देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले रोजाना 2 लाख से अधिक दर्ज किए जा रहे हैं। बढ़ते संक्रमण के बीच लोग बचाव के कई उपाय आजमा रहे हैं। बीते कुछ समय से कोरोना वायरस संक्रमण के नए वैरिएंट ओमिक्रोन पर असरदार दवा बताई जाने वाली Molnupiravir पर विवाद चल रहा है।
एक तरफ जहां इस दवा को लेकर डिमांड बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इसको लेकर चेतावनी भी जारी की जा रही है। आखिर यह दवा क्या सच में कोविड-19 के ओमिक्रोन संक्रमण से बचाने में मदद कर सकती है? और क्या इसके दुष्प्रभाव हैं, इस बारे में लोग जानना चाहते हैं । तो आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
संक्रमण के दौर में यह कोई पहली दवा नहीं है जिसको लेकर डिमांड काफी तेज है इससे पहले दूसरी लहर के समय रेमडिसिवर (remdisiver) इंजेक्शन को लेकर भी काफी मांग देखी जा रही थी। लेकिन Molnupiravir एक ऐसी दवा है जिसे अमेरिका में ट्रायल के बाद संक्रमित व्यक्ति पर इजाजत दे दी गई है। भारत में भी इमरजेंसी यूज़ के लिए इसे इजाजत मिल चुकी है। तो आखिर विशेषज्ञ क्यों इस दवा को खतरनाक बता रहे हैं?
Molnupiravir दवा अमेरिका की फार्मा कंपनी रिजबैक बायोथेरापेटिक्स (Ridgeback Biotherapeutics) द्वारा एक अन्य कंपनी के साथ मिलकर तैयार की गई है। इसका परीक्षण भी अमेरिका में किया गया। जिसके बाद इसे संक्रमित मरीजों को दी जाने की सलाह दी गई।
भारत में भी यह दवा इमरजेंसी यूज़ के लिए इस्तेमाल की जा रही है। जिसकी इजाजत भारत के ड्रग रेगुलेटर DGCI ने 28 दिसंबर को दी थी। भारत में कई कंपनियां इस दवा को बनाने की जिम्मेदारी उठा रही हैं, जिसमें डॉ रेड्डी एक बड़ा नाम है।
दावा किया जा रहा है कि यह दवा कोरोना मरीज को हॉस्पिटलाइजेशन और मौत के खतरे को कम करने के लिए दी जा रही है। हालांकि आईसीएमआर के साथ-साथ कई राज्यों की सरकारें भी इस सतर्कता के साथ यूज करने की सलाह दे रही हैं।
मोलनुपिराविर कोरोना की एंटीवायरल दवा का ट्रायल अमेरिका में तीन चरणों में किया गया। यह ट्रायल क्लीनिकल ट्रायल था जिसे एक मशहूर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित किया गया। ट्रायल का रिजल्ट बताता है कि यह दवा हॉस्पिटलाइजेशन और कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के डेथ को रोकने में 30% तक प्रभावी है। आंकड़े देखे जाएं तो 30% प्रभावी होना बहुत कम है।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका में इस दवा का ट्रायल मात्र 1400 संक्रमित मरीजों पर किया गया था। 1400 लोगों में करीब 700 कोविड मरीजों पर पर इस दवा का ट्रायल किया गया। बाकी 700 लोगों को नॉर्मल ट्रीटमेंट दिया गया।
ट्रायल में पता चला कि जिन लोगों को मोलनुपिराविर दवा दी गई थी और बाकी 700 को नार्मल ट्रीटमेंट दिया गया था। ट्रायल में पाया गया कि जिन 700 संक्रमित मरीजों को कोरोना की एंट्री वायरल ड्रग मोलनुपिराविर दी गई, उनमें हॉस्पिटलाइजेशन सिर्फ 3% तक कम हुआ। जिसके अनुसार यदि 80 लोगों को यह दवा दी गई, तो उनमें से सिर्फ दो या तीन लोगों को ही अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आएगी।
5 जनवरी को आयोजित एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के प्रमुख डॉ बलराम भार्गव ने कहा है कि मोलनुपिरवीर को टेराटोजेनिकिटी जैसी सुरक्षा चिंताओं के कारण कोविड उपचार प्रोटोकॉल में शामिल नहीं किया गया था। इस दवा से उत्परिवर्तन और मांसपेशियों की क्षति का जोखिम है।
गौर करने वाली बात यह है कि जब इस दवा का ट्रायल अमेरिका में किया गया तब वहां पर कोरोना वायरस संक्रमण के नए वैरिएंट ओमिक्रोन के मामले बेहद कम थे। जबकि भारत में इस दवा का ट्रायल नहीं किया गया है। नए वैरिएंट पर यह दवा कितनी मददगार होगी इस पर कोई भी डाटा मौजूद नहीं है।
बीते सोमवार को महाराष्ट्र सरकार ने सभी जिलों और निगमों को नई एंटीवायरल दवा का उपयोग सावधानी से करने की सलाह दी है। एक लेटर जारी करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रदीप व्यास ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र के कोविड रोगियों और गर्भवती महिलाओं को दवा नहीं दी जानी चाहिए। यह भी कहा गया है कि प्रजनन आयु वर्ग में महिलाओं को इस दवा से बचना चाहिए।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पत्र में लिखा गया “मोलनुपिरवीर के साथ सबसे बड़ी चिंता प्रजनन कोशिकाओं पर प्रेरित उत्परिवर्तन जैसे नर और मादा युग्मक जैसे प्रतिकूल प्रभावों की संभावना है। “दूसरा, तेजी से विभाजित होने वाली कोशिकाएं हड्डी और उपास्थि में उत्परिवर्तन जमा कर सकती हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोलनुपिरवीर, जब उप-इष्टतम खुराक में लिया जाता है, तो यह सबलेटल म्यूटेशन का कारण बन सकता है और आगे के वैरिएंट को बनाए रख सकता है। इसलिए, एक बार दवा शुरू करने के बाद, पूरा कोर्स करना बहुत महत्वपूर्ण है।
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