कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके बच्चों के लिए नया सिन्ड्रोम खतरा बन गया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेट्री सिन्ड्रोम बच्चों के हृदय को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचाता है कि फिर उसे जिंदगी भर डॉक्टरों की निगरानी में रहना पड़ सकता है। इस खोज से जुड़ा शोध लैंसेट से संबद्ध ईक्लीनिकल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर के विशेषज्ञ डॉ. एलवारो मॉरिया की टीम ने यह अध्ययन किया। शोध दल ने पाया कि एक जनवरी से 26 जुलाई तक दुनिया भर में इस सिन्ड्रोम के 662 मामले दर्ज हुए।
इन बच्चों में से 71% को आईसीयू में एडमिट होना पड़ा। 22.2% बच्चों को वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। अस्पताल में भर्ती रहने की औसत अवधि 7.9 दिन थी। सभी सौ प्रतिशत मरीजों को बुखार था। 73.7% मरीजों को पेट दर्द या डायरिया, 68.3% मरीजों को उल्टी की दिक्कत हुई। इनमें 11 बच्चों की मौत हो गई।
यह सिन्ड्रोम स्वस्थ दिखने वाले उन बच्चों को भी हो सकता है, जो बिना लक्षण वाले संक्रमण की चपेट में आए थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेट्री सिन्ड्रोम होने के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि बच्चों में श्वसनतंत्र से जुड़े लक्षण दिखाई दें। कुछ मामलों में बच्चों के अभिभावक जान ही नहीं पाते कि वे संक्रमित हुए। पर कुछ सप्ताह में ही उनके शरीर में इस सिन्ड्रोम का असर होने लगता है।
शोधकर्ता डॉ. एलवारो का कहना है कि यह सिन्ड्रोम कोविड-19 के असर से जुड़ा है जो कि बच्चों के दिल, फेफड़े और मस्तिष्क पर असर डालता है। ज्यादातर अंग ठीक से काम करना बंद कर देते हैं, उनमें इंफ्लेमेशन पैदा हो जाता है। बहुत जटिल सिन्ड्रोम होने के कारण महामारी के शुरुआती माह में इसकी पहचान करना वैज्ञानिकों के लिए मुश्किल हो रहा था।
इस बीमारी के लक्षण कावासाकी सिन्ड्रोम के जैसे हैं। इसलिए इन मरीजों पर कावासाकी सिन्ड्रोम के उपचार का तरीका प्रभावी है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि वे संक्रमित बच्चे जो पहले से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं या जिनमें मोटापा एक बड़ी समस्या है। उनके लिए यह सिन्ड्रोम ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि सिन्ड्रोम से पीड़ित आधे बच्चे मोटापाग्रस्त थे।
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