कबूतर पर्यावरण को साफ रखने में एक प्राकृतिक भूमिका निभाते हैं, बचे हुए भोजन और अन्य जैविक कचरे को साफ करने में मदद करते हैं। पर हम में से बहुत से लोग अपने घर की बालकनी और छत पर कबूतरों को दाना डालते हैं। आपको जानकर हैरानी हो सकती है, परंतु यह गतिविधि आपको गंभीर संक्रमण का शिकार बना सकती है (Pigeon dropping health hazards)। उन्हें खिलाने से, हम उनके प्राकृतिक व्यवहार को बाधित करते हैं।
पिछले पांच वर्षों में, कबूतरों के संपर्क से जुड़ी श्वसन समस्याओं में 10 से 15% की वृद्धि हुई है। वहीं कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें कबूतर के बीट को संक्रमण का कारण बताया जा रहा है (Pigeon dropping health hazards)। यदि आपको पूरे मामले को जानकारी नहीं है, तो इस लेख को जरूर पढ़ें। यहां कबूतर के बीट से फैलने वाले संक्रमण से जुड़ी कई जरूरी जानकारी दी गई है (Pigeon dropping health hazards)।
पुणे के एक 35 वर्षीय व्यक्ति को आदित्य बिड़ला मेमोरियल अस्पताल (ABMH) में हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस का पता चला था। वह कबूतर के बरसे के पास एक ऊंची बिल्डिंग में रहता है, और उसे लगातार खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत थी।
उसे हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस का पता चला, एबीएमएच में, हर महीने में हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस के लगभग आठ से 10 मामले सामने आते हैं। इसके अतिरिक्त हर साल क्रिप्टोकोकल मेनिन्जाइटिस के दो से तीन मामले और साइटाकोसिस के एक से दो मामले सामने आते हैं।
कबूतर की बीट से जुड़ी बीमारियों में क्रिप्टोकॉकोसिस, हिस्टोप्लाज्मोसिस और सिटाकोसिस शामिल हैं। कबूतर का मल और मूत्र साफ करते समय जो धूल बनती है, उसमें सांस लेने से आप इन बीमारियों से संक्रमित हो सकती हैं। कबूतर संबंधी बीमारियों का खतरा दुर्लभ है। इन बीमारियों से सबसे अधिक खतरा कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को होता है।
क्रिएटर-वायरस कबूतर की बीट और उसके पंख में होते हैं। जब कोई व्यक्ति लगातार कबूतर और उसकी बीट के संपर्क में होता है, तो ये एंटीजन सासों के माध्यम से फेफड़े में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार ये फेफड़ों को संक्रमित कर सकते हैं।
कबूतर के बीट के संपर्क में रहने से कीटाणुओं द्वारा फैलाया गया संक्रमण लंग टिशू को डैमेज कर सकता है। इतना ही नहीं यह एयरवेज़ को भी नुकसान पहुंचाता है। वहीं इंटरनेशनल लैंग्वेज डिजीज (आईएलडी) का खतरा बढ़ जाता है।
अस्थमा से पीड़ित सभी मरीजों को इसके प्रति अधिक सचेत रहने की आवश्यकता हैं। कबूतर का बीट या उन्हें घर की बालकनी में दाना देना, अस्थमा ट्रिगर की तरह काम करता है। हालांकि, जिन घरों में नियमित रूप से कबूतर आते हैं, उन्हें अस्थमा न होने के बावजूद भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है, उनमें कबूतर के बीट से निकलने वाले हानिकारक बैक्टीरिया एवं कीटाणुओं से संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है। ऐसे लोगों को कबूतर से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जाती है। क्योंकि एक बार संक्रमित हो जाने के बाद, ट्रीटमेंट में भी मुश्किल आ सकती है।
अगर लंग्स ख़राब हैं या पहले से ही त्वचा की बीमारी है, तो मरीज़ की स्थिति अधिक ख़राब हो सकती है। बच्चों और बुजुर्गों में इसका अधिक जोखिम होता है। ऐसे लोग आसानी से और तेजी से संक्रमित हो सकते हैं। इन लोगों को कबूतरों से हमेशा दूर रहना चाहिए।
आमतौर पर पालतू जानवर पूरे घर में घूम रहे होते हैं। कई बार ये जानवर अनजाने में कबूतर की बीट खा लेते हैं, और उनके पंख मुंह में लेकर चबाते हैं, इनसे संक्रमण होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
कबूतरों का दाना हमेशा घर के बाहर डालें।
यदि पब्लिक प्लेस पर उन्हें दाना डाल रही हैं, तो वहां खड़े होकर उनके खाने का इंतजार न करें वहां से लौट आएं।
यदि बहुत से कबूतरों के बीच दाना डाल रही हैं, तो मास्क जरूर पहनें।
कबूतरों के लगातार एक्स्पोज़र से बचें।
बालकनी और जहां से भी कबूतर घर में आ सकते हैं, उस जगह को नेट से कवर करवाएं।
अगर आप बिना मास्क और गलव्स के बीट की सफाई कर रही हैं, तो आपको हाइपरसेंसस नॉर्मियालिटी न्यूमोनिटिस हो सकता है। ऐसे में हमेशा बीट की सफाई करते वक्त हाथों में दस्ताने पहने, साथ ही मुंह को मास्क से अच्छी तरह कवर करें और बीट को घर से दूर फेंके। सफाई के दौरान संक्रमण का खतरा सबसे अधिक होता है, इसलिए सचेत रहें।
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