ब्लड ट्रांसफ्यूज़न (blood transfusion) जीवनरक्षक होने के साथ-साथ किसी भी अस्पताल की कार्यप्रणाली में एक बड़ा सपोर्ट भी होता है, लेकिन इसकी सुरक्षा और उपलब्धता को लेकर प्राय: प्रश्नचिह्न लगते रहते हैं। ब्लड सेंटर में हमारा उद्देश्य जरूरतमंद मरीज़ के लिए सही वक्त और सही जगह पर सही मात्रा में ब्लड प्रोडक्ट उपलब्ध कराना होता है। ब्लड का इस्तेमाल उस समय किया जाना चाहिए, जब इससे मिलने वाले फायदे इस प्रक्रिया से जुड़े जोखिमों से अधिक हों, यह ब्लड तथा ब्लड प्रोडक्ट्स का तार्किक/उचित प्रयोग कहलाता है। इन दिनों ब्लड ट्रांसफ्यूजन मरीजों की जीवन रक्षा में एक जरूरी प्रक्रिया के रूप में उभर रही है। आइए समझते हैं कि आखिर ये क्या है और इसके लिए जरूरी प्रोटोकॉल क्या होना चाहिए।
सही ब्लड डोनर का चयन, जो कि काउंसलिंग और डोनर हिस्ट्री के आधार पर किया जाता है।
उचित प्रकार के डोनर के चुनाव के लिए उसके बारे में जानकारी लेना तथा संभावित डोनर को इस बारे में पूरी काउंसलिंग देना जरूरी होता है। डोनर को एक प्रश्नावली भरने के लिए दी जाती है और उसके बाद काउंसलर द्वारा उसकी काउंसलिंग की जाती है।
प्रश्नावली में ही डोनर के अधिक जोखिमपूर्ण व्यवहारों के बारे में जानकारी ली जाती है। ताकि वह आवश्यकतानुसार स्वयं को डोनर प्रक्रिया से अलग कर सके। संभावित डोनर्स को ईमानदारी के साथ सभी सवालों के जवाब देने चाहिए, क्योंकि विंडो पीरियड (वह अवधि जबकि डोनर के शरीर में इंफेक्शन मौजूद होता है, लेकिन किसी जांच प्रक्रिया से उसका निदान नहीं हुआ होता)। भी किसी भी समस्या के लिए जोखिम बढ़ा सकता है।
रक्तदान के फायदों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर स्वैच्छिक डोनेशन को प्रोत्साहित किया जाता है और ऐसे स्वैच्छिक डोनर्स आमतौर से अपनी किसी हिस्ट्री को नहीं छिपाते। डोनर का चयन, उन्हें शिक्षित करना और समय-समय पर सभी रिप्लेसमेंट डोनर्स को स्वैच्छिक डोनर बनने के लिए प्रोत्साहित करना हमारा लक्ष्य है।
आजकल ब्लड चढ़ाने की सलाह नहीं दी जाती, बल्कि ब्लड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा आम है। इसके लिए ब्लड की प्रत्येक यूनिट में से रैड ब्लड सेल्स, प्लाज़्मा और प्लेटलेट्स या क्रायोप्रेसीपिटेट अलग कर पैक कर लिया जाता है। मरीज़ को आवश्यकतानुसार विशिष्ट प्रकार का ब्लड प्रोडक्ट ही दिया जाता है। ऐसा करने से ट्रांसफ्यूज़न रिएक्शन की आशंका कम रहती है। मरीज़ को निर्दिष्ट समय पर और उचित प्रकार की जांच के बाद ही आवश्यकतानुसार ब्लड प्रोडक्ट दिया जाता है।
प्रत्येक ब्लड यूनिट की एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी, मलेरिया तथा सिफलिस जांच की जाती है और इसके लिए एनएटी (nucleic acid testing) के साथ केमील्युमिनिसेंस टैस्ट प्रक्रिया का पालन किया जाता है। जो विंडो पीरियड को कम करता है, क्योंकि मरीज़ों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।
रक्त की सुरक्षा के लिए ब्लड ग्रुपिंग की क्वालिटी, मेल खाने की जांच, कंपोनेंट की तैयारी, रक्त उत्पादों का उचित तापमान में स्टोरेज और परिवहन बहुत महत्वपूर्ण पहलू हैं। गुणवत्ता नीतियों के लिए ब्लड कंपोनेंट्स की क्वालिटी सुनिश्चित की जाती है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन डिपार्टमेंट में रक्त की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समुचित नीतियां और प्रक्रियाएं होनी चाहिएं।
मरीज की समुचित पहचान
उसके बारे में समुचित दस्तावेज
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कस्टमाइज़ करेंहर अस्पताल में मरीज को एक अनूठा यूएचआईडी नम्बर दिया जाता है। ताकि किसी नाम के कारण गलती न हो। किसी भी प्रकार से मरीज के नाम या सैंपल लेते समय कोई मिसमैच होने से बचने के लिए ट्रांसफ्यूजन में 2 प्वाइंट पहचान का इस्तेमाल किया जाता है।
रक्त अनुरोध के परिपत्र में रक्त ट्रांसफ्यूजन के संबंध में सहमति ली जाती है और इसके लिए सभी जरूरी जानकारियां हासिल की जाती हैं। हर अनुरोध का समुचित दस्तावेज बनाया जाता है और इसे सुरक्षा कारणों से कम्युनिकेट किया जाता है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन पूरी तरह प्रशिक्षित हेल्थकेयर प्रोफेशनल से ही कराया जाना चाहिए और इसकी समुचित निगरानी रखी जानी चाहिए। ट्रांसफ्यूजन से पहले स्टिकर वाले लेबल और मेल खाने संबंधी रिपोर्ट की जांच की जानी चाहिए। एक निश्चित समय के अंतराल के बाद मरीज के स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण दस्तावेजों की निगरानी की जाती है।
कुल मिलाकर अस्पताल में मानक प्रक्रियाओं और स्वैच्छिक रक्तदान और ट्रांसफ्यूजन की नीतियों के तहत रक्त सुरक्षा सुनिश्चित करने को हेमोविजिलेंस कहा जाता है। यह किसी भी मरीज के उपचार के लिए एक जरूरी प्रक्रिया है।
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