आपका मस्तिष्क रात भर जागने के लिए नहीं बना है, जानिए क्या होता है जब आप नींद पूरी नहीं करतीं

आप कॉल सेंटर या मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती हों या फिर सोशल मीडिया स्क्रॉल कर रहीं हैं, आधी रात और उसके बाद जागना आपके लिए अवसाद और आत्महत्या का जोखिम बढ़ा सकता है।
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जानिए क्या होता है जब आप रात को नहीं सोती हैं। चित्र : शटरस्टॉक
Updated On: 20 Oct 2023, 09:20 am IST
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यह एक फैक्ट है कि मानव शरीर दिन में काम करने के लिए बना है, क्योंकि रात का समय सोने का होता है। मगर, आजकल की भागती – दौड़ती जिंदगी के कारण यह बायोलॉजिकल साइकल उल्टी हो जाती है। मल्टीनेशनल (MNC) में काम करने की वजह से कई लोगों रात के 10 – 11 बजे अपना काम स्टार्ट करते हैं और सुबह 8 बजे उनकी शिफ्ट खत्म होती है।

ऐसे में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जब हम इस जैविक वास्तविकता को नकारते हैं और आधी रात में जागते हैं तो हमारा दिमाग खराब स्थिति में काम करता है। जिसकी वजह से लोग डिप्रेशन, अनहेल्दी स्नैकिंग, और सुसाइड जैसी भावनाओं का शिकार होते हैं।

तो क्या होता है जब हम अपने बायोलॉजिकल साइकल के विपरीत काम करते हैं

फैक्ट्स बताते हैं कि जब हम इस जैविक वास्तविकता को नकारते हैं और आधी रात के बाद जागते रहते हैं, तो बुरी चीजें होती हैं। आत्महत्या का जोखिम दिन के किसी भी अन्य समय की तुलना में आधी रात से सुबह छह बजे के बीच तीन गुना अधिक होता है।

मनुष्य रात में मादक द्रव्यों के सेवन के लिए अधिक प्रवण होते हैं और उनमें ओपिओइड ओवरडोज का लगभग पांच गुना अधिक जोखिम होता है।

लोग आधी रात के बाद अनहेल्दी भोजन खाना पसंद करते हैं।

इसके अलावा, रात में उनमें रिस्क लेने की प्रवृत्ति जागती है, जिसकी वजह से वह अधिक जोखिम उठाते हैं, जिससे चोट लगती और वित्तीय नुकसान होता है।

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रात को सोना बहुत ज़रूरी है। चित्र : शटरस्टॉक

जानिए इससे जुड़े अध्ययनों में क्या सामने आया?

हाल ही में नेटवर्क फिजियोलॉजी में फ्रंटियर्स जर्नल के अनुसार रात को हम बढ़ी हुई भावनात्मक नकारात्मकता, ओवरथिंकिंग,अधिक खाने और जोखिम लेने में वृद्धि, और चिंता, अवसाद और निराशा के उच्च स्तर से पीड़ित होते हैं।

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प्रदूषण से बचने के लिए आप क्या करते हैं?

जब मस्तिष्क आधी रात के बाद जागता है, तो इसका सिस्टम (सर्कैडियन लय) बिगड़ने लगता है। सर्कैडियन लय शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक परिवर्तन – मुख्य रूप 24 घंटे के चक्र का पालन करते हैं।

यह सब जांचने – परखने के बाद शोधकर्ताओं नें इसे ‘माइंड आफ्टर मिडनाइट’ हाइपोथीसिस का नाम दिया है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि इस बात में थोड़ी भी सच्चाई है, तो हमें इस डिशा में काम करने की ज़रूरत है और खुद को सुधारे की ज़रूरत है।

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लेखक के बारे में
ऐश्‍वर्या कुलश्रेष्‍ठ
ऐश्‍वर्या कुलश्रेष्‍ठ

प्रकृति में गंभीर और ख्‍यालों में आज़ाद। किताबें पढ़ने और कविता लिखने की शौकीन हूं और जीवन के प्रति सकारात्‍मक दृष्टिकोण रखती हूं।

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