घर में नन्हें मेहमान के स्वाग की तैयारियां चल रही हैं तो इस चहल पहल के बिच बच्चे की सेहत को ध्यान में रखते हुए आपके लिए जरुरी है कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना। हालांकि पेरेंट्स तो पहले दिन से ही बेबी के लिए खुद को तैयार कर रहे होते हैं। यकीनन आपने भी अपने बेबी के लिए हर वह रस्म, रिवाज और टिप्स जरूर फॉलो किए होंगे, जो उसके जीवन को सुरक्षित और स्वस्थ बना सकते हैं। ऐसा ही एक जरूरी नियम है इम्यूनाइजेशन। अलग-अलग समय पर लगने वाले इन टीकों के बारे में सभी को जागरुक करने के उद्देश्य से इस साल 16 मार्च को नेशनल इम्यूनाइजेशन डे (National immunization day) के तौर पर मनाया जा रहा है।
इस दिन सरकार और अन्य संस्थाओं द्वारा तरह-तरह के कैंपेन चलाकर माता-पिता को इम्यूनाइजेशन के प्रति अवगत कराने की कोशिश की जाती है।
कोरोनावायरस से लेकर मंकीपॉक्स जैसी बीमारी का लोगों ने सामना किया है। इनके अनुभव दर्दनाक और भयावह रहे हैं। वहीं कुछ ऐसी बीमारियां भी थीं जिन्होंने कई बच्चों का बचपन छीन लिया। पोलियो, खसरा, हेपेटाइटिस बी, चेचक, ट्यूबरक्लोसिस, इनफ्लुएंजा ऐसी ही बीमारियां हैं। जिनका एक समय में बहुत आतंक था। इन खतरनाक बीमारियों के चलते कईयों ने अपनी जान गंवा दी, तो कई बच्चे शारीरिक रूप से अक्षम हो गए। शुक्र है कि वैज्ञानिकों ने इस बीमारियों से बचाव के टीके ढूंढे। यही वजह है कि बच्चों को जन्म के बाद से ही इन खतरनाक बीमारियों से बचाव के लिए टीके लगाने शुरू कर दिए जाते हैं।
वैक्सीन इम्यून सिस्टम को बूस्ट करती है और शरीर को इन सभी बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार करती है। इसकी तैयारी बच्चे के जन्म लेते ही शुरू हो जाती है और एक उचित समयकाल पर उन्हें अलग-अलग बीमारियों से बचाव के लिए अलग-अलग तरह की वैक्सीन्स लगाई जाती हैं। अगर आपके घर में भी कोई नन्हा मेहमान आया है, तो जान लीजिए उन टीकों को बारे में जो शिशु को भविष्य में कई गंभीर बीमारियों से बचाते हैं।
गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए टीका लगाने की प्रक्रिया को इम्यूनाइजेशन यानी कि टीकाकरण कहते हैं। इम्यूनाइजेशन इम्यूनिटी बूस्ट करने में मदद करता है। एक मजबूत इम्यून सिस्टम शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से प्रोटेक्ट करता है। इम्यूनाइजेशन इंजेक्शन, ओरल सप्लीमेंट और स्प्रे के रूप में भी हो सकता है। ताकि शिशुओं को आने वाली बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार किया जा सके।
यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रंस फंड (unicef) के अनुसार बच्चों को दी जाने वाली सभी वैक्सीन्स हजारों तरह की टेस्टिंग और क्लिनिकल ट्रायल से गुजरती हैं। इसके बाद ही इन्हें लगाने की अप्रूवल दी जाती है। इसलिए ये पूरी तरह सुरक्षित होते हैं। हालांकि कुछ वैक्सीन्स के साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं। पर इनका प्रभाव कुछ समय तक ही रहता है। परंतु यदि इन्हें न लगवाया जाए, तो आगे चलकर यह गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है।
यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रंस फंड (unicef) के अनुसार बच्चे को कुछ आवश्यक वैक्सीन लगवाना जरूरी है। तो चलिए जानते हैं किस वक्त और कौन सा वैक्सीन लगवाना है।
1. बीसीजी वैक्सीन – जन्म से लेकर 1 साल के अंतर्गत।
यह बच्चों में होने वाले ट्यूबरक्लोसिस से बचाव का काम करता है।
2. हेपिटाइटिस बी वैक्सीन – जन्म के समय।
हेपिटाइटिस बी वैक्सीन बच्चों में हेपिटाइटिस बी वायरस के कारण होने वाले लीवर इन्फेक्शन से बचाव का काम करता है। यह वायरस लिवर कैंसर से लेकर अन्य तरह की गंभीर समस्यायों का कारण बन सकता है।
