलिए मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
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