World Lupus Day : पुरुषों से ज्यादा महिलाओं के शरीर में सूजन का कारण बनता है ल्यूपस, एक्सपर्ट बता रहे हैं इससे जुड़े कुछ जरूरी फैक्ट्स
स्किन, घुटनों, लंग्स या शरीर के अन्य हिस्सों में होने वाली सूजन भले ही हमें सामान्य लगे। मगर कई बार वो ल्यूपस का एक लक्षण भी हो सकती है। लुपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो बॉडी में सूजन और विभिन्न प्रकार के लक्षणों का कारण बनती है। हर व्यक्ति को अलग तरह से प्रभावित करने वाली इस बीमरी के लक्षण कुछ लोगों में हल्के तो कुछ में तीव्र होते हैं। इस बीमारी का जोखिम एडोलेसेंस यानि किशोरावस्था से लेकर 30 साल की उम्र की महिलाओं में अधिक होता है। वर्ल्ड ल्यूपस डे (World Lupus Day) के संदर्भ में आइए जानते हैं इस स्वास्थ्य समस्या के बारे में कुछ जरूरी सवालों (FAQs about lupus) के जवाब।
वर्ल्ड ल्यूपस डे (World Lupus Day)
10 मई को विश्वभर में मनाए जाने वाले वर्ल्ड ल्यूपस डे (World Lupus Day) पर लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक किया जाता है। बताया जाता है कि किस प्रकार से आपका इम्यून सिस्टम बॉडी पर बैक अटैक कर सकता है। इस समस्या को समय रहते कंट्रोल करने के लिए लक्षणों के अलावा कारण और उपाय व सुझाव भी दिए जाते हैं। महिलाओं में बढ़ रही इस बीमारी के प्रति जानकारी रखना बेहद ज़रूरी है।
यहां हैं ल्यूपस से जुड़े कुछ जरूरी सवालों के जवाब
इस बारे में अधिक जानकारी दे रहे हैं सी के बिरला अस्पताल, गुरूग्राम में इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट, डॉ तुषार तायल।
डॉ तुषार कहते हैं, “रोग प्रतिरोधक क्षमता आमतौर पर हमें रोगो से बचाने का काम करती है। मगर ये एक ऐसी ऑटो इम्यून बीमारी है, जिससे हमारे शरीर के बॉडी पार्टस को नुकसान पहुंचने लगता है। इससे हमारी बॉडी में प्रोटीन बनने लगता है, जो शारीरिक अंगों में सूजन और दर्द का कारण साबित होता है। ये बीमारी अधिकतर महिलाओं में पाई जाती है।”
क्या है ल्यूपस
ल्यूपस एक ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जो बॉडी के सेल्स और टीशूज के लिए खतरनाक साबित होती है। इससे शारीरिक अंगों में होने वाली सूजन जोड़ों, स्किन, लंग्स, दिमाग, ब्लड सेल्स और हृदय को नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं। ल्यूपस से चेहरे की त्वचा भी प्रभावित होने लगती है। चेहरे पर तितली के फैले हुए पंखों के सामन दाग धब्बे नज़र आने लगते हैं।
ल्यूपस से ग्रस्त मरीज़ में पाए जाने वाले लक्षण
वो मरीज़ जो इस रोग से ग्रस्त है, वो दिनभर शरीर में दर्द, शारीरिक अंगों में ऐंठन, बुखार, एसिडिटी, तेज़ सिरदर्द और सीढ़िया चते वक्त सांस लेने में असुविधा का अनुभव करने लगते है। इसके अलावा बालों का झड़ना, चेहरे पर होने वाले दाग धब्बे और शरीर में सूजन का अनुभव होने लगता है। इसके अलावा अर्थराइटिस, बटरफ्लाई रैश और अलसर, याददाश्त का कमज़ोर होना और आंखों में भी रूखापन रहने लगता है।
ल्यूपस के प्रकार
