बढ़ती उम्र में होने वाली पार्किसन्स डिजीज का संबंध आपके जीन से भी है, जानिए क्या कहता है शोध

एक शोध में यह बात सामने आई है कि महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों में पाई जाने वाली इस बीमारी में उन रोगियों की उम्र ज्यादा जोती है, जिनका जीन म्यूटेट कर चुका होता है। 
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पार्किन्संस बीमारी का रोगी मोटर स्किल्स में असक्षम हो जाता है, चित्र:शटरस्टॉक
शालिनी पाण्डेय Published: 27 Jun 2022, 20:51 pm IST
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पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease) एक मस्तिष्क विकार है। इसके कारण शरीर में अनपेक्षित या अनियंत्रित मूवमेंट जैसे हिलना, मांसपेशियों में कठोरता आना, और संतुलन बनाए रखने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। पार्किंसंस का खतरा किसी को भी हो सकता है। पर कुछ शोध और अध्ययनों से पता चला है कि यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करता है। यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों, लेकिन उन कारणों को समझने के लिए अध्ययन चल रहे हैं।

आम तौर पर यह बीमारी बढ़ती उम्र वालों में देखने को मिलती है, आंकड़ों की मानें तो पार्किंसंस के मामले में अधिकांश रोगी 60 साल की उम्र के बाद पहली बार बीमारी से पीड़ित होते हैं। लगभग 5% से 10% 50 साल की उम्र से पहले ही इस बीमारी की जद में आ जाते हैं। 

क्या कहता है हालिया शोध 

यूरोपियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी (ईएएन) कांग्रेस में प्रस्तुत किए गए नए शोध के अनुसार, कोई व्यक्ति पार्किंसंस रोग के साथ कितने समय तक जीवित रहता है, यह बात उसमें मौजूद जेनेटिकल जीन पर निर्भर करती है। सोरबोन यूनिवर्सिटी के पेरिस ब्रेन इंस्टीट्यूट सहित पेरिस के चार अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने  2,037 पार्किंसंस रोग के रोगियों पर किए गए अध्ययन में यह पाया कि आनुवंशिक वेरिएंट पर यह बात निर्भर करती है कि पार्किंसंस की बीमारी कितनी तेजी से या धीमी गति से व्यक्ति को अपना शिकार बनाता है।

शोधकर्ताओं ने यह पाया कि जिन रोगियों में LRRK2 या PRKN जीन म्यूटेशन थे, उनके सर्वाइवल के चांसेज़ ज़्यादा थे (क्रमशः मृत्यु का खतरा अनुपात = 0.5 और 0.42)वहीं जिनमें एसएनसीए या जीबीए था, उनमें म्यूटेशन नहीं हुआ था और उनमें म्रत्यु का ख़तरा ज़्यादा था (क्रमशः मृत्यु का खतरा अनुपात = 10.20 और 1.36)। 

इस बीमारी के बारे में और जानने के लिए हमने बात की एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज़ के असोसिएट डायरेक्टर और न्यूरोसर्जरी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर मुकेश पांडेय से जिन्होंने इस बारे में हमें विस्तार से बताया।

क्या है पार्किंसंस रोग के कारण 

पार्किंसंस रोग के सबसे प्रमुख लक्षण तब दिखाई देते हैं जब बेसल गैन्ग्लिया (basal ganglia) में तंत्रिका कोशिकाएं (nervous system), काम करना बंद कर देते हैं। आम तौर पर, ये तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन्स, एक महत्वपूर्ण मस्तिष्क रसायन उत्पन्न करते हैं जिसे डोपामाइन कहा जाता है। जब न्यूरॉन्स मर जाते हैं या खराब हो जाते हैं, तो वे कम डोपामाइन का उत्पादन करते हैं, जिससे बॉडी मूवमेंट से जुड़ी समस्याएं होती हैं। वैज्ञानिक अभी भी यह नहीं जानते हैं कि न्यूरॉन्स के ख़त्म होने का ठीक ठीक कारण क्या है।

पीड़ित के शरीर में नॉरपेनेफ्रिन का उत्पादन नहीं होता है, जो नर्वस सिस्टम में केमिकल मैसेंजर के तौर पर काम करता है। जिससे शरीर के कई कार्य नियंत्रित होते हैं, जैसे कि हृदय गति और रक्तचाप। नॉरपेनेफ्रिन के न होने से व्यक्ति को थकान, अनियमित रक्तचाप, डाइजेस्टिव सिस्टम का ठीक तरह से काम न करना, और उठते या बैठते समय  रक्तचाप में अचानक गिरावट आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

पार्किंसंस रोगियों के मस्तिष्क की कई कोशिकाओं में लेवी बॉडी, प्रोटीन अल्फा-न्यूक्लिन के असामान्य क्लस्टर्स होते हैं। वैज्ञानिक अल्फा-सिन्यूक्लिन के सामान्य और असामान्य कार्यों के साथ ही आनुवंशिक परिवर्तन से इसके संबंध को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं जो पार्किंसंस और बॉडी डिमेंशिया को प्रभावित करते हैं। पार्किंसंस में आनुवंशिकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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यह बीमारी अनुवांशिक भी हो सकती है । चित्र: शटरस्‍टॉक

