हाल में इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने इंडियन प्रोफेशनल ख़ासकर युवा और स्वस्थ व्यक्तियों को सप्ताह में 70 घंटे काम करने का सुझाव दे दिया। इसके कारण उन्हें सोशल मीडिया पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। उनकी इस बात पर बेंगलुरु स्थित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक कृष्णमूर्ति ने बताया कि सप्ताह के सातों दिन काम करने पर स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण हृदय संबंधी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। डॉ. कृष्णमूर्ति के अनुसार, बहुत ज्यादा घंटे काम करने के कारण डॉक्टर भी लंबी आयु नहीं जी पाते हैं। जानते हैं बहुत अधिक काम करने पर हार्ट पर क्या असर (side effects of long working hours) पड़ता है?
वर्ल्ड हेल्थ ओर्गेनाइज़ेशन की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में स्ट्रोक और दिल के दौरे से लगभग 7,45000 लोगों की मौत हो गई। स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि लंबे समय तक काम करने से गतिहीन जीवनशैली, नींद न आना, खराब आहार और तनाव (lagatar kaam karne ke heart par prabhav) होता है। ये सभी कारक दिल पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने अपने शोध में लंबे समय तक काम करने और स्वास्थ्य समस्याओं के बीच कनेक्शन देखा। ये कुछ लोगों में स्ट्रोक और टाइप 2 डायबिटीज का कारण (side effects of long working hours) बनते हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि प्रति सप्ताह लगभग 55 घंटे काम करने वाले लोगों में सप्ताह में 35-40 घंटे काम करने की तुलना में हृदय रोग का बहुत अधिक खतरा होता है। दरअसल ज्यादा घंटों तक काम करने से स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है। नींद की कमी और ब्लड प्रेशर में वृद्धि भी इसके कारण हो जाता है। प्रति सप्ताह 55 घंटे से अधिक काम करने पर कोरोनरी हार्ट डिजीज के खतरे में वृद्धि हो सकती है।
दिन भर काम करने का मतलब है कि आराम करने और अपना ख्याल रखने के लिए किसी भी व्यक्ति के पास बहुत कम समय है। तनाव भी भूमिका निभा सकता है। अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि लंबे समय तक काम करने से दिल को नुकसान पहुंचता है। इसके कारण ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, कोलेस्ट्रॉल लेवल हाई हो सकता है।
लॉन्ग वर्किंग ऑवर का प्रभाव आहार और व्यायाम पर भी पड़ता है। काम के तनाव के कारण व्यक्ति सिगरेट-शराब का भी सेवन कर सकता है। इनका बुरा प्रभाव भी हार्ट पर पड़ता है। काम और आराम के लिए समय के बीच संतुलन जरूरी है। लंबे समय तक काम करने पर हाई लेवल स्ट्रेस का दवाब बन सकता है। इसके कारण सेल्फ केयर के लिए पर्याप्त समय मिल पाना संभव नहीं है।
यह सच है कि कॉर्पोरेट वर्ल्ड में हर तरफ से एम्प्लोई पर दवाब बनाया (side effects of long working hours) जाता है। लेकिन काम और आराम के समय के बीच सीमा निर्धारित करें। अपनी क्षमता के अनुसार, यह तय करें कि आप कब काम कर रही हैं और कब आप सेल्फ केयर के लिए ब्रेक ले रही हैं। वर्क फ्रॉम होम की स्थिति में ऐसे स्थान पर काम करें, जो उस स्थान से अलग हो जहां आप अपना ख़ाली वक्त बिताती हैं। सेल्फ केयर के लिए फेमिली केयर से अलग समय निकालें।
एक्सरसाइज (Exercise) करें, साउंड स्लीप के लिए पर्याप्त समय निकालें, हेल्दी डाईट लें। ऐसी गतिविधियों में शामिल हों, जो आपको आराम दें या रिलैक्स करें।
वर्किंग डे के दौरान शेड्यूल में ब्रेक बनाएं। फोन पर टाइमर या रिमाइंडर सेट करना या पूरे वर्किंग डे में कुछ बार स्ट्रेचिंग करने, पानी पीने और वर्क स्पेस से थोड़ी देर दूर रहने की कोशिश (side effects of long working hours) करें। इससे स्ट्रेस लेवल में कमी आ सकती है।
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