ओडिशा अपने नृत्य, परंपराओं और खानपान के लिए अनूठी पहचान रखता है। यहां एक खास किस्म की चटनी खाई जाती है। ये चटनी धनिया, पुदीना या टमाटर से नहीं, बल्कि लाल चींटियों से बनाई जाती है। हैरान हो गए न? जी हां, आपको भले ही यह अजीब लगे, पर ओडिशा में प्रचलित यह लाल चींटियों की चटनी दुनिया भर में जानी और पहचानी जा रही है। ओडिशा की इस खास चीटी की चटनी को अब जीआई टैग मिल चुका है। जो इसकी खासियत को अब और ज्यादा बढ़ा देगा।
जीआई टैग उन चाजों को दिया जाता है जो उस स्थान की पहचान बनाती हैं। जीआई टैग को भौगोलिक पहचान (geographical indication) कहा जाता है। यह उन उत्पादों पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक संकेत है, जिनकी एक अलग भौगोलिक पहचान और उत्पत्ति होती है।
उनमें ऐसे गुण, प्रतिष्ठा या विशेषताएं होती हैं जो मूल रूप से उस मूल स्थान के लिए जिम्मेदार होती हैं। यह टैग एक संकेत है कि उत्पाद में कुछ विशेष गुण, प्रतिष्ठा या विशेषताएं हैं, जो अनिवार्य रूप से इसकी भौगोलिक उत्पत्ति के कारण हैं।
जीआई टैग प्राप्त करने वाले उत्पादों में कृषि उत्पाद, हैंडक्राफ्ट, कपड़ा, खाद्य उत्पाद और औद्योगिक उत्पाद शामिल हैं। जीआई टैग वाले उत्पादों के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों कशमीर का केसर, बिहार की मधुबनी पेंटिंग, कर्नाटक का मैसूर सिल्क शामिल है।
ओडिशा में इस लाल चींटी की चटनी को ‘काई चटनी’ के नाम से जाना जाता है। इसे अपने स्वाद और बनावट के आधार पर जीआई टैग दिया गया है। ये चटनी ओडिशा के मयूरभंज जिले में आदिवासी सिलबट्टे पर पीसकर और मसालों के साथ बनाते हैं। यह उनके कल्चर का एक हिस्सा है। कई लोग मयूरभंज में इस चीटी की चटनी को बेचकर ही अपना जीवन यापन करते हैं।
ये एक मोटी चटनी होती है जो कि मसालों और लाल चींटियों को मिलाकर बनाई जाती है। इसके स्वास्थ्य लाभ और पोषण मूल्यों के कारण इस चटनी को जीआई टैग दिया गया है। लाल चीटी का वैज्ञानिक नाम ओइकोफिला स्मार्गडीना है। ये चीटी अगर अपना डंक मारती है तो स्किन पर जलन और रैश हो सकते है। ये चीटियां ज्यादातर झारखंड और छत्तीसगढ़ के मयूरभंज और सिमलीपाल जंगलो में पाई जाती है।
डॉ. राजेश्वरी पांडा मेडिकवर अस्पताल, नवी मुंबई में पोषण और आहार विज्ञान विभाग की एचओडी है। वो बताती है कि लाल चींटी की चटनी अपने संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है।
डॉ पांडा कहती हैं, “इस चटनी में प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन बी-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम आदि जैसे पोषक तत्वों का होते है। इस अनोखी चटनी को मानसिक स्वास्थ्य और नर्वस सिस्टम के स्वास्थ्य के लिए भा काफी अच्छा माना जाता है। संभावित रूप से डिप्रेशन, थकान और यादाश्त जैसी स्थितियों में इस चनटी के सेवन को अच्छा माना जाता है।’’
लाल चीटी की चटनी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। सभी चटनियों को कई तरह के मसाले मिलाकर बनाया जाता है इसमें कई जड़ी बुटियां भी होती है। ये जड़ी बुटियां एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है। एंटीऑक्सिडेंट शरीर में मुक्त कणों को बेअसर करने में मदद करते हैं, जो आपके स्वास्थ्य को कई तरह की बिमारियों और रोगों से बचाता है।
चटनी में मौजूद तत्व, जैसे आयुर्वेदिक गुण रखने वाली जड़ी बूटी, आवश्यक विटामिन और खनिजों के अच्छे स्रोत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, धनिया, पुदीना और खट्टे फल जैसे तत्व अक्सर चटनी में उपयोग किए जाते हैं और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व प्रदान करते हैं। चीटी की चटनी में भी लहसून का इस्तेमाल किया जाता है जिससे ये अच्छी मात्रा में विटामिन सी स्रोत होते है।
वैसे तो हर नॉनवेज फूड जैसे मीट, मछली, अंडे प्रोटीन का अच्छा स्रोत होते है। लेकिन लाल चीटी की चटनी भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती है। इसे खाने से मयूरभंज के लोगों को अच्छा खासा प्रोटीन मिलता है। ये अपके मांसपेशियों के निर्माण में मदद कर सकता है।
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