पहचानिए पार्किंसंस रोग के लक्षण

 

हाथ, हाथ, पैर, जबड़े या सिर में एक निश्चित गति में लगातार कंपन होना

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कस्टमाइज़ करें

मांसपेशियों में अकड़न, जहां मांसपेशियां लंबे समय तक सिकुड़ी रहती हैं

गति में कमी आना

बिगड़ा हुआ संतुलन, जिसके कारण गिरने जैसी दुर्घटना भी हो सकती थी 

अवसाद और अन्य भावनात्मक परिवर्तन

निगलने, चबाने और बोलने में कठिनाई

मूत्र संबंधी समस्याएं या कब्ज

त्वचा संबंधी समस्याएं

डॉक्टर पाण्डेय इस विषय में कहते हैं कि पार्किंसंस के लक्षण की दर में होने वाली बढ़ोतरी हर व्यक्ति में भिन्न होती है। इस रोग के शुरूआती लक्षण इतने हल्के होते हैं कि धीरे-धीरे ही सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, लोगों को हल्के झटके महसूस हो सकते हैं या कुर्सी से उठने में कठिनाई हो सकती है। 

रोगी बहुत धीरे बोलते हैं, या उनकी लिखावट धीमी हो जाती है और छोटी होती जाती है। दोस्तों या परिवार के सदस्यों को पार्किंसंस के शुरुआती लक्षण सबसे पहले दिखाई दे जाते हैं। वे देख सकते हैं कि व्यक्ति के चेहरे में अभिव्यक्ति और एक्सप्रेशन का अभाव है, या यह कि व्यक्ति सामान्य रूप से एक हाथ या पैर नहीं हिलाता है।

पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में अक्सर पार्किनियन चाल विकसित हो जाती है, जिसमें आगे की ओर झुक जाना, छोटे कदम लेते हुए चलना और हाथों का स्टेबल नहीं होने के साथ ही मूवमेंट शुरू करने या जारी रखने में परेशानी होना शामिल है।

इस बीमारी के लक्षण अक्सर शरीर के एक तरफ या किसी एक अंग में शुरू होते हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, यह पूरे शरीर को प्रभावित करने लगते हैं। एक तरफ के लक्षण दूसरे की तुलना में अधिक या कम गंभीर हो सकते हैं।

पार्किंसन रोग से ग्रसित बहुत से लोग जकड़न और कंपकंपी का अनुभव करने से पहले,  नींद न आने की समस्या, कब्ज, गंध की कमी और पैरों में बेचैनी की समस्या से दो-चार होते हैं। जबकि इनमें से कुछ लक्षण सामान्य उम्र बढ़ने के साथ भी हो सकते हैं, अगर ये लक्षण बिगड़ते हैं या दैनिक जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू करते हैं तो अपने डॉक्टर से बात करें।

कैसे किया जा सकता है पार्किंसंस रोग का निदान

डॉक्टर पाण्डेय रोग के निदान के बारे में बात करते बताते हैं कि पार्किंसंस के गैर-आनुवंशिक मामलों का निदान करने के लिए वर्तमान में कोई उपचार नहीं है। डॉक्टर आमतौर पर किसी व्यक्ति का मेडिकल हिस्ट्री से लेकर और न्यूरोलॉजिकल जांच तक करके बीमारी का निदान करते हैं। यदि दवा लेना शुरू करने के बाद लक्षणों में सुधार होता है, तो यह तय बात है कि व्यक्ति को पार्किंसंस है।

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दवाइयों का असर ख़त्म होने पर  शल्य चिकित्सा की मदद से इसके लक्षणों पर रोक लगाईं जा सकती है। चित्र: शटरस्‍टॉक

पार्किंसंस रोग के लिए दवाएं

दवाएं पार्किंसंस के लक्षणों का इलाज करने में इस तरह मदद कर सकती हैं:

मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ाकर

मस्तिष्क के अन्य रसायनों पर प्रभाव पड़ना, जैसे कि न्यूरोट्रांसमीटर, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच सूचना स्थानांतरित करके 

नॉनमोटर स्किल से जुड़े लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद करके

पार्किंसंस के लिए मुख्य चिकित्सा लेवोडोपा है। मस्तिष्क में डोपामाइन की घटती आपूर्ति को फिर से भरने के लिए तंत्रिका कोशिकाएं (nervous system) लेवोडोपा का उपयोग   करती हैं। समय के बीतने के साथ मानव शरीर को दवाओं की आदत पड़ने लगती है जिससे उनका असर कम होने लगता है। 

ऐसे में पार्किंसंस रोगियों को एक महंगे ऑपरेशन की सलाह दी जाती है शल्य प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर मस्तिष्क के एक खास हिस्से में इलेक्ट्रोड लगाता है और उसे  छाती में प्रत्यारोपित एक छोटे विद्युत उपकरण से जोड़ता है। डिवाइस और इलेक्ट्रोड मिलकर मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को उत्तेजित करते हैं जो दर्द रहित होता है। इस ऑपरेशन के बाद मरीज़ में पाए जाने वाले पार्किसन्स सम्बंधित लक्षण कम या ख़त्म हो जाते हैं जिसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि रोगे अब ठीक हो गया।

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