पिछले कुछ सप्ताह से भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी चर्चा में है। चर्चा में वे क्यों न हों`! उनकी मेहनत जो सफल हुई है। 2 ऑक्टूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बच्चों में मलेरिया की रोकथाम के लिए एक नए टीके, आर21/मैट्रिक्स-एम को मंजूरी दे दी। इस वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन भारतीय वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) द्वारा किया जाता है। हालांकि अप्रैल 2023 में ही पश्चिम अफ्रीकी देश घाना ने डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदन मिलने से पहले ही मलेरिया वैक्सीन आर21 को मंजूरी दे दी थी। वैक्सीन एप्रूव होने के बाद डब्ल्यूएचओ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सहयोग से बनी वैक्सीन (R21/Matrix-M vaccine) को इस्तेमाल (malaria vaccine) के लिए सिफारिश कर रही है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वैक्सीन R21 को विकसित किया गया है। दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा इसका उत्पादन किया गया है। डब्ल्यूएचओ की स्वतंत्र सलाहकार संस्था, विशेषज्ञों के सलाहकार समूह और मलेरिया नीति सलाहकार समूह (एमपीएजी) द्वारा एक विस्तृत वैज्ञानिक समीक्षा के बाद, आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन को उपयोग के लिए अनुशंसित किया गया है। अगले साल की शुरुआत में आर21/मैट्रिक्स-एम वैक्सीन खुराक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने लगेगी।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया ने पहले ही प्रति वर्ष 100 मिलियन खुराक की उत्पादन क्षमता बना ली है। इसे अगले दो वर्षों में दोगुना कर दिया जाएगा। उत्पादन का यह पैमाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि मलेरिया के हाई रिस्क वाले लोगों का वैक्सीनेशन बीमारी के प्रसार को रोकने के साथ-साथ टीकाकरण करने वालों की सुरक्षा के लिए भी जरूरी होगा। आर21/मैट्रिक्स-एम वैक्सीन से पहले ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन पीएलसी ने पहला मलेरिया वैक्सीन आरटीएस, एस/एएस01 विकसित किया था।
आर21/मैट्रिक्स-एम वैक्सीन की घाना, केन्या और मलावी सहित अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों के बारह देशों में पहले से ही सिफारिश कर दी गई है। अगले दो वर्षों में आरटीएस, एस मलेरिया वैक्सीन की 18 मिलियन खुराक प्राप्त करने का अनुमान है। यदि इस वैक्सीन की अधिक मांग होगी, तो भारत बायोटेक में आरटीएस, एस का उत्पादन शुरू होगा। R21 वैक्सीन 2024 के मध्य के बाद उपयोग के लिए उपलब्ध होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, अफ़्रीका में बच्चों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण मलेरिया बना हुआ है। यह लगभग 32 अफ्रीकी देशों में स्थानीय रूप से मौजूद है, जो दुनिया भर में मलेरिया से होने वाली लगभग 93% मौतों के लिए जिम्मेदार है। चार अफ्रीकी देशों- नाइजीरिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, तंजानिया और नाइजर में मलेरिया के कारण होने वाली वैश्विक मौतों में से आधे से अधिक का योगदान है।
2021 वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका के सबसे अधिक आबादी वाले देश नाइजीरिया में विश्व स्तर पर मलेरिया की स्थिति सबसे खराब है। 2020 में सभी वैश्विक मौतों में से 32% और सभी मलेरिया मामलों में से 27% के लिए जिम्मेदार है।
भारत फार्मास्युटिकल निर्माण में विश्व स्तर पर अपना स्थान रखता है। सीरम इंस्टीट्यूट ने टीकों की कीमत 3 डॉलर या उससे कम बनाए रखने की कोशिश भी कर रही है। वैक्सीन को इस तरह बनाया गया है कि यह रेफ्रिजरेटर में 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर संग्रहीत किया जा सके। इससे इसका भंडारण 24 महीने तक हो सकता है।
2026 तक मलेरिया के टीकों की मांग सालाना 4 से 6 करोड़ खुराक तक पहुंचने का अनुमान है। इसके अलावा यह 2030 तक सालाना 80 से 100 मिलियन को पार कर सकता है। भारत वर्तमान में खसरे के टीकाकरण (Measles Vaccine) के लिए दुनिया की लगभग 90% मांग में योगदान दे रहा है। इसके कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) अब 65-70% खसरे के टीके की आपूर्ति भारत से करता है।
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