वैसे तो थायराइड एक आम परेशानी है, जो ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करती है। लेकिन इन सब में एक अच्छी बात ये है कि थायराइड (thyroid) होने के बाद भी महिलाएं गर्भधारण कर सकती हैं। लेकिन इन सब में परेशानी तब होती है, जब महिला को अपने बच्चे को स्तनपान कराना होता है। क्योंकि थायराइड का ब्रेस्टफीडिंग पर बुरा प्रभाव हो सकता है। थायराइड ग्लैंड का कार्य होता है हार्मोन बनाना, जो बॉडी की ग्रोथ में और उसके जरूरी कामों में सहायता करता है। यह हार्मोन ब्रेस्टफीडिंग के लिए भी आवश्यक है। तब क्या थायराइड से ग्रस्त मां को अपने बच्चे को स्तनपान (breastfeeding and thyroid disease) नहीं करवाना चाहिए? आइए जानते हैं इस बारे में सब कुछ।
असल में थायराइड दो तरह का होता है। हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म। हाइपोथायरायडिज्म थायराइड में थकान, कब्ज, ड्राई स्किन, चेहरे पर सूजन, पीरियड्स में ब्लीडिंग ज्यादा होना और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसे लक्षण होते है। वहीं हाइपरथायरायडिज्म के लक्षणों में पसीना अधिक आना, नींद न आना और थकान होना शामिल है। यदि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान इन लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण नज़र आता है, तो आपको थायराइड की जांच करानी चाहिए।
थायराइड से ग्रस्त कई महिलाओं को इस बात की चिंता होती है कि यदि उन्होंने बच्चे को स्तनपान कराया, तो कहीं इससे उनका बच्चा भी प्रभावित न हो जाए। ओरा क्लिनिक गुरुग्राम की सीनियर डायरेक्टर डॉ. रितु सेठी के मुताबिक, यदि थायराइड रोग को दवा के साथ अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाए, तो स्तनपान कराने में कम परेशानी होती है।
लेकिन यदि हाइपोथायरायडिज्म पर ध्यान न दिया जाए, तो इससे ब्रेस्टमिल्क की आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को नर्सिंग करते वक़्त थायराइड की दवा लेनी जरूरी है।
असल में, महिला के शरीर में गर्भावस्था के दौरान कई बड़े हार्मोनल बदलाव होते हैं। इस कारण से थायराइड के काम में भी परिवर्तन होते हैं। ब्रेस्टफीडिंग बच्चे की ग्रोथ के लिए सबसे फायदेमंद होता है, लेकिन कुछ मामलों में ब्रेस्टफीडिंग कराने से थायराइड ग्लैंड आवश्यकता से अधिक थायराइड हार्मोन बनाने लगता है।
मां और बच्चे में थायराइड की समस्याओं को रोकने में ब्रेस्टफीडिंग सहायता कर सकती है। ऑटोइम्यून थायराइड को कंट्रोल करने के लिए नियमित रूप से ब्रेस्टफीडिंग कराने से सहायता मिल सकती है।
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