हमारे शरीर में बहने वाला खून फेफड़ों (Lungs) और अन्य ऊतकों (Tissues) तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। खून (Blood) एक प्रकार का कंपोजिट फ्लूड होता है, जो प्लाज़्मा, लाल रक्त कणिकाओं (RBC), श्वेत रक्त कणिकाओं (WBC) और प्लेटलेट्स से मिलकर बनता है। ब्लड डोनेशन (Blood Donation) और ब्लड ट्रांसफ्यूज़न (Blood Transfusion) आधुनिक चिकित्सा की देन हैं और दोनों एक-दूसरे से संबद्ध भी हैं। हालांकि ये दोनों अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं, लेकिन अक्सर लोगों को इन्हें लेकर गलतफहती रहती है। आज विश्व रक्तदान दिवस पर आइए जानते हैं रक्तदान के अलग-अलग (Types of Blood Donation) प्रकार।
दुनिया भर में 14 जून को विश्व रक्तदान या रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को ब्लड डोनेशन की आवश्यकता, उसकी अहमियत के बारे में जागरुक करते हुए रक्तदान के लिए प्रोत्साहित करना है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पढ़े-लिखे लोग भी रक्तदान के लिए आगे नहीं आते। संभवत: इसकी वजह बहुत सारे मिथ्स हैं। ब्लड डोनर डे के बहाने हम इन मिथ्स को भी दूर करते हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा सके।
ब्लड डोनेशन क्या है और किस परिस्थिति में रक्त के किस घटक की आवश्यकता होती है, इस बारे में विस्तार से बता रही हैं डॉ अमिता महाजन। डॉ अमिता इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट, पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी एंड ओंकोलॉजी हैं।
रक्त दान एक स्वैच्छिक क्रिया है, जिसके तहत कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से ब्लड बैंकों को अपना खून देता है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से एक बार में केवल 1 पाइंट ब्लड ही निकाला जाता है और हमारा शरीर 24 घंटे के अंदर इतना ही ब्लड दोबारा तैयार भी कर लेता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अलग-अलग प्रकार की जरूरतों के मुताबिक ब्लड डोनेशन भी अलग तरह का हो सकता है।
पहला प्रकार होता है ‘होल ब्लड डोनेशन’ (यानि संपूर्ण रक्तदान)। इसमें आप एक पाइंट ब्लड डोनेट करते हैं। इसके बाद ब्लड को प्लाज़्मा, रैड ब्लड सैल्स (आरबीसी) और प्लेट्लेट्स में विभाजित किया जाता है। ताकि एक यूनिट दान किए गए ब्लड से तीन अलग-अलग मरीजों की सहायता की जा सके।
ब्लड डोनेशन का दूसरा प्रकार एफेरेसिस कहलाता है। इसमें डोनर के शरीर से निकाले गए रक्त में से एक या अधिक घटकों को अलग करने के बाद शेष रक्त को वापस डोनर को चढ़ा दिया जाता है। इन घटकों में प्लेटलेट्स, प्लाज़्मा और कभी-कभी व्हाइट ब्लड सेल्स शामिल होते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है प्लेटलेट्स डोनेशन, में केवल प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं। ये कोशिकाएं उन मरीजों में ब्लीडिंग को रोकने में सहायक होती हैं, जिनके शरीर में प्लेटलेट्स कम होते हैं। प्लेटलेट्स अक्सर उन मरीजों को दिए जाते हैं जिनकी सर्जरी, ट्रांसप्लांट करवाना होता है, या जिन्हें कैंसर होता है अथवा जिन्हें खून नहीं जमने की शिकायत होती है।
प्लाज़्मा डोनेशन उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें ब्लड में से केवल प्लाज़्मा को अलग किया जाता है। प्लाज़्मा से रक्त को जमने (Blood clotting) में मदद मिलती है और इसमें एंटीबडीज़ होती हैं, जो इंफेक्शन से लड़ने में मददगार होती हैं। यह आमतौर से शॉक और ट्रॉमा से जूझ रहे मरीजों को क्लॉटिंग में मदद के लिए दिया जाता है।
ब्लड डोनेशन एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिससे जरूरतमंद लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। कोई भी स्वस्थ व्यक्ति बिना किसी जोखिम के हर 3 महीने में ब्लड डोनेट कर सकता है। हमेशा इस बात को याद रखें कि हरेक डोनेशन से तीन लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
ब्लड ट्रांसफ्यूज़न ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मरीज को खून का कोई एक घटक चढ़ाया जाता है। ब्लड ट्रांसफ्यूज़न में इंट्रावेनस लाइन (IV) की मदद से मरीज को डोनेटेड ब्लड या कंपोनेंट (घटक) चढ़ाया जाता है। इसकी जरूरत प्रायः एनीमिया, चोट या दुर्घटना होने पर, कैंसर, ट्रांसप्लांट, सर्जरी, और ब्लीडिंग डिसऑर्डर आदि के समय होती है।
यह भी जान लें
हालांकि ब्लड ट्रांसफ्यूज़न आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है, लेकिन कभी-कभार कुछ जटिलताएं भी हो सकती हैं। हल्की-फुल्की जटिलताएं या दुर्लभ लेकिन गंभीर जटिलताएं ट्रांसफ्यूज़न के दौरान या कई दिनों के बाद हो सकती हैं।
कुछ सामान्य रिएक्शंस में एलर्जिक रिएक्शन शामिल हैं, जिनमें पित्ती, बुखार या खुजली आना शामिल है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन से एचआईवी, हेपेटाइटिस बी या सी की आशंका कम होती है क्योंकि ब्लड की पूरी जांच की जाती है।
इसलिए जब भी ब्लड प्रोडक्ट लें तो सुरक्षा की दृष्टि से किसी मान्यताप्राप्त लैब से ही लें। इसके अलावा, ट्रांसफ्यूज़न ट्रांसमिटेड इंफेक्शंस (टीआईएस) से बचने के लिए एनएटी (न्यूक्लिएक एसिड टेस्टिंग) टेस्टेड ब्लड ही लेना चाहिए।
यह भी पढ़ें – World Blood Donor Day : इम्युनिटी और हृदय स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है रक्त दान करना, जानिए कैसे