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ओडिशा की लाल चींटी की चटनी को मिला जीआई टैग, क्या यह वाकई फायदेमंद है?

हमारे देश में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह का खानपान और जीवनशैली है। ओडिशा में खाई जाने वाली लाल चींटियों की चटनी आपको भले ही अजीब लगे, पर इसके स्वास्थ्य लाभ और लोकप्रियता को देखते हुए इसे जीआई टैग दिया गया है।
Published On: 15 Jan 2024, 06:36 pm IST
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red ant chutney
ओडिशा में इस लाल चींटी की चटनी को ‘काई चटनी’ के नाम से जाना जाता है। चित्र-अडोबी स्टॉक

ओडिशा अपने नृत्य, परंपराओं और खानपान के लिए अनूठी पहचान रखता है। यहां एक खास किस्म की चटनी खाई जाती है। ये चटनी धनिया, पुदीना या टमाटर से नहीं, बल्कि लाल चींटियों से बनाई जाती है। हैरान हो गए न? जी हां, आपको भले ही यह अजीब लगे, पर ओडिशा में प्रचलित यह लाल चींटियों की चटनी दुनिया भर में जानी और पहचानी जा रही है। ओडिशा की इस खास चीटी की चटनी को अब जीआई टैग मिल चुका है। जो इसकी खासियत को अब और ज्यादा बढ़ा देगा।

पहले जानिए क्या होता है जीआई टैग

जीआई टैग उन चाजों को दिया जाता है जो उस स्थान की पहचान बनाती हैं। जीआई टैग को भौगोलिक पहचान (geographical indication) कहा जाता है। यह उन उत्पादों पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक संकेत है, जिनकी एक अलग भौगोलिक पहचान और उत्पत्ति होती है।

उनमें ऐसे गुण, प्रतिष्ठा या विशेषताएं होती हैं जो मूल रूप से उस मूल स्थान के लिए जिम्मेदार होती हैं। यह टैग एक संकेत है कि उत्पाद में कुछ विशेष गुण, प्रतिष्ठा या विशेषताएं हैं, जो अनिवार्य रूप से इसकी भौगोलिक उत्पत्ति के कारण हैं।

red ant chutney kaise banayi jati hai
ये एक मोटी चटनी होती है जो कि मसालों और लाल चींटियों को मिलाकर बनाई जाती है। चित्र-अडोबी स्टॉक

जीआई टैग प्राप्त करने वाले उत्पादों में कृषि उत्पाद, हैंडक्राफ्ट, कपड़ा, खाद्य उत्पाद और औद्योगिक उत्पाद शामिल हैं। जीआई टैग वाले उत्पादों के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों कशमीर का केसर, बिहार की मधुबनी पेंटिंग, कर्नाटक का मैसूर सिल्क शामिल है।

लाल चींटी का चटनी को क्यों मिला जीआई टैग

ओडिशा में इस लाल चींटी की चटनी को ‘काई चटनी’ के नाम से जाना जाता है। इसे अपने स्वाद और बनावट के आधार पर जीआई टैग दिया गया है। ये चटनी ओडिशा के मयूरभंज जिले में आदिवासी सिलबट्टे पर पीसकर और मसालों के साथ बनाते हैं। यह उनके कल्चर का एक हिस्सा है। कई लोग मयूरभंज में इस चीटी की चटनी को बेचकर ही अपना जीवन यापन करते हैं।

कैसे बनाई जाती है चींटियों की चटनी

ये एक मोटी चटनी होती है जो कि मसालों और लाल चींटियों को मिलाकर बनाई जाती है। इसके स्वास्थ्य लाभ और पोषण मूल्यों के कारण इस चटनी को जीआई टैग दिया गया है। लाल चीटी का वैज्ञानिक नाम ओइकोफिला स्मार्गडीना है। ये चीटी अगर अपना डंक मारती है तो स्किन पर जलन और रैश हो सकते है। ये चीटियां ज्यादातर झारखंड और छत्तीसगढ़ के मयूरभंज और सिमलीपाल जंगलो में पाई जाती है।

लाल चीटी की चटनी पर क्या है पोषण विशेषज्ञ की राय

डॉ. राजेश्वरी पांडा मेडिकवर अस्पताल, नवी मुंबई में पोषण और आहार विज्ञान विभाग की एचओडी है। वो बताती है कि लाल चींटी की चटनी अपने संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है।

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प्रदूषण से बचने के लिए आप क्या करते हैं?

डॉ पांडा कहती हैं, “इस चटनी में प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन बी-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम आदि जैसे पोषक तत्वों का होते है। इस अनोखी चटनी को मानसिक स्वास्थ्य और नर्वस सिस्टम के स्वास्थ्य के लिए भा काफी अच्छा माना जाता है। संभावित रूप से डिप्रेशन, थकान और यादाश्त जैसी स्थितियों में इस चनटी के सेवन को अच्छा माना जाता है।’’

क्या वाकई सेहत के लिए फायदेमंद है लाल चींटी की चटनी (Benefits of red ant chutney)

इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स हैं

लाल चीटी की चटनी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। सभी चटनियों को कई तरह के मसाले मिलाकर बनाया जाता है इसमें कई जड़ी बुटियां भी होती है। ये जड़ी बुटियां एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है। एंटीऑक्सिडेंट शरीर में मुक्त कणों को बेअसर करने में मदद करते हैं, जो आपके स्वास्थ्य को कई तरह की बिमारियों और रोगों से बचाता है।

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लाल चीटी की चटनी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। चित्र- पीनट्रस्ट

विटामिन सी भी होता है

चटनी में मौजूद तत्व, जैसे आयुर्वेदिक गुण रखने वाली जड़ी बूटी, आवश्यक विटामिन और खनिजों के अच्छे स्रोत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, धनिया, पुदीना और खट्टे फल जैसे तत्व अक्सर चटनी में उपयोग किए जाते हैं और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व प्रदान करते हैं। चीटी की चटनी में भी लहसून का इस्तेमाल किया जाता है जिससे ये अच्छी मात्रा में विटामिन सी स्रोत होते है।

प्रोटीन की कमी को पूरा करती है

वैसे तो हर नॉनवेज फूड जैसे मीट, मछली, अंडे प्रोटीन का अच्छा स्रोत होते है। लेकिन लाल चीटी की चटनी भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती है। इसे खाने से मयूरभंज के लोगों को अच्छा खासा प्रोटीन मिलता है। ये अपके मांसपेशियों के निर्माण में मदद कर सकता है।

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डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।

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लेखक के बारे में
संध्या सिंह
संध्या सिंह

दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म ग्रेजुएट संध्या सिंह महिलाओं की सेहत, फिटनेस, ब्यूटी और जीवनशैली मुद्दों की अध्येता हैं। विभिन्न विशेषज्ञों और शोध संस्थानों से संपर्क कर वे  शोधपूर्ण-तथ्यात्मक सामग्री पाठकों के लिए मुहैया करवा रहीं हैं। संध्या बॉडी पॉजिटिविटी और महिला अधिकारों की समर्थक हैं।

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