हमारी कोशिकाएं जब किसी कारण से प्रभावित हो जाती हैं, तो कैंसर होने की संभावना हो जाती है। प्रतिरक्षा प्रणाली में हुए संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं को लिम्फोसाइट्स कहा जाता है। इन्हीं कोशिकाओं में कैंसर हो जाता है, जो लिम्फोमा कहलाता है। ये कोशिकाएं लिम्फ नोड्स, प्लीहा, थाइमस, अस्थि मज्जा और शरीर के अन्य भागों में होती हैं। जब किसी व्यक्ति को लिम्फोमा होता है, तो लिम्फोसाइट्स बदल जाते हैं। वे नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं। जानकारी के अभाव में इसका इलाज देरी से शुरू हो पाता है। लिम्फोम के प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है। लिम्फोमा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही वर्ल्ड लिम्फोमा अवेयरनेस डे (World Lymphoma Awareness Day) मनाया जाता है।
इस वर्ष वर्ल्ड लिम्फोमा अवेयरनेस डे (World Lymphoma Awareness Day 2023) 15 सितम्बर को है। हर साल लसीका प्रणाली (Lymphatic System) के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। दुनिया भर के 50 देशों में रोगियों, देखभाल करने वालों, हेल्थ केयर प्रोफेशनल और लिम्फोमा से संबंधित और प्रभावित लोगों को एक साथ लाने का काम किया जाता है। इस वर्ष लिम्फोमा अवेयरनेस डे (World Lymphoma Awareness Day 2023 Theme) की थीम है –हम अपनी फीलिंग पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए ज्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते हैं (We Can’t Wait to Focus on Our Feelings) ।
सनराइज ऑन्कोलॉजी सेंटर के फाउंडर और डायरेक्टर डॉ. भरत भोसले बताते हैं, ‘मानव शरीर में एक लसीका प्रणाली (Lymphatic System) होती है, जिसमें लिम्फ नोड्स (Lymph nodes) , प्लीहा(Spleen), थाइमस (Thymus) अस्थि मज्जा (Bone Marrow) शामिल होते हैं, जहां अलग-अलग ब्लड सेल्स का उत्पादन होता है। ये अंग विभिन्न संक्रमणों से लड़ने के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें से किसी भी अंग में होने वाले कैंसर को लिम्फोमा (What is Lymphoma) कहा जाता है।
इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया जा सकता है कि किसी भी मरीज में लिंफोमा क्यों विकसित होता है। यह कहा जा सकता है कि इसकी उत्पत्ति लिम्फोसाइट्स नामक कुछ कोशिकाओं से होती है, जो बैक्टीरिया, वायरस आदि से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
लिम्फोसाइट के विकसित होने के अलग-अलग चरणों में होने वाले आनुवंशिक परिवर्तन के कारण मयूटेशन होते हैं। ये मयूटेशन तय करते हैं कि लिंफोमा का प्रकार और ग्रेड क्या होगा।
1.आयु (Age): कुछ निम्न-श्रेणी के लिंफोमा बुढ़ापे में आम हैं। उनका कोर्स धीमी गति से बढ़ता है। कुछ लिंफोमा कम उम्र यानी उम्र के 5वें दशक में हो सकता है।
2. प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System): कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण होने वाला रेट्रोवायरल संक्रमण
3. हेपेटाइटिस और ईबी वायरस (Hepatitis and EB viruses ) : हेपेटाइटिस और ईबी वायरस जैसे वायरस और एच. पाइलोरी जैसे बैक्टीरिया के संक्रमण से लिम्फोमा हो सकता है।
1. गर्दन, बगल या कमर में लिम्फ नोड्स की दर्द रहित सूजन (Lymphoma ke lakshan) ।
2. लगातार थकान रहना
3. बुखार
4. रात के समय पसीना आना
5. बिना किसी स्पष्ट कारण के वजन कम होना
6. सांस लेने में दिक्कत होना
लिंफोमा का उपचार कुछ कारकों पर निर्भर करता है-
लिंफोमा के प्रकार, चरण, ग्रेड (aggressiveness), रोगी की आयु और अन्य कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं जैसे हृदय या गुर्दे की बीमारी से पीड़ित होने पर उपचार प्रभावित हो सकते हैं।
उपचार में शामिल हो सकता है – साधारण कीमोथेरेपी या कीमोइम्यूनोथेरेपी का संयोजन (simple chemotherapy or combination of Chemo immunotherapy)।
कुछ मामलों में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (Bone marrow transplant) की जरूरत पड़ती है।
जब सभी उपचार विफल हो जाते हैं, तो इम्यूनचेकपॉइंट इनहिबिटर और सीएआर-टी थेरेपी (Immune Checkpoint inhibitors and CAR-T therapy) को हाल ही में सफलतापूर्वक आजमाया गया है। कुल मिलाकर लिंफोमा का उपचार किया जा सकता है।
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