यह नया शोध उन लोगों के लिए खतरे की घंटी है जो अपनी व्यस्तता में अपनी नींद को सबसे न्यूनतम प्राथमिकता पर डाल देते हैं। सुबह आपको अपने दफ्तर या घर के काम निपटाने के लिए जल्दी उठना है, और देर रात तक सोशल मीडिया स्क्रॉल करना है। ये दोनों जब एक साथ मिलते हैं तो आपकी मेमोरी और ब्रेन हेल्थ के लिए डेडली कॉम्बीनेशन बना देते हैं। और इस काम्बीनेशन के चलते आप अल्जाइमर डिजीज (alzheimer’s disease) जैसी खतरनाक बीमारी के भी शिकार हो सकते हैं।
सुबह जल्दी उठने वालों में अल्जाइमर की बीमारी होने का ज्यादा खतरा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार देर से सोने व सुबह जल्दी उठने और अल्जाइमर की बीमारी के ज्यादा खतरे के बीच संबंध पाए गए हैं। इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन ने पांच लाख लोगों पर अध्ययन कर उनके जेनेटिक जानकारी की समीक्षा की और उनके सोने के पैटर्न को देखा। उन्होंने पाया कि जिन लोगों में अल्जाइमर होने का जेनेटिक खतरा ज्यादा था वे लोग सुबह जल्दी उठते थे। ऐसे लोग सोते भी कम थे।
दुनिया भर में तकरीबन 4 करोड़ से ज्यादा लोग डिमेंशिया के शिकार हैं। भारत में यह आंकड़ा 40 लाख से ज्यादा है। इतनी बड़ी तादाद में लोगों का इससे ग्रस्त होना गंभीर स्थिति की ओर संकेत करता है। डिमेंशिया के कई प्रकार हैं। इनमे सबसे आम प्रकार अल्जाइमर है। अल्ज़ाइमर से ग्रस्त व्यक्ति का न केवल स्वयं का जीवन, बल्कि परिवार और दोस्तों का जीवन भी इससे प्रभावित होता है।
अल्ज़ाइमर होने पर याददाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी दिक्कते पेश आने लगती हैं। दुखद यह है कि आरंभिक चरण में इसके लक्षण बहुत कम नजर आते हैं, लेकिन जैसे-जैसे रोग मस्तिष्क को अधिक नुकसान पहुँचाता है, लक्षण बिगड़ने लगते हैं। रोग के बढ़ने की दर हरेक व्यक्ति में अलग होती है, परंतु व्यक्ति लक्षण शुरू होने के बाद से औसतन आठ वर्ष तक जीवित रहता है।
पत्रिका न्यूरोलॉजी में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि यह जरूरी नहीं है कि जो लोग सुबह उठते हैं उन्हें अल्जाइमर या डिमेंशिया का खतरा होता ही है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि सोने के पैटर्न से बीमारी नहीं होती, लेकिन यह बीमारी का एक पूर्व संकेत हो सकता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार जिन जीन की वजह से डिमेंशिया होता है वही जीन लोगों के सोने के पैटर्न को भी प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, हमने देखा है कि अल्जाइमर की बीमारी होने से पहले लोगों को नींद संबंधित परेशानियां होती है, लेकिन हम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं कि यह बीमारी का पूर्व संकेत है या नहीं।
शोधकर्ता डॉक्टर सारा इमारिसियो ने कहा, इस शोध में सोने के पैटर्न और अल्जाइमर पनपने के खतरे के बीच में संबंध पाया गया है, लेकिन हमें कोई सबूत नहीं मिला है कि नींद संबंधी समस्याओं से यह बीमारी हो सकती है।
कुछ दिनों पहले ही अल्जाइमर की एक प्रभावी दवा की खोज की गई जिसे जल्द ही मरीजों को उपलब्ध करा दिया जाएगा। यह दवा इस बीमारी से जूझ रहे लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण की तरह है। एडुकानुम्बा नामक दवा खाने से मरीजों के भाषायी कौशल और क्षमता में सुधार देखा गया।
यह दवा याददाश्त घटने की प्रक्रिया की धीमा कर देती है। अब तब मौजूद किसी भी अल्जाइमर की दवा में बीमारी को धीमा करने की क्षमता नहीं देखी गई है। एडुकानुम्बा दवा दिमाग में जमा गदंगी का काटती है और बीमारी को धीमा करती है।
(PTI से प्राप्त इनपुट के साथ)
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