गठिया की दवा के दुष्प्रभाव कम करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा दवा देने का नया तरीका

भारतीय वैज्ञानिकों ने गठिया की दवा सल्फापायरीडाइन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए रोगियों को दवा देने का नया तरीका खोजा है।
ये हर्ब्‍स जोड़ों में दर्द से निजात दिलाने में मदद करते हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक
ये हर्ब्‍स जोड़ों में दर्द से निजात दिलाने में मदद करते हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक
भाषा
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गठिया के मरीजों के लिए एक अच्‍छी खबरक है। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दवा देने का एक ऐसा नया तरीका खोज निकाला है, जिससे उन्‍हें इसके साइड इफैक्‍ट्स नहीं झेलने होंगे। आइए जानते हैं क्‍या है वह नया तरीका और इससे किसको हो सकता है लाभ।

पंजाब स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार सल्फापायरीडाइन गठिया (रूमटॉइड आर्थराइटिस) की तीसरी सबसे पुरानी दवा है जो अब भी इस्तेमाल होती है।

क्‍या होते हैं साइड इफैक्‍ट्स

अभी तक गठिया के मरीजों को लंबे समय तक सल्फापायरीडाइन दवा का सेवन करना पड़ता है। पर इससे जहां गठिया में लाभ मिलता है, वहीं कई अन्‍य तरह के साइड इफैक्‍ट्स भी देखने में आते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि लंबे समय तक इस दवा के सेवन से जी मिचलाना, उल्टी आना, त्वचा पर चकत्ते पड़ना, चक्कर आना, बेचैनी और पेट में दर्द जैसे दुष्प्रभाव सामने आते हैं।

आर्थ्राइटिस की दवा लेने पर त्‍वचा पर चकत्‍ते होने लगते हैं। चित्र : शटरस्टॉक।
आर्थ्राइटिस की दवा लेने पर त्‍वचा पर चकत्‍ते होने लगते हैं। चित्र : शटरस्टॉक।

एलपीयू में स्कूल ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर भूपिंदर कपूर ने कहा कि , ”अत्यधिक खुराक की वजह से दवा के अणु के दुष्प्रभाव होते हैं। इसलिए हमने एक ऐसा तरीका निकाला है जिससे दवा को सीधे शरीर के प्रभावित हिस्से तक पहुंचाया जा सकता है और यह सुरक्षित है।

जानिए क्‍या है वह नया तरीका

‘मैटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग सी नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने सल्फापायरीडाइन का एक ‘प्रोड्रग विकसित करने और इसे दवा देने के नये तरीके में शामिल करने की जानकारी दी है।

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प्रोड्रग को रोगी के शरीर के प्रभावित हिस्से में सीधे इंजेक्ट किया जाता है। इसका दवा के रूप में सेवन नहीं किया जाता। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इसका मतलब है कि दवा शेष शरीर में फैले बिना सीधे प्रभावित अंग तक पहुंचती है।

अनुसंधानकर्ताओं के दल ने दवा देने की इस नवोन्मेषी प्रणाली के प्री-क्लीनिकल ट्रायल और परीक्षण सफलतापूर्वक किये हैं। इस अध्ययन का संचालन फोर्टिस अस्पताल, लुधियाना और तमिलनाडु के ऊटी स्थित जेएसएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी के साथ मिलकर किया गया है।

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