यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग एंड हाइफा के शोधकर्ताओं ने 13 से 16 साल के 1001 बच्चों पर परीक्षण किया। जिसमें माता-पिता और किशारों के बीच बातचीत करने को कहा। इसमें माता-पिता अलग-अलग बॉडी लैंग्वेज और अलग-अलग तरीकों से बातें सुन रहे थे।
जिन प्रतिभागियों ने उन संस्करणों को देखा जहां माता-पिता स्पष्ट रूप से चौकस थे , उन्होंने कहा कि वो किशोर के रूप में अपने बारे में बेहतर महसूस कर रहे हैं। पहले अध्ययन से पता चला कि ध्यान से सुनने के दौरान किशोर अधिक प्रामाणिक और माता-पिता के साथ जुड़ा हुए महसूस करते हैं।
अध्ययन के सह-नेतृत्व करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में नैदानिक और सामाजिक मनोविज्ञान में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नेट्टा वेनस्टीन ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि किशोरों से उनकी समस्याओं के बारे में बात करते रहना चाहिए। उन्हें आश्वस्त करना चाहिए क्योंकि ये संबंध स्थापित करने का एक प्रभावी तरीका है। हालांकि, अब तक इस तरीके के बारे में कम ही सोचा गया है।
“इस अध्ययन से पता चलता है कि जब माता-पिता-किशोरों की बातें समझते हैं, जब वो उसकी बातों को अहमियत देते हैं, तो ये व्यवहार बच्चों को जल्दी ओपन-अप होने में मदद करता है।
जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल चाइल्ड साइकोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के लिए, पुरुष और महिला किशोरों के लगभग समान विभाजन की भर्ती की गई। जिसमें तीन की पहचान दूसरे लिंग के रूप में हुई। टीम ने पाया कि सक्रिय रूप से सुनना सभी प्रतिभागियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण था।
पहले वीडियो में एक किशोर लड़के ने अपनी मां से बात करते हुए ये स्वीकार किया कि उसने स्मोकिंग की थी और ये बात करते हुए वो काफी शर्म महसूस कर रहा था। दूसरे विडियो में वो अपनी मां से ये कहता है कि उसके साथियों ने उसे जबदस्ती स्मोकिंग करने के लिए कहा, जब उसने मन किया तो उन्होंने उसे पीटा भी।
प्रत्येक वीडियो परिदृश्य में एक संस्करण था जहां माता-पिता ध्यान से सुनते थे। दूसरा जहां वे अधिक विचलित दिखाई देते थे और कम आंखों के साथ संपर्क का उपयोग करते थे।
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कस्टमाइज़ करेंडॉ वीनस्टीन ने कहा: “प्रतिभागियों के इतने बड़े समूह में एक बात सामान्य थी, और वह यह कि सभी को यह पसंद था कि उनके माता-पिता उन्हें सक्रिय तरीके से सुनें।
तो लेडीज अब तो आप जान गई हैं कि आपको अपने टीनएज बच्चों से कैसे बात करनी है। उनको ध्यान से सुनें और उनकी बातों को अहमियत दें।
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