एलिस वाटर्स ने कहा है, ‘‘अच्छा आहार एक अधिकार होना चाहिए, न कि एक सुविधा’’। हमारे वेदों में भी कहा गया है कि ‘‘हर व्यक्ति को खानपान की समान पहुंच का अधिकार है”। पर्याप्त भोजन और अच्छे पोषण से न केवल भूख मिटती है, बल्कि अल्पपोषण, बीमारी, खाने से होने वाली बीमारियां और डायबिटीज़ एवं कैंसर जैसी क्रोनिक डिजनरेटिव समस्याएं भी कम होती हैं। जीवन की हर अवस्था में वृद्धि, विकास, शारीरिक कार्यों के संचालन और चुस्त व सक्रिय रहने के लिए स्वस्थ आहार (Nutrition for healthy life) जरूरी है।
10 दिसंबर को हर साल पूरे विश्व में मानवाधिकार दिवस (human rights day) मनाया जाता है। इसी दिन सन 1948 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने ‘मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणापत्र’ (Universal Declaration of Human Rights यूडीएचआर) अपनाया था। यूडीएचआर ने अनुच्छेद 25 में भोजन के अधिकार को मान्यता दी है।
जिसमें कहा गया है, ‘‘हर किसी को ऐसा जीवनस्तर पाने का अधिकार है, जो उसके एवं उसके परिवार के स्वास्थ्य व सेहत के लिए पर्याप्त हो। इसमें खाना, कपड़े, घर और मेडिकल इलाज एवं आवश्यक सामाजिक सेवाएं शामिल हैं।’’
आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार समिति (ईएससीआर) ने सन 1999 में अपनी आम टिप्पणी 12 में पर्याप्त भोजन के अधिकार को उस स्थिति के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें समाज के हर व्यक्ति को खाना और उसे खरीदने के साधनों की भौतिक एवं आर्थिक पहुंच उपलब्ध हो।
हमारा भारतीय संविधान एक गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। जिसमें जीवित रहने का अधिकार शामिल है। भूख मिटाने के लिए खाने की जरूरत जीवन की मूलभूत आवश्यकता है, इसलिए भोजन का अधिकार जीवन के अधिकार के तहत संरक्षित है।
संयुक्त राष्ट्र (WHO) का सदस्य होने और ईएससीआर के अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध का सदस्य होने के नाते, भारत पर वे सभी नियम व कानून लागू होते हैं, जो इन अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत बनाए गए हैं।
भारतीय संविधान के अलावा, भारत की संसद ने एक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2003) बनाया, जो भोजन के अधिकार अधिनियम नाम से मशहूर है। इस अधिनियम के तहत भारत की दो तिहाई आबादी को अनाज रियायती दरों पर प्रदान किया जाता है।
यह देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार का प्रयास था। इस अधिनियम के अंतर्गत हमारे देश में मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, आईसीडीएस ICDS योजना और जन वितरण प्रणाली जैसी अनेक योजनाएं शुरू की गईं हैं।
इसके अलावा हर राज्य की सरकार के अपने नागरिकों के प्रति राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के नाम से कुछ कर्तव्य भी हैं। भोजन का अधिकार इन कर्तव्यों में निहित है। अपने नागरिकों का पोषण और जीवन स्तर बढ़ाना राज्यों का दायित्व है।
भुखमरी का उन्मूलन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन और हमारी भारतीय सरकार क्या कर रही है, यह जानने के बाद, देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें भी खान पान की स्वस्थ आदतों का पालन करने और वंचित आबादी के बीच पोषण के महत्व की जागरुकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
यह भी पढ़ें – इस सर्दी आपके पेरेंट्स के दिल को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे ये 5 हार्ट फ्रेंडली विंटर सुपरफूड्स
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पोषण की जरूरत पूरे जीवन एक सी नहीं रहती है। उम्र, लिंग, शारीरिक संरचना और शारीरिक गतिविधि के आधार पर यह बदलती है। यदि पोषण की जरूरत को पूरा नहीं किया जाए, तो इससे बच्चों में प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण, किशोरों में पोषक तत्वों का कुपोषण, और वयस्कों में गैरसंचारी बीमारियां (एनसीडी) जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल के रोग एवं कैंसर आदि हो सकते हैं।
एनसीडी का मुख्य कारण मैक्रोन्यूट्रिएंट (सैचुरेटेड फैट, शुगर) अत्यधिक मात्रा में लेना और सब्जियों, फलों, अनाज, और फलियों से मिलने वाले फाईबर और माईक्रोन्यूट्रिएंट कम मात्रा में लेना है।
कुपोषण को दूर कर स्वस्थ व रोगमुक्त जीवन के लिए संतुलित आहार जरूरी है, जिसमें हर तरह का आहार पर्याप्त मात्रा में शामिल हो।
यह भी पढ़ें – रोज पीती हैं ग्रीन टी, तो हो जाएं सतर्क! यह लिवर को पहुंचा सकती है नुकसान