वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट के अनुसार, नाइजीरिया के कई राज्यों में डिप्थीरिया के मामलों में असामान्य वृद्धि दर्ज की गई है। 30 जून से 31 अगस्त 2023 तक 11 राज्यों से कुल 5898 संदिग्ध मामले सामने आए। भारत में भी अकसर डिप्थीरिया के मामले सामने आते रहे हैं। विश्व भर के आधे मामलों भारत को जिम्मेदार बताया जा रहा है। यह एक संक्रामक रोग है। इसलिए डिप्थीरिया के बारे में जानना और इसके बचाव के उपाय (diphtheria causes and treatment) करना जरूरी है।
डिप्थीरिया अत्यधिक संक्रामक बीमारी है। यह मुख्य रूप से बैक्टीरिया कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया (Corynebacterium diphtheria) के कारण होती है। ये बैक्टीरिया टोक्सिन बनाते हैं। इस टोक्सिन के कारण लोग बहुत बीमार पड़ सकते हैं। इसके रोकथाम के लिए प्रभावी वैक्सीन हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 5-10% डिप्थीरिया के मामले घातक हो सकते हैं। इसके कारण छोटे बच्चों में मृत्यु दर अधिक होती है।
डिप्थीरिया बैक्टीरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सांस की बूंदों, जैसे खांसने या छींकने से फैलता है। डिप्थीरिया शरीर में टॉन्सिल, नाक, गले या त्वचा को संक्रमित कर सकता है। प्रभावित शारीरिक अंगों में ऊपरी ब्रीदिंग वेज (नाक, एयर वेज, टॉन्सिल, वोकल कोर्ड और श्वासनली हो सकती है। यह स्किन (Skin Diphtheria) या कभी-कभी आंख, कान, वल्वा के प्रभावित होने का भी कारण बनता है। .
समय के साथ डिप्थीरिया को माइक्रोस्पोरोन डिप्थीरिकम, बैसिलस डिप्थीरिया और माइकोबैक्टीरियम डिप्थीरिया भी कहा जाने लगा। अभी इसे कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया कहा जाने लगा।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट के अनुसार, इसके कारण टॉन्सिल को ढकने वाली एक मोटी भूरे रंग की झिल्ली बन सकती है। इससे घोंटने में दिक्कत हो सकती है। गले में ख़राश और घरघराहट हो सकती है। इनके अलावा, गर्दन में सूजे हुए ग्लैंड (बढ़े हुए लिम्फ नोड्स), सांस लेने में कठिनाई या तेजी से सांस लेना, नाक बहना, बुखार और ठंड लगना हो सकता है। थकान भी हो सकती है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2001 से 2015 तक वैश्विक स्तर पर दर्ज डिप्थीरिया के आधे मामले भारत से दर्ज किये गये। भारत में 2005 से 2014 तक सालाना औसतन 4167 मामले और 92 मौतें दर्ज की गईं। 2018 में भारत में डिप्थीरिया के 8788 मामले दर्ज किए।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट के अनुसार, डिप्थीरिया का उपचार तुरंत शुरू हो जाता है। हेल्थकेयर एक्सपर्ट अंगों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन बताते हैं। संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक्स, आमतौर पर पेनिसिलिन या एरिथ्रोमाइसिन दिया जाता है।
दूसरों को संक्रमित होने से बचाने के लिए डिप्थीरिया से पीड़ित लोगों को अलग-थलग रखा जाता है। संक्रमित व्यक्ति एंटीबायोटिक्स लेने के लगभग 48 घंटों बाद संक्रामक नहीं रह सकता है। ट्रीटमेंट खत्म होने के बाद बैक्टीरिया समाप्त हुए हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए दुबारा परीक्षण किया जाता है। एक बार जब बैक्टीरिया ख़त्म हो जाते हैं, तो भविष्य में संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन दिया जाता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट के अनुसार, डिपथीरिया शॉट्स वैक्सीन इस रोग से बचाव कर सकते हैं। इनमें टीकाकरण के बाद बूस्टर शॉट्स भी शामिल हैं। टीके के कारण बुखार, दर्द या सुई वाली जगह पर रेडनेस हो सकती है। कभी-कभी कुछ लोगों में टीके से एलर्जी भी देखे जा सकते हैं।
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