सितंबर का महीना मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक होने का महीना है। दुनिया भर में मस्तिष्क रोग अल्जाइमर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए इस महीने को अल्जाइमर्स जागरूकता माह (alzheimer’s awareness month September) के तौर पर मनाया जाता है। ध्यान नहीं देने पर हमारी सामान्य मानसिक क्षमताएं भी प्रभावित हो जाती हैं। इसके कारण हमें डे टू डे के कामकाज करने में भी दिक्कत होने लगती है। इसे विशेषज्ञ इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी या बौद्धिक दिव्यांगता या विकलांगता (Intellectual disability) का नाम देते हैं। आइए जानते हैं इस समस्या के बारे में विस्तार से।
सीनियर सायकियेट्रिस्ट डॉ. ईशा सिंह के अनुसार, अमेरिकी सायकियेटरी एसोसिएशन के अनुसार, बौद्धिक दिव्यांगता (Intellectual disability) लगभग 1% आबादी को प्रभावित करती है। उनमें से लगभग 85% में हल्की बौद्धिक विकलांगता (minor Intellectual disability) होती है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में बौद्धिक विकलांगता होने की संभावना अधिक होती है। यह मस्तिष्क के दो तरह के कार्य क्षेत्र को प्रभावित करता है।
यह बौद्धिक कार्यप्रणाली (Intellectual functioning) जैसे कि सीखना, समस्या समाधान, निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह अनुकूलन कार्यप्रणाली (Adaptive functioning) जैसे कि दैनिक जीवन की गतिविधियां जैसे बातचीत करना और रोजमर्रा के जीवन के सभी कामकाज। ये दोनों कमियां मस्तिष्क के विकास की शुरुआत में ही दिखने लगती हैं।
बौद्धिक विकलांगता की पहचान बौद्धिक और अनुकूलन कामकाज दोनों समस्याओं से की जा सकती है। यह व्यक्तिगत रूप से मापा जा सकता है। साइकोमेट्रिक रूप से मान्य, व्यापक और उपयुक्त इंटेलिजेंस को साउंड टेस्ट से मापा जाता है। कई विशेष तरह के टेस्ट के माध्यम से यह जांचा जाता है। लगभग 70 से 75 का आईक्यू स्कोर इंटेलेक्चुअल फ्न्क्शनिंग के लिए जरूरी माना जाता है। सिर्फ आईक्यू परीक्षण से नहीं, बल्कि इंटेलेक्चुअल फंक्शनिंग जानने के लिए क्लिनिकल टेस्ट की जरूरत पड़ती है।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी को हल्के, मध्यम या गंभीर रूप में पहचाना जाता है। इसके लक्षण बचपन से ही शुरू हो जाते हैं। भाषा या मोटर स्किल में देरी दो साल की उम्र तक देखी जा सकती है। स्कूली उम्र तक इसके हल्के स्तर की पहचान करना कठिन है। बच्चे को पढ़ाई में कठिनाई होने पर ही इसका पता लगाया जा सकता है।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी के कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं। यह आनुवंशिक सिंड्रोम से जुड़ा हो सकता है। जैसे डाउन सिंड्रोम या फ्रैगाइल एक्स सिंड्रोम (Fragile X syndrome) । यह मेनिनजाइटिस, काली खांसी (whooping cough) या खसरा (Measles) जैसी बीमारी के बाद विकसित हो सकता है। बचपन में सिर में चोट लगने का भी यह परिणाम हो सकता है।
सीसा या पारा जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने पर भी यह हो सकता है। मस्तिष्क विकृति, मातृ रोग (maternal disease) और शराब, ड्रग्स या अन्य विषाक्त पदार्थ जैसे पर्यावरणीय प्रभाव भी इसके कारण हो सकते शामिल हैं। गर्भावस्था के दौरान संक्रमण और प्रसव संबंधी कुछ दिक्कतें भी योगदान दे सकती हैं।
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कस्टमाइज़ करेंइंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी जीवन भर रहने वाली स्थिति है। शुरुआत में उपचार मिलने और लगातार इलाज से कामकाज में सुधार हो सकता है। यह रोग पूरे जीवनकाल तक रह सकता है। एक बार निदान हो जाने के बाद, इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी वाले व्यक्तियों को हमेशा देखभाल की जरूरत पड़ती है। इन्हें खास तरीके से शिक्षित किया जा सकता है। इसके अलावा, परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों, समुदाय के सदस्यों, स्कूल, चिकित्सक टीम या हेल्थ केयर प्रोवाइडर इलाज में मदद मिल सकती है।
1 अपने बच्चे की इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी के बारे में जानने की कोशिश करें।
2 इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से जूझ रहे बच्चों के अन्य माता-पिता से जुड़ें।
3 धैर्य रखें, आपके बच्चे की पढ़ाई धीमी हो सकती है। उन्हें खेल-कूद के प्रोग्राम में भाग लेने कहे।
4 स्वतंत्रता और जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करें। उन शैक्षिक सेवाओं के बारे में स्वयं को शिक्षित करें जिनका आपका बच्चा हकदार है।
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