सार्कोमा (Sarcoma) दरअसल, शरीर के कनेक्टिव टिश्यू के ट्यूमर्स (Connective tissue tumors) को कहते हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारे शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों को सपोर्ट करने के लिए पूरे शरीर में कनेक्टिव टिश्यू होते हैं। उदाहरण के लिए, हाथ में त्वचा, मांसपेशियां और हडि्डयां होती हैं। हाथों को आर्टरीज़ के जरिए रक्त की आपूर्ति होती है। जबकि वेन्स से खून वापस जाता है। यहां तक कि इन रक्तवाहिकाओं के बीच भी कनेक्टिव टिश्यू होते हैं। कैंसर इनमें से किसी भी टिश्यू में पनप सकता है और उसके मुताबिक ही उसकी पहचान की जाती है। जुलाई को सर्कोमा अवेयरनेस मंथ (Sarcoma Awareness Month) घोषित किया गया है। ताकि हम इस अलग तरह के कैंसर के बारे में और ज्यादा जागरुक हो सकें।
मांसपेशियों से पनपने वाले ट्यूमर को लियोमायोसार्कोमा (leiomyosarcoma) कहते हैं। जबकि हडि्डयों को प्रभावित करने वाला कैंसर ऑस्टियोसार्कोमा (osteosarcoma) कहलाता है।
प्रत्येक सार्कोमा दूसरे किस्म के सार्कोमा से अलग होता है और हर एक को समझने तथा उसके इलाज के लिए काफी गहन जानकारी तथा अनुभव की आवश्यकता होती है। सार्कोमा कुछ खास स्थानों और उम्र के मुताबिक प्रभावित कर सकता है। लेकिन यह किसी को भी प्रभावित कर सकता है और शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है।
आमतौर पर युवाओं में (20 साल की उम्र के आसपास के आयुवर्ग में) बोनी सार्कोमा होता है और घुटनों के जोड़ के आसपास, प्रॉक्सिमल टिबिया या डिस्टेल फीमर में इसके होने की आशंका अधिक होती है। बुजुर्गों को एक अलग प्रकार का कैंसर अपना शिकार बनाता है जो आमतौर पर कॉन्ड्रोसार्कोमा (chondrosarcoma) होता है और प्राय: फ्लैट बोन्स में जैसे कि पेल्विस बोन्स तथा स्कैपुलर बोन में होता है।
मांसपेशियों को अपनी चपेट में लेने वाला सार्कोमा किसी भी मांसपेशी में पनप सकता है और यह आमतौर से बगल या जांघ में होता है। पर यह कई बार इसोफैगस तथा पेट जैसे अंगों की मांसपेशियों को भी अपनी चपेट में ले लेता है।
सार्कोमा की पुष्टि सिर्फ बायोप्सी से हो सकती है, जिसके लिए प्रभावित स्थान से एक छोटा टुकड़ा लिया जाता है और इसकी माइक्रोस्कोपिक जांच की जाती है। इसे सिर्फ सार्कोमा नहीं कहा जाता। इसके उचित इलाज के लिए हमें यह जानना होता है कि यह सार्कोमा किस प्रकार का है और यह किस उप वर्ग (Sub type) का है।
कभी-कभी शरीर में उभरी गांठ या गिल्टी अथवा सूजन वाले भाग की बायोप्सी करना आसान होता है, लेकिन कभी-कभी यह मांसपेशियों के भीतर काफी गहराई में छिपी हो सकती है। या फिर किसी कैविटी के भीतर जैसे कि पेट के अंदरूनी भाग में होती है। ऐसे में बायोप्सी जांच के लिए अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन की आवश्यकता है।
सार्कोमा अक्सर अन्य अंगों तक भी फैल सकते हैं, खासतौर से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इसके फैलने (metastasis) की क्षमता को ट्यूमर की आक्रामकता कहा जाता है। अधिक आक्रामक ट्यूमर्स जल्दी फैलते हैं। इसलिए सार्कोमा का पता लगने के बाद हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि ट्यूमर कहीं पहले ही फैला तो नहीं है।
इसके लिए कंट्रास्ट एन्हान्स्ड पैट सीटी स्कैन किया जाता है। पैट सीटी स्कैन दरअसल, होल बॉडी स्कैन होता है, जिसमें शरीर के छिपे हुए भागों में पनप रहे रोग को पकड़ने के लिए रेडियोन्यूक्लियोटाइड का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पीईटी का सीईसीटी के साथ मेल कराया जाता है जो फंक्शनल तथा रेडियोलॉजिकल तस्वीर दिखाता है।
सार्कोमा का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार का है और किस स्टेज का है। यह जितना अधिक एडवांस स्टेज का होगा और जितना ज्यादा आक्रामक होगा, उसके लिए उतने ही अधिक इलाज की आवश्यकता होगी। इसमें सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी जैसी उपचार प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है। लेकिन साथ ही, पर्सनलाइज़्ड केयर और अटेंशन भी जरूरी होती है।
जुलाई का महीना सार्कोमा की जागरूकता के लिए समर्पित है और मुझे उम्मीद है कि हम सार्कोमा के बारे में गलतफहमियों के न तो शिकार बनेंगे और न ही इसे लेकर सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करेंगे।
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