मस्तिष्क को होने वाली गंभीर बीमारी है-अल्जाइमर (Alzheimer’s Disease) । मेमोरी लॉस और भ्रम (memory loss and confusion) का यह एक गंभीर मस्तिष्क विकार (Chronic Brain Disorder) है। यदि समय पर इसका निदान और प्रबंधन नहीं किया जाता है, तो यह किसी की सीखने, सोचने, तर्क करने, याद रखने, समस्या सुलझाने, निर्णय लेने और ध्यान देने की मानसिक क्षमताओं पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। इससे दैनिक जीवन की गतिविधियां और भावनाओं पर नियंत्रण भी कठिन हो जाता है। इसलिए हर साल पूरे सितंबर माह को अल्जाइमर माह (Alzheimer’s Month September) के रूप में नामित किया जाता है। 21 सितंबर को वर्ल्ड अल्जाइमर डे (World Alzheimer’s Day 2023- 21 September) के रूप में मनाया जाता है।
वर्ल्ड अल्जाइमर डे विश्व अल्जाइमर दिवस ((World Alzheimer’s Day) हर वर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है। अल्जाइमर डिजीज और डिमेंशिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़े स्टिग्मा (Alzheimer’s stigma) को चुनौती देने के लिए यह वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। वर्ल्ड अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार दुनिया भर में 5.5 करोड़ से अधिक इस भयानक बीमारी से पीड़ित हैं। इस वर्ष वर्ल्ड अल्जाइमर डे की थीम ((World Alzheimer’s Day 2023 theme) है-न कभी बहुत जल्दी, न कभी बहुत देर(Never too early, never too late)।
प्राइमस सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डायरेक्टर (न्यूरोसर्जरी) डॉ. रवींद्र श्रीवास्तव बताते हैं, डिमेंशिया पर हुए शोध बताते हैं कि दुनिया में लगभग 5 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। इनमें से 60%-70% लोगों के अल्जाइमर रोग से पीड़ित होने का अनुमान है। भारत में 60+ आयु वर्ग के वयस्कों में डिमेंशिया का अनुमानित प्रसार 7.4% है। आयु, शिक्षा स्तर, लिंग और शहरी ग्रामीण आबादी में अंतर भी इसे आंकड़े को प्रभावित कर सकता है। कोविड ने भी ब्रेन हेल्थ को प्रभावित किया है।
बीएलके मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में एसोसिएट डायरेक्टर (न्यूरोलॉजी और न्यूरोवास्कुलर इंटरवेंशन) डॉ. विनीत बांगा बताते हैं, ‘मेडिकली 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति के शरीर की कार्यक्षमता और महत्वपूर्ण अंगों की कार्यक्षमता घटने लगती है। इनमें ब्रेन भी शामिल है। 65 साल की उम्र के बाद हर 5 साल में अल्जाइमर होने का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। यह डेटा यूनाइटेड किंगडम की नेशनल हेल्थ सर्विस द्वारा लंबे शोध पर आधारित है। बढ़ती उम्र में यदि व्यक्ति के जीवन में किसी भी कारण से बहुत अधिक तनाव रहने लगता है।यह तनाव (Stress) सालों साल बना रहता है, तब भी याददाश्त संबंधी समस्या हो सकती है।
डॉ. रवींद्र श्रीवास्तव के अनुसार, किसी बुजुर्ग का परिवार उसे अकेला छोड़ दे, बच्चे ध्यान ना दें, घर में उसकी कोई केयर ना हो. तो इस तरह स्थिति में व्यक्ति पहले इमोशनल ट्रॉमा से गुजरता है और फिर धीरे-धीरे उसका ब्रेन डिप्रेशन और मेमोरी संबंधी समस्याओं की तरफ बढ़ सकता है। कोई हादसा भी हो जाए, तब भी व्यक्ति याददाश्त संबंधी समस्या का शिकार हो सकता है। यदि व्यक्ति के सिर में गहरी चोट लग जाती है और इससे दिमाग का याददाश्त को स्टोर करने वाला हिस्सा हिप्पोकैंपस (Hippocampus) क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब भी व्यक्ति को याददाश्त संबंधी समस्या हो सकती है।
डॉ. विनीत बांगा के अनुसार, यह गंभीर बीमारी न केवल मरीजों बल्कि उनके परिवारों और दोस्तों पर भी असर डालती है। यदि किसी के परिवार में डिमेंशिया या अल्जाइमर के मरीज हैं, तो उन्हें और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। फैमली हिस्ट्री भी भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारियों से बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इन उपायों से उनके लक्षणों को जरूर कम किया जा सकता है।
सही आहार (Balanced Diet) , नियमित व्यायाम (Regular Exercise) और स्वस्थ जीवनशैली (Healthy Lifestyle) बचाव में मदद कर सकती हैं।
मानसिक चुस्ती बचाव में मदद कर सकती है, जैसे कि सुडोकू खेलना और मेंटल हेल्थ पर प्रभाव डालने वाले वर्कआउट्स करना।
यदि किसी को लक्षण दिखाई देते हैं, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। एक हेल्थकेयर टीम के साथ काम करना, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेशनल थेरपिस्ट्स, और सोशल वर्कर्स शामिल हो सकते हैं।
रोगी को परिवार और दोस्तों का साथ, समर्थन और समझदारी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। यदि आपके परिवार में किसी को इस तरह की बीमारी हो, तो उन्हें उचित देखभाल प्रदान करने के लिए तैयार रहना जरूरी है। समय पर निदान पाने के लिए न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह सबसे अधिक जरूरी है।
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