पश्चिमी अफ्रीकी देशों में मारबर्ग वायरस डिजीज तेजी से फैल रहा है। यह इबोला वायरस की तरह घातक है। घाना के दक्षिणी अशांति रीजन में पहली बार मारबर्ग वायरस डिजीज पाए गए।
मारबर्ग वायरस (Marburg virus) इबोला वायरस से ही संबंधित है। इस वायरस के कारण शरीर में फ्लू जैसे लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसकी पहचान के लिए सैंपल लेकर उनकी सीक्वेंसिग की जाती है। इसका टिश्यू कल्चर करके वायरस का पता लगाया जाता है।
इस वायरस का नाम जर्मनी के मारबर्ग शहर के नाम पर रखा गया, जहां यह पहली बार 1967 में पाया गया था।
घाना के दक्षिणी अशांति रीजन में पहली बार मारबर्ग वायरस डिजीज के दो मरीज पाए गए। जिनकी बाद में मृत्यु हो गई।
10 जुलाई को वे दोनों जांच में मारबर्ग वायरस पॉजिटिव पाए गए। उनके परिणामों को सेनेगल, घाना स्वास्थ्य सेवा (जीएचएस) में एक प्रयोगशाला द्वारा सत्यापित किया गया था। सेनेगल के डकार स्थान पर पाश्चर इंस्टीट्यूट में होने वाले परीक्षण ने परिणामों की पुष्टि कर दी।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पहला मामला 26 वर्षीय व्यक्ति का था, जिसकी 27 जून को मृत्यु हो गई। दूसरा 51 वर्षीय व्यक्ति था, जिसकी उसी दिन मृत्यु हो गई। हालांकि उन दोनों की मृत्यु के कारण स्पष्ट नहीं हो सके थे, लेकिन माना जाता है कि उनकी मृत्यु मारबर्ग वायरस से ही हुई।
एमवीडी, जिसे पहले मारबर्ग हेमोरेजिक फीवर (Marburg hemorrhagic fever) के रूप में जाना जाता था। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सिरदर्द, बुखार, मांसपेशियों में दर्द और ब्लीडिंग के लक्षणों के साथ यह एक गंभीर बीमारी है। इसकी मृत्यु दर 24% से लेकर 88% तक हो सकती है।
घाना के दोनों रोगियों में मरने से पहले दस्त, बुखार, मतली और उल्टी के लक्षण पाए गए थे। चूंकि दोनों व्यक्ति में आपसी कोई रिलेशन नहीं था। इसलिए यह सुझाव दिया गया है कि यह रोग अधिक व्यापक रूप से फैल रहा है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, मारबर्ग वायरस फलों में उपस्थित चमगादड़ों से लोगों में फैल रहा है। बॉडी फ्लूइड के ट्रांसमिशन और कंटेमिनेटेड सर्फेस के संपर्क के माध्यम से यह मनुष्यों के बीच तेजी से फैल रहा है।
हालांकि वायरस के फैलने के किसी भी जोखिम को कम करने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। अफ्रीका के लिए डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. मात्शिदिसो मोएती के अनुसार, तत्काल और निर्णायक कार्रवाई के बिना मारबर्ग को रोकना आसान नहीं है।
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कस्टमाइज़ करेंडब्ल्यूएचओ इसे आउटबर्स्ट घोषित कर चुका है। इसकी रोकथाम के लिए संसाधन जुटाए जा रहे हैं।
पश्चिम अफ्रीका में घाना में मौजूदा एमवीडी के प्रकोप का दूसरी बार पता चला है। पिछले साल अगस्त में गिनी में एक कन्फर्म केस का पता चला था।
1967 में जर्मनी में जब पहली बार एमवीडी आउटबर्स्ट हुआ, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी। तब से लेकर अब तक एक दर्जन लोग इसके शिकार के हो चुके हैं। एमवीडी के ज्यादातर शिकार लोग दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका के हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सबसे घातक प्रकोप 2005 में रिकॉर्ड स्तर पर अंगोला में हुआ था। इसमें 200 से अधिक लोग मारे गए थे।
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