ऑटोइम्यून बीमारियों के लगातार बढ़ते मामलों में ग्लूटेन सेंसटिविटी के अक्सर कम आंकने वाले प्रभाव की ओर संवेदनशीलता को बढ़ा दी है। इस कंडीशन को, नॉन-सीलिएक ग्लूटेन सेंसटिविटी (NCGS) के रूप में जाना जाता है, जो आज के समय में ऑटोइम्यून डिजीज की जटिलताओं को समझने में एक फोकस पॉइंट बन चुका है। ग्लूटेन सेंसटिविटी को पाचन संबंधी प्रभावों के अलावा, ऑटोइम्यून बीमारियों के जटिलता को बढ़ाने से जोड़ा जा रहा है। वहीं ये स्थिति लीकी गट सिंड्रोम (Leaky gut syndrome) के खतरे को भी बढ़ा रही है।
आज हेल्थ शॉट्स के साथ जानेंगे ऑटोइम्यून डिजीज पर ग्लूटेन सेंसिटिविटी के प्रभाव, क्योंकि अब के समय में इस स्थिति को समझना बेहद महत्वपूर्ण हो चुका है। इस विषय पर अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने, strmRx बायो साइंस सॉल्यूशन इंडिया के फाउंडर और रीजेनरेटिव मेडिसिन रिसर्चर, डॉ प्रदीप महाजन से सलाह ली। डॉक्टर ने इस विषय पर कुछ जरूरी जानकारी दी है, तो चलिए जानते हैं इस बारे में अधिक विस्तार से।
लीकी गट सिंड्रोम, या इंक्रीज इंटेस्टाइनल परमिएबिलिटी, एक ऐसी स्थिति है जहां आंत की परत क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे पदार्थ ब्लड स्ट्रीम में लीक हो जाते हैं। हालांकि, इन्हें सामान्य रूप से ब्लॉक किया जा सकता है। इसमें ग्लूटेन जैसे अनडाइजेस्टिव प्रोटीन शामिल हैं, जो संवेदनशील व्यक्ति में इम्यून रिस्पांस को ट्रिगर कर सकते हैं। जबकि ग्लूटेन सेंसटिविटी में शरीर पर अटैक करने वाले इम्यून सिस्टम शामिल नहीं होते हैं। ग्लूटेन, लीकी गट सिंड्रोम और ऑटोइम्यून बीमारियों के बीच कई इंटरेस्टिंग चीजें छपी हैं, जिसकी जानकारी होना महत्वपूर्ण है।
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पहले से ही रुमेटीइड गठिया, ल्यूपस या हाशिमोटो थायरॉयडिटिस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए, ग्लूटेन सेंसटिविटी एक महत्वपूर्ण जटिल कारक बन जाती है। रिसर्च ने ऑटोइम्यून स्थितियों में निहित सूजन प्रतिक्रिया को बढ़ाने में ग्लूटेन संवेदनशीलता की संभावित भूमिका पर प्रकाश डाला है। गट लाइनिंग डैमेज, लीकी गट सिंड्रोम की विशेषता, के कारण ग्लूटेन ब्लड स्ट्रीम में में लीक हो सकता है, जिससे इम्यून रिस्पांस ट्रिगर हो जाते हैं, जो मौजूदा लक्षण को अधिक बढ़ा देते हैं। संभवतः ऑटोइम्यून बीमारियों की प्रगति में योगदान करते हैं।
रीजेनरेटिव मेडिसिंस ऑटोइम्यून डिजीज के क्षेत्र में एक आशाजनक रोल प्ले करते हैं। जो न केवल एक संभावित उपचार के रूप में बल्कि एक इम्यून मुड्यूलेटर के रूप में भी कार्य करती है। पारंपरिक दृष्टिकोणों के विपरीत, जो पूरी तरह से लक्षण प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, रीजेनरेटिव मेडिसिंस का उद्देश्य ऑटोइम्यून कंडीशंस के मूल कारणों को संबोधित करना है, जिसमें ग्लूटेन सेंसटिविटी और लीकी गट सिंड्रोम से जुड़ी जटिल परस्पर क्रिया शामिल है।
रीजेनरेटिव मेडिसिंस के प्रमुख पहलुओं में से एक इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने की क्षमता है। अत्याधुनिक उपचारों का लाभ उठाकर, यह पुनर्योजी चिकित्सा प्रतिरक्षा प्रणाली में संतुलन बहाल करने का प्रयास करती है। इस प्रकार यह संभावित रूप से ऑटोइम्यून बीमारियों में देखी जाने वाली अतिसक्रिय प्रतिक्रियाओं को कम कर देती है। यह इम्यून एक्टिविटीज को ट्रिगर करने में ग्लूटेन सेंसटिविटी की भूमिका की बढ़ती समझ के साथ संरेखित होता है, जो ऑटोइम्यून स्थितियों की प्रगति में योगदान देता है।
ग्लूटेन सेंसटिविटी, लीकी गट सिंड्रोम और ऑटोइम्यून बीमारियों के बीच के संबंध धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। ग्लूटेन सेंसटिविटी से होने वाले नुकसान और लीकी गट सिंड्रोम से इसके संबंध को पहचानना बेहद महत्वपूर्ण है। डॉक्टर से लेकर ऑटोइम्यून बीमारी की चुनौतियों से निपटने वाले व्यक्ति दोनों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।
जैसे-जैसे रिसर्च आगे बढ़ रहा है, रीजेनरेटिव मेडिसिंस आशा की किरण के रूप में सामने आ रही हैं। इस विषय पर लोगों के बीच जागरूकता होना बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि हम ऑटोइम्यून बीमारियों पर ग्लूटेन सेंसटिविटी के प्रभाव को समझ सके और उचित देखभाल के साथ जीवन शैली में आवश्यक बदलाव कर खुद को बीमारियों से मुक्त रख सकें।
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