यूं ही कभी अचानक आइसक्रीम खाने का बहुत मन होता है? या कभी काम करते-करते जलेबी की क्रेविंग होने लगती हैं? यूं तो क्रेविंग होना पूरी तरह सामान्य है और कभी-कभी इन क्रेविंग्स को पूरा करने में कोई नुकसान नहीं है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ऐसा होता क्यों है? क्यों भूख न लगने पर भी आपको किसी फूड के लिए इतनी भयंकर क्रेविंग होती है? हम बताते हैं इसके पीछे का विज्ञान।
क्रेविंग आपके शरीर की जरूरत नहीं है। यह आपकी शारीरिक जरूरत न होकर भावनात्मक और साइकोलॉजिकल जरूरत होती है। भावनात्मक जरूरत होने पर हम अक्सर ओवर ईट कर लेते हैं, हमें अपने पेट का अंदाजा नहीं रहता, बल्कि हम मन भर कर खाने की ओर झुके रहते हैं। इससे हम अत्यधिक कैलोरी ले लेते हैं जो अनचाहे वेट गेन का कारण बनती है।
अगर आपको सच में भूख लगी है, तो कुछ समय इंतजार करने के बाद भी भूख शांत नहीं होगी। वहीं अगर आपको सिर्फ क्रेविंग हो रही है, तो थोड़ी देर इंतजार करने से क्रेविंग खत्म हो जाती है।
यह आकस्मिक होती है और अगर आप ध्यान इधर-उधर भटका लें तो आपको क्रेविंग होनी बन्द हो जाएगी।
अमेरिकन जर्नल ‘एडिक्शन’ में प्रकाशित स्टडी के अनुसार क्रेविंग दिमाग में एक ओपीओइड टाइफून पैदा करता है। जिससे आपको चॉकलेट या चिप्स का पैकेट खाने से संतुष्टि मिलती है। जरूरी नहीं कि आप अनहेल्दी फूड के लिए ही क्रेव करें। कोई भी भोजन जो किसी अच्छी याद से जुड़ा होता है, आप दुखी होने पर उनके लिए ही लालायित होते हैं।
क्रेविंग दिमाग का तरीका है स्ट्रेस और परेशानी का सामना करने का। हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग के अनुसार कॉर्टिसोल बढ़ने पर इंसुलिन भी बढ़ता है, जिसके कारण ब्लड शुगर लो हो जाता है। ऐसे में ब्लड शुगर नार्मल करने के लिए हम मीठी चीज़ों की ओर भागते हैं।
यही नहीं कार्बोहाइड्रेट में ट्राइप्टोफेन नामक एक एमिनो एसिड होता है जो हमारे मूड को टेम्पररी तौर पर अच्छा करता है। इसलिए हम स्ट्रेस में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन के पीछे भागते हैं।
दुखी या परेशान होने पर हमारी बॉडी कॉर्टिसोल नामक एक हार्मोन निकालती है, जो हमें खाने के लिए उकसाता है। दुखी होने पर हम यह समझ नहीं पाते कि हमारी बॉडी को कितनी कैलोरी की ज़रूरत है और हम कितना खा रहे हैं। इसलिए हम लिमिट से ज्यादा कैलोरी खा लेते हैं।
कभी-कभार क्रेविंग होना ठीक है, लेकिन अगर आप हर बार अपनी क्रेविंग के आगे हार मान जाती हैं, तो आपको यह समझना जरूरी है कि आपके स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है।
यह समझना जरूरी है कि आपको जो भूख लग रही है, वह इमोशनल है या सच मे आपको खाने की ज़रूरत है। जब आप यह समझने लगेंगे तो आप इमोशन्स ईटिंग पर कंट्रोल कर सकते हैं।
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