जन्मजात बहरेपन को भी दूर कर सकती है कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी, एक्सपर्ट बता रहे हैं इस बारे में सब कुछ

बहरापन न केवल एक शारीरिक अक्षमता है, बल्कि जागरुकता की कमी के चलते ये समाज में टैबू बनता जा रहा है। इसलिए इस बारे में और भी जागरुक होना बहुत जरूरी है।
janiye kya hai cochlear implant
जानिए क्या है कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी जो बहरेपन में हो सकती है मददगार। चित्र ; शटरस्टॉक
Published On: 3 Mar 2022, 03:00 pm IST

बहरापन भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार भारत में 63 मिलियन लोग गंभीर रूप से सुनने की अक्षमता से पीड़ित हैं। इसके अलावा एक सर्वे से पता चला है कि देश में हर 1000 बच्चों में से चार बच्चे गंभीर रूप से सुनने की समस्या से पीड़ित हैं।

जब कोई बच्चा जन्मजात श्रवण हानि के साथ पैदा होता है, तो इस बहरेपन का परिणाम शारीरिक विकलांगता से कहीं ज्यादा होता है। श्रवण हानि के साथ पैदा हुआ बच्चा बोलने और बातचीत करने में सक्षम नहीं होता है। इस वजह से बच्चे को पढ़ने-लिखने में कठिनाई होती है और भविष्य में उन्हें आगे बढ़ने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

विश्व श्रवण दिवस (World hearing day)

डब्लूएचओ (WHO) हर साल 3 मार्च को “विश्व श्रवण दिवस” मनाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World health organisation) इस साल “जीवन भर के लिए सुनना, ध्यान से सुनना” विषय के साथ सुरक्षित सुनने के माध्यम से श्रवण हानि की रोकथाम के महत्व और साधनों पर ध्यान केंद्रित करेगा। डीवाई पाटिल हॉस्पिटल का ईएनटी डिपार्टमेंट अपनी ऑडियोलॉजी सेवाओं के साथ बेहतर सुनने की क्षमता और अक्षमता में कमी पर डब्ल्यूएचओ की पहल के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है।

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तनाव भी आपकी सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। चित्र : शटरस्टॉक

डीवाई पाटिल हॉस्पिटल में ईएनटी कंसल्टेंट डॉ. भाविका वर्मा का मानना ​​है कि जागरूकता और शुरुआती पहचान इस तरह की समस्या में महत्वपूर्ण है। अगर जन्मजात बहरेपन वाले बच्चों का जल्द पता लगाया जाए और श्रवण यंत्रों से उनकी सुनने की क्षमता को वापस लाया जाए तो इससे पीड़ित परिवारों पर वित्तीय बोझ को कम करके अपनी सुनने और बोलने में सक्षम हो सकता है और एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवनयापन कर सकता है।

क्या हो सकते हैं जन्मजात बहरेपन के कारण

मातृ संक्रमण जैसे टोक्सोप्लाज़मोसिज़, रूबेला, साइटोमेगालोवायरस, खसरा और दाद जन्म के समय जन्मजात बहरापन पैदा कर सकते हैं। भले ही बच्चा श्रवण यंत्रों के साथ सुनने में सक्षम हो जाता है, फिर भी उसे बोलने के लिए एक गहन स्पीच थेरेपी की जरुरत होती है।

भारत में कॉक्लियर इंप्लांट होना कोई नई बात नहीं है। पिछले दो दशकों से देश में यह सुविधा उपलब्ध है। प्राइवेट प्रोजेक्ट, सरकारी प्रोजेक्ट, कई इंटरनेशनल प्रोजेक्ट और सामजिक संगठनों द्वारा भारत के हर कोने में इस तरह की कई सर्जरी की गई हैं। फिर भी इस तरह की सर्जरी को लेकर कई मिथ प्रचलित हैं। मौजूदा श्रवण बाधित आबादी में इप्लांट की स्वीकृति और जागरूकता माता-पिता के बीच बहुत कम है।

