इम्यून सिस्टम कमजोर होने और शरीर पर पैथोजेन के अटैक से किसी व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इन डिजीज का अलग-अलग तरह की मेडिसिन और उपचार विकल्पों से ठीक किया जाता है। जबकि कुछ रोग इतने असामान्य होते हैं कि उनका उपचार कर पाना तो दूर लोग उनके होने का कारण और लक्षण भी नहीं समझ पाते। ऐसी बीमारियों को रेयर डिजीज की सूची में रखा जाता है। ऐसी ही दुर्लभ बीमारियों के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए ही रेयर डिजीज डे (Rare Disease Day) या दुर्लभ रोग दिवस मनाया जाता है।
दुनिया भर में 30 करोड़ से अधिक लोग दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं। कम समझ और कम चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण इनसे पीड़ित लोग समाज में उपेक्षित जीवन जीते हैं। दुर्लभ बीमारियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए दुर्लभ रोग दिवस फरवरी महीने के आखिरी दिन मनाया जाता है। 29 फरवरी एक दुर्लभ तारीख है, जो हर चार साल में केवल एक बार आती है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य आम जनता और स्वास्थ्य विशेषज्ञ के बीच दुर्लभ बीमारियों और रोगियों के जीवन पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन दुर्लभ बीमारी को अक्सर प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 या उससे भी कम की व्यापकता के साथ आजीवन दुर्बल करने वाली बीमारी या विकार के रूप में परिभाषित करता है। भारत की जनसंख्या के अनुसार, 10 हज़ार लोगों में से 1 को रेयर डिजीज हो सकती है। रेयर डिजीज 2024 की थीम है ‘दुनिया भर में दुर्लभ स्थिति से जूझ रहे 300 करोड़ लोगों के लिए समानता हासिल करना’ (achieving true equity for 300 million people across the world who live with a rare condition)।
पूरे विश्व में 30 करोड़ लोग रेयर डिजीज से पीड़ित हैं। विश्व स्तर पर लगभग 6000 से 8000 दुर्लभ बीमारियां मौजूद हैं। मेडिकल लिटरेचर में नियमित रूप से नई दुर्लभ बीमारियां बताई जाती हैं।
दुर्लभ बीमारियों में दुर्लभ कैंसर, ऑटोइम्यून रोग, जन्मजात डिसऑर्डर और संक्रामक रोग भी शामिल हैं। लगभग आधी दुर्लभ बीमारियां बच्चों को प्रभावित करती हैं, जबकि बाकी एडल्ट एज में प्रकट होती हैं।
कई अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में वर्तमान में दुर्लभ बीमारियों की कोई मानक परिभाषा और प्रसार पर सही डेटा उपलब्ध नहीं है। भारत में अब तक अस्पतालों से लगभग 450 दुर्लभ बीमारियां दर्ज की गई हैं। आमतौर पर बताई जाने वाली बीमारियों में प्राइमरी इम्यूनोडेफिशिएंसी डिसऑर्डर, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर, म्यूकोपॉलीसेकेराइडोस, पोम्पे डिजीज, फैब्री रोग आदि हैं।
इनके अलावा मेटाबोलिज्म से संबंधी जन्मजात बीमारियां मेपल सिरप यूरीन डिजीज, कार्बनिक एसिडेमिया आदि हैं। सिस्टिक फाइब्रोसिस, कुछ प्रकार की मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी भी भारत में होती हैं ।
यह दुनिया की सबसे दुर्लभ बीमारी मानी जाती है। राइबोस-5-फॉस्फेट आइसोमेरेज़ (आरपीआई) मानव शरीर में मेटाबोलिज्म एक्टिविटी में महत्वपूर्ण एंजाइम है। यह स्थिति मांसपेशियों में अकड़न, सीजर और ब्रेन में व्हाइट फ्लूइड की कमी का कारण बन सकती है। आरपीआई की कमी का एकमात्र ज्ञात मामला 1984 में निदान किया गया था और तब से कोई मामला नहीं आया है।
प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी वाले लोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती। इसका मतलब यह है कि पीआई वाले लोगों में संक्रमण होने और उनके बहुत अधिक बीमार होने की संभावना अधिक होती है। ये 400 से अधिक प्रकार के हो सकते हैं। इनके प्रभाव अलग-अलग होते हैं। जल्दी पता लगने पर कुछ लक्षणों पर कंट्रोल किया जा सकता है।
मेटाबोलिज्म की इन्बॉर्न डिसऑर्डर, जो लाइसोसोम की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के कारण विभिन्न अंगों की कोशिकाओं में सब्सट्रेट के अधिक मात्रा में जमा होने से होती हैं। वे उन अंगों की शिथिलता का कारण बनते हैं, जहां वे जमा होते हैं। ये गंभीर बीमारी और फिर मृत्यु का कारण बनते हैं।
पोम्पे डिजीज एक आनुवंशिक स्थिति है, जिसमें शरीर की कोशिकाओं के लाइसोसोम में ग्लाइकोजन नामक एक काम्प्लेक्स शुगर का निर्माण होता है। यह बीमारी तब होती है, जब आपके अंदर एसिड अल्फा-ग्लूकोसिडेज़ (GAA) नाम का एक विशिष्ट डाइजेस्टिव एंजाइम की कमी हो जाती है। यह स्थिति मांसपेशियों में गंभीर कमजोरी का कारण बनती है।
फ़ैर्बी की बीमारी में शरीर में ग्लिकोलिपिड जैसे फैट को तोड़ने के लिए ज़रूरी एंज़ाइम मौजूद नहीं होता है। यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर (genetic lysosomal storage disorder) है। ब्लड वेसल्स और टिश्यू में फैट जमा होने लगते हैं, जो आंखों की समस्याएं, किडनी फ़ेल होना और दिल की बीमारी, स्ट्रोक का कारण बनते हैं।
मेपल सिरप यूरीन डिजीज दुर्लभ बीमारी है, जो जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण होती है। आम तौर पर हमारा शरीर मांस और मछली जैसे प्रोटीन खाद्य पदार्थों को अमीनो एसिड में तोड़ देता है। इस रोग के कारण शरीर कुछ प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक अमीनो एसिड को प्रोसेस नहीं कर सकता है। इससे ब्लड और यूरीन में हानिकारक पदार्थों का निर्माण होता है।
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