मौसम बदलने के साथ ही कई तरह के संक्रमण फैलाने वाले रोग सामने आने लगते हैं। दुनिया भर से इन्फ्लुएंजा, एवियन फ्लू, नीपाह फ्लू से लोगों के ग्रस्त होने की खबरें आ रही हैं। सभी फ्लू में रोगी बुखार और गले में परेशानी की बात कहते हैं। अब यूके से स्कार्लेट फीवर से पीड़ित होने की बात सामने आ रही है। हालांकि भारत में इसके मामले नहीं देखे जा रहे हैं। लेकिन इसके बारे में जानकारी होना जरूरी है। स्कार्लेट फीवर (Scarlet fever) से ग्रस्त होने पर रोगी में कौन-कौन से लक्षण दिखाई पड़ते हैं? क्या यह जानलेवा भी है, आइये जानते हैं।
स्कार्लेट फीवर एक बैक्टीरियल डिजीज है। यह स्कार्लेटिना के रूप में भी जाना जाता है। इससे संक्रमित होने पर तेज बुखार के साथ व्यक्ति के गले में खराश होती है। स्कार्लेट फीवर में शरीर के ज्यादातर भाग में चमकदार लाल दाने हो जाते हैं। यहां तक कि जीभ पर भी दाने हो जाते हैं।
चिंताजनक बात यह है कि यह फीवर 5 से 15 वर्ष की आयु के बच्चों में सबसे अधिक देखा जा रहा है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार यूके में पिछले वर्ष स्कार्लेट फीवर के 186 मामले दर्ज किये गये थे। इस साल अब तक इसके 851 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, स्कार्लेट फीवर में शरीर पर दाने हो जाते हैं। यह आमतौर पर स्कूली उम्र और किशोर बच्चों में बैक्टीरियल फेरिनजायटिस (bacterial pharyngitis) से जुड़ा है। इसमें होने वाले रैश को सैंडपेपर रैश कहा जाता है। यह स्ट्रेप्टोकोकस पाइोजेन्स (Streptococcus pyogenes) बैक्टीरिया है। यह संक्रमण के बाद एंडोटॉक्सिन उत्पन्न करता है। इसे ग्रुप ए के रूप में वर्गीकृत किया गया है और ग्रुप ए स्ट्रेप (GAS) के रूप में बताया जाता है। दाने खतरनाक नहीं होते हैं, लेकिन जीएएस संक्रमण के लिए एक मार्कर है। इससे कई तरह की खतरनाक जटिलताएं हो सकती हैं। इन जटिलताओं को रोकने के लिए तीव्र संक्रमण का उपचार आवश्यक है। इसका उपचार पेनिसिलिन है। इसका संक्रमण मयूक्स से फैलता है। इसलिए एक कक्षा में बैठने वाले बच्चों में यह संक्रमण फ़ैल जाता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, स्कार्लेट ज्वर (Scarlet fever) जी ए एस के कारण होने वाले संक्रमण के कारण होता है। स्कार्लेट बुखार के दाने एक टोक्सिन के कारण होते हैं, जो स्ट्रेप बैक्टीरिया उत्पन्न करते हैं। स्कार्लेट बुखार 2 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों में आम था। लेकिन अब यह अपेक्षाकृत दुर्लभ है। इसके कारण का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है।
इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। सबसे पहले पेनिसिलिन या एमोक्सिसिलिन से उपचार किया जाता है। यदि पेनिसिलिन से व्यक्ति को एलर्जी होती है, तो इलाज सेफलोस्पोरिन से किया जा सकता है। इसके अलावा क्लिंडामाइसिन या एरिथ्रोमाइसिन का उपयोग भी डॉक्टर करते हैं।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में एंटीबायोटिक दवाओं के अभाव में मृत्यु दर लगभग 30% थी। लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं की उपलब्धि के कारण स्कार्लेट ज्वर की रुग्णता और मृत्यु दर कम हुआ है।
जीएएस का रेजरवोइर (reservoir) नाक के म्यूकोसा, एडेनोइड्स और टॉन्सिल में होता है। इसके संक्रमण के बाद व्यक्ति यदि एसिमप्तोमेटिक लक्षण के रूप में प्रदर्शन करता है, तो वह कैरियर के रूप में संदर्भित किया जाता है। एंटीबायोटिक दवाओं से ही इनका भी इलाज होता है।
स्कार्लेट फीवर और ज्यादातर बीमारियां जो निकट संपर्क के माध्यम से फैलती हैं, उनमें सिर्फ स्वच्छता पर ध्यान देना होता है।
हाथ से संक्रमण फैलने की सबसे अधिक आशंका रहती है। इसलिए हाथ हमेशा साफ़ रहना चाहिए।
खांसने और छींकने से पहले मुंह को कवर कर लेना चाहिए।
एक से अधिक व्यक्ति के उपयोग में लाई जाने वाली चीजों को डिसइन्फेक्टेंट के प्रयोग से सुरक्षित रखना चाहिए। लोगों के बीच इस रोग के प्रति जागरुकता होनी चाहिए।
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