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ब्रेन के दो अलग हिस्सों में दिखाई देते हैं डिप्रेशन के हाई और लो लेवल, अध्ययन में हुआ खुलासा 

हालिया स्टडी बताती है कि डिप्रेशन का हाई और लो लेवल ब्रेन के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद होता है। इस  अध्ययन से मूड डिसऑर्डर के अलावा, पार्किंसन और ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में सहुलियत होगी।
Updated On: 20 Oct 2023, 09:42 am IST
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depression symptom
कोरोना बाद डिप्रेशन और स्ट्रेस के लक्षण तो मरीजों में आम हैं ।चित्र : शटरस्टॉक

व्यक्ति जब अकेलापन महसूस करता है, तो वह अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। इसमें से एक कारण ब्रेन में लगी चोट भी हो सकती है। यदि ब्रेन में चोट लगने पर व्यक्ति लंबे समय से डिप्रेशन का शिकार है, तो इसके लिए ब्रेन के दो नेटवर्क जिम्मेदार हो सकते हैं। इसमें से एक बढ़े हुए डिप्रेशन के साथ जुड़ा हो सकता है, तो दूसरा डिप्रेशन के कम जोरदार लक्षणों (depression symptoms in brain) से जुड़ा हो सकता है। इससे मूड डिसऑर्डर के बारे में भी जाना जा सकेगा। अमेरिका की जानी-मानी यूनिवर्सिटी की स्टडी रिपोर्ट यही कहती है।

क्या है यह नई स्टडी

अमेरिका की लोवा हेल्थ केयर ने 526 रोगियों पर लंबे समय तक एक रिसर्च की। उन्हें स्ट्रोक या किसी खास ट्रॉमा के कारण ब्रेन इंजरी हुई थी। इसके आधार पर रोगियों का एनालिसिस किया गया और डिप्रेशन लेवल मापा गया। 

शोधार्थियों ने पाया कि ब्रेन का एक हिस्सा हाई डिप्रेशन लेवल को शो कर रहा था, तो दूसरा हिस्सा लो डिप्रेशन लेवल को शो कर रहा था। ब्रेन का जो हिस्सा हाई डिप्रेशन लेवल से जुड़ा था, वह टास्क ओरिएंटेशन, अटेंशन, इमोशन को भी प्रभावित कर रहा था। वहीं जो लो डिप्रेशन लेवल से जुड़ा था, वह व्यक्ति के पूछताछ और जांच आदि के कार्यों और अपने बारे में सोचने से जुड़ा हुआ पाया गया।

जटिल हैं ब्रेन और डिप्रेशन कनेक्टिविटी मॉडल 

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मस्तिष्क के कई क्षेत्रों में बार-बार डिप्रेशन को जांचा गया है, लेकिन अब तक कोई सही निष्कर्ष नहीं मिल पाया है। चित्र : शटरस्टॉक

ब्रेन में डिप्रेशन के स्थान के बारे में पता लगाने के लिए पहले भी कई रिसर्च और स्टडी होती रही हैं। मस्तिष्क में अवसाद के स्थान का पता लगाने के लिए न्यूरोइमेजिंग, न्यूरोसाइकिएट्रिक और ब्रेन स्टीमुलेशन का अध्ययन किया जाता रहा है। न्यूरोइमेजिंग अध्ययनों को अब तक प्रभावी माना गया है। हालांकि मस्तिष्क के कई क्षेत्रों में बार-बार डिप्रेशन को जांचा गया है, लेकिन अब तक कोई सही निष्कर्ष नहीं मिल पाया है।

हालिया अध्ययन भी इस ओर स्पष्ट संकेत नहीं दे पाता है। ब्रेन और डिप्रेशन कनेक्टिविटी मॉडल स्वाभाविक रूप से जटिल है। साथ ही इन मॉडलों की वैधता का परीक्षण किया जाना भी बाकी है। यदि ब्रेन में डिप्रेशन के स्थान का सही पता चल जाये तो पार्किंसंस डिजीज और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का न्यूरोसाइकिएट्रिक अध्ययन हो पायेगा। इन बीमारियों के इलाज में भी डॉक्टरों को सुविधा मिल सकेगी।

अलग हैं हाई और लो डिप्रेशन लेवल

दरअसल, न्यूरोट्रांसमीटर के न्यूक्लियस महत्वपूर्ण होते हैं। इसे ही अवसाद में असामान्य माना जाता है। ब्रेन इमेजिंग अध्ययनों में विभिन्न कॉर्टिकल, सबकोर्टिकल और ब्रेन स्टेम क्षेत्रों में असामान्य सक्रियता या मेटाबोलिज्म दिखाया गया है। अलग अलग शोध के निष्कर्षों के आधार पर यह माना गया कि डिप्रेशन की गुणवत्ता पर  दवा, नशा किये जाने वाले प्रोडक्ट का इस्तेमाल भी प्रभावित करता है।

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डिप्रेशन की गुणवत्ता पर  दवा, नशा किये जाने वाले प्रोडक्ट का इस्तेमाल भी प्रभावित करता है। चित्र: शटरस्टॉक

ब्रेन के अलग अलग नेटवर्क पर हाई और लो डिप्रेशन लेवल की स्टडी डीप ब्रेन स्टीमुलेशन की प्रभावी स्टडी के लिए उम्मीद जगाती है। इससे ब्रेन स्थित अवसाद के स्थान और कारणों का और अधिक पता चल सकेगा।

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लेखक के बारे में
स्मिता सिंह
स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है।

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