अक्सर कुछ लोग नहीं चाहते हुए भी नशे के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभार जानकारी के अभाव में भी दवा समझकर नशा करने लगते हैं। नशे का शिकार आपके परिवार का कोई सदस्य भी हो सकता है। जब हमें इस बात की जानकारी मिलती है, तो दुःख होता है। हमें सिर्फ इस विषय पर गहन चिन्तन ही नहीं करना चाहिए, बल्कि इसके प्रति जागरूक होकर कुछ ठोस कदम भी उठाने चाहिए। नशीली दवाओं के दुरूपयोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल नशा रोधी दिवस (International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking) 26 जून को मनाया जाता है।
इन्टरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज एंड इलिसिट ट्रेफिकिंग या वर्ल्ड ड्रग डे (International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking 26 June) या नशा रोधी दिवस हर वर्ष 26 जून को मनाया जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस का लक्ष्य नशीली दवाओं के दुरुपयोग से विश्व को मुक्त करना और सहयोग प्राप्त करना है। इस वर्ष (International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking 2003 Theme) की थीम है- लोगों की भलाई के लिए इसके स्टिग्मा और भेदभाव को रोकें और रोकथाम करें (People first: stop stigma and discrimination, strengthen prevention)।
अल्फा हीलिंग सेंटर के चीफ ग्रोथ ऑफिसर अतुल वाया के अनुसार, ‘अक्सर जो लोग नशे के शिकार हो जाते हैं, वे इसकी एडिक्शन को स्वीकार नहीं करना चाहते। नशीली दवाओं या शराब की लत को छुड़ाने के लिए वे मदद भी नहीं मांगना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्यों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने प्रियजन की मदद करें।
नशे के शिकार व्यक्ति के साथ वे प्रभावी ढंग से बात करें और उन्हें इसके बुरे प्रभावों के बारे में समझाएं। उन्हें हेल्थकेयर प्रोफेशनल की मदद लेने के लिए राजी करें। यह कार्य अपने-आप में एक चुनौती है। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि भले ही प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन यह व्यक्ति के लिए सकारात्मक और जीवन बदलने वाले परिणाम ला सकती है।’
ड्रग एडिक्शन या नशा क्रोनिक और बार-बार होने वाला विकार है, जो नशीली दवाओं के लगातार प्रयोग का प्रतिकूल प्रभाव है। इसे मस्तिष्क विकार माना जाता है। इसके कारण ब्रेन सर्किट में फंक्शनल चेंज हो जाते हैं। इसके कारण तनाव, डिप्रेशन और सेल्फ कंट्रोल नहीं रहना हो जाता है।
अवैध दवाओं (Illicit Drug) का उपयोग ड्रग एब्यूज कहलाता है। इसमें अन्य उद्देश्यों के लिए अत्यधिक मात्रा में प्रेस्क्रिप्शन या ओवर-द-काउंटर दवाओं का उपयोग किया जाता है। नशीली दवाओं के कारण सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और जॉब संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं।
अतुल वाया कहते हैं, ‘सबसे पहले समस्या को स्वीकार कर उस पर कार्यवाही करना जरूरी बन जाता है। नशे की लत से जूझ रहे व्यक्ति को सबसे पहले समस्या के परिणामों को बताना जरूरी है। नशे के दुष्परिणाम को बताने के लिए व्यक्ति पर लगाम लगाना भी जरूरी है। एडिक्ट व्यक्ति को अपनी समस्या के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित करें। समस्या के निदान को तलाशने की कोशिश करें।
हर व्यक्ति के ठीक होने का ढंग अलग-अलग होता है। पुनरुद्धार केंद्र व्यक्तिपरक उपचार योजना बनाते हैं। ये उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और चुनौतियों के अनुसार होती हैं।
अतुल वाया के अनुसार, यदि समस्या गंभीर हो तो पुनर्वास केंद्र की मदद मांगना जरूरी हो जाता है। व्यसन से जूझ रहे किसी व्यक्ति को पेशेवर मदद की जरूरत सबसे अधिक होती है।
साक्ष्य आधारित उपचार (Evidence based Treatment)
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कस्टमाइज़ करेंपुनर्वास केंद्र व्यक्तियों को नकारात्मक विचार पैटर्न और व्यवहार बदलने में मदद करने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, डायलेक्टिकल बिहेवियरल थेरेपी (डीबीटी) और प्रेरणादायक बातचीत जैसे साक्ष्य-आधारित उपचारों का उपयोग करते हैं।
पुनर्वास केंद्र के ग्रुप थेरेपी सेशंस में नशे से जूझ और उबरने की कोशिश कर रहे व्यक्तियों के साथ बैठकें भी आयोजित की जाती है। इससे उन्हें समान अनुभवों से गुजरने वाले अन्य लोगों से जुड़ने का अवसर मिल पाता है। इनके अलावा, परिवार और मित्रों का सहयोग सबसे अधिक मिलना चाहिए, जिनसे वे अपनी बात शेयर कर सकें।
व्यक्ति को रिकवर होने में लंबा समय लगता है। इसलिए उन्हें लगातार देखभाल और मानसिक संबल की जरूरत पड़ती है। पुनर्वास केंद्र में आफ्टरकेयर योजनाएं भी होती हैं। ये उन्हें फिजिकल और मेंटल हेल्थ को मजबूती देने में मदद करते हैं।
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