3. ओरल पोलियो वैक्सीन – जन्म के समय से लेकर 6, 10 और 14 हफ्तों के बच्चे को लगाया जाता है। इसके साथ ही 16 से 24 महीनों के बच्चों को इसकी बूस्टर डोज दिलवाना भी जरूरी है।
पोलियो वैक्सीन पोलियो वायरस से होने वाले बॉडी इन्फेक्शन से बचाव का काम करती है।
4. पेंटावेलेंट वैक्सीन – 6, 10 और 14 हफ्ते के बच्चों को लगवाया जाता है।
डिप्थीरिया, परट्यूसिस, टेटनस, हेपेटाइटिस बी, एचआईवी और निमोनिया जैसी गंभीर समस्याओं से बचाव का काम करता है।
5. रोटावायरस वैक्सीन – 6, 10 और 14 हफ्ते के बच्चों को लगवाया जाता है।
रोटावायरस वैक्सीन रोटावायरस इन्फेक्शन से होने वाली समस्या जैसे दस्त से बचाव का काम करता है।
6. एफआईपीवी वैक्सीन – इसके 2 डोज लगवाए जाते हैं। एक 6 हफ्ते पर और दूसरा 16 हफ्ते पर।
एफआईपीवी वैक्सीन को लकवा ग्रस्त पोलियो से बचाव के लिए लगवाया जाता है।
7. खसरा और रूबेला वैक्सीन – इसके दो डोज लगवाए जाते हैं। एक 9 से 12 महीने पर और दूसरा 16 से 24 महीने पर।
यह हसीन खसरा और रूबेला कि समस्या से बच्चों को बचाता है। खसरा और रूबेला जैसी समस्या का कोई उचित इलाज नहीं है। इसलिए इसके वैक्सीन को किसी कीमत पर स्किप न करें।
8. डीपीटी वैक्सीन – इसके दो डोज लगाए जाते हैं। पहला 16 से 24 महीने पर और दूसरा 5 से 6 साल पर।
इस वैक्सीन को डिप्थीरिया, परट्यूसिस और टेटनस से बचाव के लिए लगवाया जाता है।
9. टीडी वैक्सीन – इस वैक्सीन का डोज न केवल बच्चों को बल्कि प्रेग्नेंट महिलाओं को लगवाना भी जरूरी है।
बच्चों के लिए – इसके दो डोज लगते हैं। पहला 10 साल पर और दूसरा 16 साल पर।
प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए – पहला डोज प्रेगनेंसी के शुरुआती चरण में और दूसरा डोज पहले डोज के 4 हफ्तों के बाद।
टीडी वैक्सीन को टेटनस और डिप्थीरिया से बचाव के लिए लगवाया जाता है।
10. पीसीवी वैक्सीन – पहला डोज 6 हफ्ते पर, दूसरा डोज 14 हफ्ते पर और इसका बूस्टर डोज 9 महीने पर।
न्यूमोकोकल निमोनिया से बचाव के लिए इस वैक्सीन को लगवाया जाता है।
11. जेई वैक्सीन – इसके दो डोज लगवाए जाते हैं। पहला डोज 9 से 12 महीने पर दूसरा डोज 16 से 24 महीने पर।
जेई वैक्सीन जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस और ब्रेन फीवर से बचाव करता है।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन द्वारा इम्यूनाइजेशन को लेकर प्रकाशित एक डेटा के अनुसार नवजात शिशुओं का इम्यून सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं होता, जिस वजह से बच्चों में गंभीर बीमारी और इन्फेक्शन होने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में टीकाकरण इम्यून सिस्टम को बूस्ट करता है और शरीर को होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार करता है। इसके साथ ही शरीर पर वायरस, बैक्टीरिया, इत्यादि से होने वाले इनफेक्शन के प्रभाव को भी कम कर देता है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड हुमन सर्विसेज के अनुसार टीकाकरण की कमी के कारण कुछ साल पहले तक बच्चे कम उम्र में ही बीमारियों का शिकार हो जाते थें। साथ ही कई बच्चे विकलांग और शारीरिक रूप से असमर्थ हो जाते थें। इतना ही नहीं कइयों ने अपनी जान भी गवाई हैं।
उदाहरण के तौर पर आप चेचक की समस्या को ले सकती हैं। पहले इस बीमारी का टीका लगना बहुत जरूरी था, परंतु धीरे-धीरे यह बीमारी खत्म हो गई और फिर इसका टीकाकरण भी बंद हो गया। वहीं पहले पोलियो की समस्या भी एक गंभीर समस्या थी परंतु जबसे इसके लिए वैक्सीन आया है तबसे इसका प्रभाव भी पूरी तरह घट गया है। इसलिए बच्चों को समय से आवश्यक टीका लगवाना जरूरी है। टीकाकरण भावी जनरेशन को स्वस्थ बनाता है और होने वाले संक्रमण और बीमारियों से दूर रखता है।
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