कैंसर (Cancer) पीड़ित व्यक्ति ही नहीं, बल्कि उसके प्रियजनों और पूरे परिवार के लिए किसी ट्रॉमा (Trauma) से कम नहीं होता। वहीं जब यह कैंसर बच्चों का हो तो स्थिति और भी ज्यादा तनावपूर्ण हो सकती है। भारत में बच्चों में होने वाली मौतों का नौंवा सबसे बड़ा कारण कैंसर है। इसलिए यह जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस (International childhood cancer day) के अवसर पर आप इस घातक बीमारी के कारण, लक्षण और उपचार के बारे में बेहतर तरीके से जान सकें।
हर वर्ष 15 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस (International childhood cancer day) मनाया जाता है। इस दिन के आयोजन का उद्देश्य दुनिया भर में कैंसर के बारे में जागरुकता फैलाना है। चिकित्सा विज्ञान ने अब इतनी तरक्की कर ली है कि वह कैंसर जैसी घातक बीमारी का भी उपचार ढूंढ चुका है। बस जरूरत है समय रहते इससे पहचनने और उपचार शुरू करने की।
बच्चों में होने वाले कैंसर के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में पीडियाट्रिक हीमेटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी एंड बीएमटी के निदेशक डॉ. विकास दुआ से बात की। बहुत कम लोग जानते हैं कि बच्चों के कैंसर और वयस्कों में होने वाले कैंसर के उपचार के लिए अलग-अलग डॉक्टर होते हैं। ताकि बच्चों का उपचार उनके मनोविज्ञान को समझते हुए किया जा सके।
डॉ. दुआ कहते हैं, ” कैंसर को काबू करना मुश्किल नहीं है। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अभिभावकों का इसके बारे में जागरुक रहना। इस तरह के कैंसर के इलाज के लिए उपलब्ध आधुनिक उपचार पद्धतियों की जानकारी रखना कैंसर को नियंत्रण में रखने में मददगार हो सकता है।”
भारत में कैंसर के कुल मामलों में बच्चों के कैंसर (cancer in children) के तकरीबन 5 फीसदी मामले पाए गए हैं। बच्चों के कैंसर के ज्यादातर मामले लड़कों में पाए जाते हैं। हाल के सर्वे के मुताबिक बालकों में कैंसर के मामले देश के कुल मामलों के मुकाबले दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में कहीं ज्यादा हैं। भारत में 5 से 14 साल की उम्र के बच्चों में मृत्यु दर का नौवां सबसे बड़ा कारण कैंसर ही है।
फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुगाम में पीडियाट्रिक हीमैटोलॉजी एंड ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. विकास दुआ बताते हैं, ‘बच्चों में करीब 10 से अधिक प्रकार के कैंसर देखे गए हैं। इनमें से सामान्य कैंसर के कुछ मामले एक्यूट ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, लिम्फोमा, न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म ट्यूमर, रेटिनोब्लास्टोमा और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा शामिल हैं।
इनमें से बच्चों में सबसे ज्यादा मामले एक्यूट ल्यूकेमिया (Blood cancer) के पाए गए हैं। जो सभी तरह के बाल कैंसर में एक तिहाई से ज्यादा हैं।
एक्यूट ल्यूकेमिया दो प्रकार के होते हैं: एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) और एक्यूट मायल्यॉड ल्यूकेमिया (AML)। इनमें एएमएल के मुकाबले एएलएल लगभग तीन गुना अधिक होता है।’
उन्होंने कहा, ‘बच्चों में खतरे के कुछ निशान ऐसे होते हैं, जिन्हें देखते ही फैमिली फिजिशियन या शिशुरोग विशेषज्ञ बच्चे को पीडियाट्रिक हीमेटो-ऑन्कोलॉजिस्ट के पास भेज देते हैं। इनमें हीमोग्लोबिन का कम स्तर, श्वेत रक्तकण की कम या ज्यादा मात्रा और प्लेटलेट की कम मात्रा शामिल हैं।
यह भी पढ़ें – प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर गीता दीक्षित ने जीती ओवेरियन कैंसर से जंग