वरदान साबित हो सकती है कॉक्लियर इम्प्लांट (cochlear implant) सर्जरी

अच्छी खबर यह है कि कॉक्लियर इंप्लांट सुनने और बोलने में अक्षम बच्चों के लिए वरदान साबित हो सकता है। हालांकि कॉक्लियर इम्प्लांट केवल जन्मजात बहरेपन वाले बच्चों में ही कारगर साबित है। अगर वयस्कों को हियरिंग ऐड से सुनने से लाभ नहीं मिलता है, तो वे भी कॉक्लियर इंप्लांट करा सकते हैं।

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जिन बच्चों और वयस्कों में सुनने में गंभीर दिक्कत होती हैं या वे बहरे होते हैं, उन्हें कॉक्लियर इम्प्लांट (cochlear implant) कराने से काफी हद तक सुनने में मदद मिल सकती है। जबकि इस प्रक्रिया से संबंधित जानकारी की कमी कई गलत धारणाओं को पैदा करती है। इस तरह की सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित होती है। जो लोग सुनने की क्षमता (Hearing disability) से पीड़ित होते हैं, वे इस इप्लांट से अपने जीवन में काफी फर्क ला सकते हैं।

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कोविड-19 के मरीजों को आगे चलकर हो सकती है सुनने में दिक्कत . चित्र : शटरस्टॉक

कैसे होता है कॉक्लियर इम्प्लांट?

यह उपकरण एक छोटा और काम्प्लेक्स इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है, जिसे इम्प्लांट करने से व्यक्ति की सुनने की क्षमता वापिस आ जाती है। इस उपकरण के आंतरिक घटक को सर्जरी के साथ इम्प्लांट किया जाता है। जबकि इसके बाहरी घटक को बाद में स्पीच प्रोसेसर के रूप में शरीर पर पहना जाता है।

जहां श्रवण यंत्र (Hearing tools) ध्वनि को बढ़ाते हैं, वहीं कॉक्लियर इम्प्लांट (cochlear implant) कान के प्रभावित हिस्सों को बायपास करते हैं और सीधे श्रवण तंत्रिका को उत्तेजित करते हैं। इम्प्लांट द्वारा उत्पन्न संकेत श्रवण तंत्रिका के माध्यम से मस्तिष्क को भेजे जाते हैं, जो संकेतों को ध्वनि के रूप में पहचानते हैं। जिससे व्यक्ति सुनने में सक्षम हो पाता है।

शुरुआत में लग सकता है असुविधाजनक

कॉक्लियर इम्प्लांट से सुनाई देना काफी अलग होता है। किसी व्यक्ति को इसका आदी होने में कुछ समय लगता है। इस उपकरण से व्यक्ति वातावरण में मौजूद अन्य आवाजों और अन्य ध्वनियों को भी सुन व समझ सकते हैं।

कॉक्लियर इंप्लांट से भारत में बहरेपन के इलाज में सुधार

देश में बहरेपन की समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। सुनने में अक्षमता को एक अदृश्य विकलांगता के रूप में समझा जा सकता है। समाज में इस समस्या को एक कलंक (Taboo) माना जाता रहा है। नीति निर्माताओं द्वारा इस समस्या की नियमित रूप से अनदेखी की गयी है।
जिन बच्चों में सुनने की क्षमता नहीं होती, वे एक शांत दुनिया में डूब जाते हैं। जहां पर वह सुन और बोल पाने में सक्षम नहीं होते हैं। वे इस दुनिया में मूक बने रहते हैं। इस वजह से वे पढ़-लिख भी नही पाते और अपने वर्कप्लेस पर बातचीत करने में सक्षम नहीं रहते।

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लेखक के बारे में
Dr. Yogesh Dobhalkar
Dr. Yogesh Dobhalkar

Dr.Yogesh Dabholkar, Professor and Head of ENT in DY Patil Hospital, Medical Consultant- Entod Pharmaceuticals.

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