केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी सूचना के अनुसार अब देश में निर्मित टीके से न्यूमोनिया का मुकाबला किया जाएगा। यह फेफड़े से संबंधित बीमारी है, जिसमें मरीज को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगती है। वैश्विक स्तर पर बात करें तो 450 मिलियन लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं। जिनमें लगभग 4 मिलियन लोगों की मृत्युे हो जाती है।
पहले टीके को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मंजूरी मिल गई है। टीके के लिए विशेष विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की मदद से डीसीजीआई ने पुणे की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा सौंपे गए क्लिनिकल ट्रायल के पहले, दूसरे और तीसरे चरण के आंकड़ों की समीक्षा की और न्यूमोकोकल पॉलीस्काराइड कॉजुगेट टीके को बाजार में उतारने की अनुमति दे दी।
फेफड़े की बीमारी से संबंधित होने के चलते कुछ लोग इसे कोरोना वायरस की वैक्सीन मानने लगे। जबकि यह कोरोना वायरस का नहीं, बल्कि न्यूमोनिया का टीका है। यह टीका इंजेक्शन की मदद से लगेगा। इसका ट्रायल गाम्बिया में भी हुआ है। मंत्रालय ने बताया कि विशेष विशेषज्ञ समिति ने टीके के उत्पादन और बिक्री की अनुमति देने की सलाह दी है। इसके आधार पर 14 जुलाई को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को इसकी अनुमति दे दी गई।
निमोनिया यानी न्यूमोनिया (Pneumonia) फेफड़े संबंधी बीमारी है, इसमें फेफड़ों में सूजन आ जाती है। जो प्राथमिक रूप से अल्वियोली कहे जाने वाले बेहद सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक) वायु कूपों को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से विषाणु या जीवाणु और आम तौर पर सूक्ष्मजीव, कुछ दवाओं और अन्य परिस्थितियों द्वारा संक्रमण फैलने से होती है।
इस बीमारी के सबसे कॉमन लक्षणों में खांसी, सीने का दर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। यह संक्रमण किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। दो माह से छोटे बच्चों में खांसी नहीं होती। पर उन्हें सांस लेने में भयंकर दिक्कत हो सकती है। अधिक गंभीर लक्षणों में त्वचा का नीला पड़ना, प्यास में कमी, बेहोशी और ऐंठन, बार-बार उल्टी या चेतना का घटा स्तर शामिल हो सकता है।
इसकी पहचान एक्स-रे और बलगम का कल्चर से की जाती है। कुछ प्रकार के निमोनिया की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं। वास्त व में इसका उपचार, अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है।
वार्षिक रूप से, निमोनिया लगभग 450 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है, जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है। इसके कारण लगभग 4 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती हैं। विकासशील देशों में अब भी यह बीमारी बुज़ुर्गों, युवाओं और छोटे बच्चों को प्रभावित कर रही है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई से प्राप्त इनपुट के साथ)
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