Myopia : दिल्ली सहित देश भर में कमजाेर हो रही है बच्चों की पास की नजर, जानिए क्या कहते हैं शोध
भारतीय बच्चों में मायोपिया (myopia) यानी निकट दृष्टिदोष (shortsightedness) तेज़ी से बढ़ ( myopia in children) रहा है। इसमें बच्चों को दूर की चीज़ें देखने में कठिनाई होने लगती है। मायोपिक बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इन पर लगातार रिसर्च हो रहे हैं। शोध बताते हैं कि इन दिनों बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। कोरोना महामारी के बाद बच्चों की ऑफलाइन क्लासेस शुरू हो गई हैं। इसके बावजूद बच्चे स्कूल से लौटते ही फोन, लैपटॉप जैसे गैजेट्स से चिपक जाते हैं। 5-6 घंटे तक लगातार स्क्रीन टाइम बच्चों के रेटिना को प्रभावित कर सकता है। नतीजा आंखों की रोशनी घटने (Myopia in children) के रूप में सामने आती है।
दिल्ली के स्कूली बच्चों में मायोपिया पर अध्ययन (Study on Myopia in school children of Delhi)
वर्ष 2017 में उत्तर भारत मायोपिया अध्ययन (North India Myopia Study) ने दिल्ली में स्कूल जाने वाले बच्चों में मायोपिया की घटनाओं और मायोपिया की प्रगति से जुड़े कारकों का मूल्यांकन किया। इसके लिए दिल्ली में शहरी स्कूली बच्चों में मायोपिया की प्रगति और संबंधित कारक पर अध्ययन किया गया। इस स्टडी को रोहित सक्सेना, प्रवीण वशिष्ठ, राधिका टंडन, रवींद्र एम. पांडे, अमित भारद्वाज, विवेक गुप्ता, विमला मेनन ने पूरा किया।
इसके अंतर्गत 5 से 15 वर्ष की आयु के 10,000 स्कूली बच्चों का अध्ययन किया गया। इसके तहत 1 वर्ष के अंतराल के बाद नए मायोप्स की पहचान और पहले निदान किए गए मायोपिक बच्चों में मायोपिया की प्रगति की पहचान की गई।
बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी की कमी है प्रमुख कारक (Lack of outdoor activity in children)
जब 97.3% कवरेज के साथ 9,616 बच्चों की दोबारा जांच की गई, तो 1 साल में मायोपिया -1.09 ± 0.55 के औसत डायोप्ट्रिक परिवर्तन के साथ मायोपिक बच्चों की बढ़ी हुई संख्या 3.4% थी। बड़े बच्चों की तुलना में छोटे बच्चों में मायोपिया की अधिक प्रगति देखी गई। पढ़ने-लिखने के अलावा कंप्यूटर/वीडियो गेम का उपयोग, टेलीविजन देखना मायोपिया की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण जोखिम कारक माना गया।
बाहरी गतिविधियों या बाहर बिताया गया समय एक दिन में 2 घंटे से बहुत कम होना भी मायोपिया की प्रगति के कारक बने। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि मायोपिया भारत में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है। यह कंप्यूटर और वीडियो गेम के उपयोग के साथ लंबे समय तक पढ़ने और स्क्रीन समय से जुड़ा हुआ है। स्कूली बच्चों में मायोपिया की वृद्धि को रोकने के लिए बच्चों की हर वर्ष आई चेकअप की जानी चाहिए और बाहरी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
हर रोज न्यूनतम दो घंटे बाहर खेलना है जरूरी है
इंटरनेशनल मायोपिया इंस्टीट्यूट के जोस्ट बी जोंस और उनके सहकर्मियों ने ईस्ट और साउथ ईस्ट एशिया में बच्चों में बढ़ रहे मायोपिया की वजहों पर स्टडी की। अपनी स्टडी में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि एशियाई देशों के बच्चे घर से बाहर आउटडोर एक्टिविटी में बहुत कम समय बिताते हैं।
आउटडोर एक्टिविटी की कमी ही स्कूली बच्चों में मायोपिया के विकास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पैरामीटर साबित हुआ है। वहीं सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में बच्चों में मायोपिया पर अध्ययन किया गया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि रोजाना दो घंटे से अधिक समय बाहर बिताने के कारण बच्चों में भी मायोपिया का जोखिम घट गया।
पारंपरिक अध्ययन भी बताते हैं कि घर से बाहर अधिक समय खर्च करने से बच्चों में मायोपिया की घटनाओं में कमी आई। एक मेटा-विश्लेषण केअनुमान के मुताबिक़ प्रति सप्ताह बाहर बिताए गए प्रत्येक अतिरिक्त घंटे के लिए मायोपिया विकसित होने की संभावना 2% कम हो गई।
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