एनसीबीआई के मुताबिक ल्यूपस की बीमारी असामान्य इम्यूनोलॉजिकल फ़ंक्शन के चलते होने वाली मल्टीसिस्टमैटिक इफ्लामेशन से जुड़ी हुई है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले मरीजों को अलग.अलग प्रकार की समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है। इसके कोई भी गंभीर या क्लीयर लक्षण नहीं पाए जाते हैं। ल्यूपस के चार मुख्य प्रकार हैं, नवजात और बाल चिकित्सा ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एनएलई) हैं, डिस्कॉइड ल्यूपस एरिथेमेटोसस (डीएलई), ड्रग.प्रेरित ल्यूपस (डीआईएल) और सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस (एसएलई)।
क्या हो सकते हैं ल्यूपस के कारण
ल्यूपस फाउनडेशन ऑफ अमेरिका के मुताबिक हार्मोंनल बदलाव, जेनेटिक्स और पर्यावरण के संपर्क में आने से लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं। हर 10 रोगियों में से नौ महिलाएं होती हैं।दरअसल, हार्मोन बॉडी में एक मैसंजर के तौर पर काम करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एस्ट्रोजेन और ल्यूपस में एक गहरा कनेक्शन है। हांलाकि ये हार्मोंन पुरुष और महिला दोनों में ही पाया जाता है।
किस उम्र में ज्यादा हाेता है ल्यूपस
ल्यूपस फाउनडेशन ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के हिसाब से हर साल ल्यूपस के 16,000 नए मामले सामने आते हैं। वहां इस वक्त करीब 1.5 मीलियन लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं। सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस यानि एस एल ई जो ल्यूपस का एक प्रकार है। इससे 70 फीसदी लोग ग्रस्त हैं।
रिपोर्ट में आगे यह भी कहा गया है कि ये रोग पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है। 12 वर्ष की आयु से लेकर 45 साल तक की महिलाएं इस रोग से ग्रस्त हो जाती है। इसके अलावा भारत में 1000 लोगों की आबादी में व्यक्ति ल्यूपस का मरीज पाया जाता है।
महिलाओं को ही ये बीमारी क्याें घेरती है?
वो महिलाएं, जिनमें पीरियड साइकिल से पहले या गर्भावस्था के दौरान जब एस्ट्रोजेन का उत्पादन अधिक होता है, ल्यूपस के लक्षण नज़र आने लगते हैं। वहीं शोधकर्ताओं के मुताबिक 50 से ज्यादा जीन ऐसी पाई गई है, जिन्हें ल्यूपस से जोड़कर देखा गया है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंहार्मोंस इंबैलेस, जेनेटिक्स और पर्यावरण के प्रभाव से ये बीमारी शरीर में डेवलप होने लगती है। इस बीमारी के लिए पूर्ण रूप से उपचार किया जाता है, जो समय के साथ शरीर में उत्पन्न होने वाले अलग अलग विकारों को दूर करने का काम करते हैं। ये हमारे हृदय, जोड़ों, लंग्स, बालों और बटर फ्लाई रैश के रूप में चेहरे को भी अफे्क्ट करती है।
क्या है इस बीमारी का उपचार
सबसे पहले मरीज में पाए जाने वाले लक्षणों को गहनता से जांचा जाता है। सबसे पहले उसके लिए ब्लड टेस्ट करवाना अनिवार्य है। इस टेस्ट के ज़रिए शरीर में यूरिक एसिड और क्रिटनिन के लेवल को चेक किया जाता है। उसके अलावा यूरिन टेस्ट भी बेहद ज़रूरी है। इसके ज़रिए किडनी की जांच भी होती है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड करवाया जाता है। इसकी मदद से लंग्स की जांच की जाती है। बीमारी का स्तर जांचने के बाद डाईट और दवाओं को निधार्रित किया जाता है। जांच के दौरान अगर किडनी में कोई समस्या है, तो उपचार के हिसाब से डायलिसिस करवाने की भी सलाह दी जाती है।
ये भी पढ़ें- ब्लोटिंग को कम कर लिवर डिटॉक्सिफिकेशन में आपकी मदद करेंगे ये 5 तरह के जूस