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंइन निष्कर्षों को हमेशा पोषक तत्वों या संक्रमण से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। बच्चे में यदि बार-बार बेवजह बुखार,आलस, रक्तस्राव, हड्डी का दर्द और गर्दन में सूजन की शिकायत आए, तो अभिभावकों को किसी पीडियाट्रिक हीमेटो-ऑन्कोलॉजिस्ट को भी दिखा लेना चाहिए।’
कैंसर का एक मजबूत पारिवारिक इतिहास बच्चे के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है, लेकिन ये जीन अत्यंत दुर्लभ हैं। बचपन के कैंसर लगभग हमेशा एक डीएनए उत्परिवर्तन के कारण होते हैं जो विरासत में नहीं मिलता है
बच्चों में, डाउन सिंड्रोम जैसी आनुवंशिक स्थिति कभी-कभी कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है। जिन बच्चों ने कैंसर के लिए कीमोथेरेपी या विकिरण उपचार किया है, उनमें फिर से कैंसर होने की संभावना अधिक होती है
पर्यावरणीय रिस्क कारक हमारे परिवेश में प्रभाव हैं, जैसे कि रेडिएशन और कुछ केमिकल , जो ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों के होने के रिस्क को बढ़ाते हैं।
उच्च स्तर के रेडिएशन का एक्सपोजर बचपन के कैंसर के लिए एक रिस्क कारक है।एक भ्रूण विकास के पहले महीनों के भीतर विकिरण के संपर्क में आता है, बचपन के कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है।
जिन बच्चों को अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने के लिए गहन उपचार मिल रहा है (मुख्य रूप से जिन बच्चों के अंग प्रत्यारोपण हुए हैं) में कुछ कैंसर का खतरा बढ़ जाता है
बचपन के कैंसर बड़ों के कैंसर के समान नहीं हैं
1. बच्चो को शराब और तंबाकू के उपयोग से बचाए एवं दूर रखें।
2. बच्चों को सेकेंडहैंड धुएं से दूर रखना जो कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है।
3. केमिकल व वायु प्रदूषण के संपर्क को कम करना जोकि कैंसर की एक वज़ह हो सकता है।
4. कुछ चिकित्सा परीक्षणों के दौरान उपयोग किए जाने वाले विकिरण की मात्रा को सीमित करना, जैसे कि सीटीस्कैन।
5. एक स्वस्थ आहार आपके शरीर को हानिकारक रसायनों को हटाने, डीएनए को नुकसान को रोकने और मरम्मत करने में मदद करता है, और कैंसर पैदा करने वाले रसायनों के गठन को अवरुद्ध करता है|
6. व्यायाम एस्ट्रोजन और इंसुलिन जैसे हार्मोन के स्तर को स्थिर करता है जो कैंसर से जुड़ा हुआ है। एक सक्रिय जीवन शैली स्तन, आंत्र और गर्भाशय के कैंसर की घटनाओं को कम करती है।
यह जानना अत्यंत जरूरी है कि इन बच्चों का इलाज किसी पीडियाट्रिक हीमेटो-ऑन्कोलॉजिस्ट से ही कराया जाता है। क्योंकि बच्चों की मानसिकता और कीमोथेरेपी दवाओं के प्रति उनकी संवदेना वयस्कों से बहुत अलग होती है, जिसे कोई शिशु रोग विशेषज्ञ ही समझ सकता है।
एएलएल के ज्यादातर मरीजों पर कीमोथेरापी का अच्छा असर होता है। हालांकि इनमें से 5-10 फीसदी मामले अत्यंत जोखिमपूर्ण होते हैं। इनका बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिये सफल इलाज किया जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में बच्चों के कैंसर के इलाज में अहम प्रगति देखी गई है। अत्याधुनिक चिकित्सा संस्थानों में इलाज कराने वाले बच्चों के जीवित रहने की दर पांच साल के दौरान 75 से 79 फीसदी देखी गई है। जहां पूर्ण प्रशिक्षित और अनुभवी बाल कैंसर विशेषज्ञों से उनका इलाज किया जाता है।
यह भी पढ़ें – इम्यूनोथेरेपी से हो सकता है मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर का उपचार, जानिए क्या कहता है यह शोध