बचपन से बड़े होने तक हमने हमेशा अपने माता-पिता को बहुत एक्टिव देखा है, खासकर शारीरिक रूप से हमेशा ही वे बहुत चुस्त रहे हैं। अपनी हर ज़िम्मेदारी को बहुत समझदारी से निभाया है उन्होंने। लेकिन, अब उन्हें इस तरह बूढ़े होते देखना हमें परेशान कर जाता है।
स्थिति और भी ज्यादा खराब तब हो जाती है जब आप अपने माता-पिता को समय के साथ बूढ़ा होते देखने के साथ चीजों को लगातार भूलता हुआ देखते हैं।
पुष्पांजलि विश्वकर्मा एक क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक हैं और नयति मेडिसिटी, मथुरा में कार्यरत हैं। वह कहती हैं, “बढ़ती हुई उम्र के साथ यादाश्त में थोड़ी बहुत कमी आना और सोचने समझने की शक्ति थोड़ी कम हो जाना नॉर्मल है। जैसे कि आप कुछ सामान रख कर भूल जाते हैं, किसी का नाम भूल जाते हैं या कोई नई चीज याद रखने में आपको कठिनाई होती है। यह सब बढ़ती उम्र में समान्य माना जाता है इसमें ज्यादा चिंता करने की बात नहीं है।
हालांकि, डॉ. प्रीति सिंह, जो गुरुग्राम के पारस अस्पताल में क्लीनिकल मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा विभाग में एक वरिष्ठ सलाहकार भी हैं, कहती हैं “अधिक उम्र के वयस्कों में अल्जाइमर या वेस्कु्लर डिमेंशिया (vascular dementia) जैसी बीमारी के लक्षण भी हो सकते है। उनकी भूलने की बीमारी के कारणों का पता लगाना और जल्द से जल्द उपचार शुरू करना तब महत्वपूर्ण है।
पुष्पांजलि विश्वकर्मा के अनुसार, यदि आपको अपने पेरेंट्स के व्यवहार में यह लक्षण देखने को मिलते हैं। तब आप समझ सकते है की वह भूलने की बीमारी से जूझ रहें हैं।
• नई बातों को या हाल ही में हुई घटना को भूलना
• सप्ताह में किसी खास दिन को, या आखिरी बार खाना कब खाया था, जैसी बुनियादी बातों को याद न रख पाना।
• स्लो थिंकिंग
• अपनी सोच और भावनाओं को व्यक्त करने में परेशानी होना।
• सुविधा व्यक्त करने और जवाब देने में परेशानी।
• अक्सर परिचित स्थानों पर खो जाना और उन्हें पहचानने में परेशानी।
• घर की गतिविधियों और जिम्मेदारियों को पूरा करने में कठिनाई होना।
• शॉपिंग स्टोर में जाने, खाना पकाने या सफाई जैसे आसान कामों में अक्सर गलतियां करना।
• व्यक्तिगत देखभाल में दिक्कत (बाल धोना, शेव करना, कंघी करना या कपड़े पहनना)
इसके अतिरिक्त, प्रीति सिंह इस सूची के अन्य लक्षणों का भी उल्लेख करती हैं:
• व्यक्तित्व या व्यवहार में परिवर्तन
• गिनती करने जैसे छोटे-छोटे कामों में कठिनाई आना
• बिना किसी कारण के मूड में परिवर्तन, जैसे गुस्सा या चिड़चिड़ापन
• भयानक सरदर्द
• बेहोशी की हालत
• अत्यधिक थकान
• सांस लेने में कठिनाई
विश्वकर्मा कहती हैं कि अगर ऊपर दिए हुए लक्षणों में से आपको कोई भी लक्षण अधिक गंभीर नजर आता है या उनकी कंडीशन खराब नजर आती है, तब आप मान सकते हैं कि वे गंभीर मानसिक बीमारी अल्जानइमर या डिमेंशिया से पीड़ित हैं।
अगर आप ऊपर दिए हुए लक्षणों में से किसी भी लक्षण का सामना करते हैं तो हो सकता है कि आप घबरा जाएं और सोचें कि अब आगे हम क्या करें। घबराइए नहीं यह सामान्य है क्योंकि अपने माता-पिता को बूढ़े होते और कमजोर होते देखना आसान बात नहीं है। बस एक गहरी सांस लीजिए और इन स्टेप्स को फॉलो कीजिए जो हमारे एक्सपर्ट्स द्वारा आपको सुझाए जा रहे हैं।
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कस्टमाइज़ करेंविश्वकर्मा कहती हैं कि अपने पेरेंट्स के साथ जुड़े रहना उनकी याददाश्त वापस लाने का सबसे आसान और खूबसूरत तरीका है। वह कहती हैं, “आप उनके फेवरेट म्यूजिक को बजाकर उनकी यादों को दोबारा ताजा कीजिए। बात करें, अपने बचपन की यादों की जो आपने उनके साथ एक्सपीरियंस की होंगी। उनके साथ पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाएं।
अपने पेरेंट्स से कहिए कि वह अपने पुराने किस्से आपके बच्चों को सुनाएं और दूसरे परिवार वालों को भी। अपनी कोई भी नई या पुरानी फोटो एल्बम लेकर आप उन यादों को ताजा कर सकती हैं। आप उनसे कह सकती हैं कि वह इन तस्वीरों में लोगों को पहचानें। इस तरह की एक्टिविटी उनकी यादों को दोबारा तरोताजा कर देगी, उनके बीते हुए कल से उन्हें दोबारा जोड़ देगी।
विश्वकर्मा सुझाव देती है, “आप अपने पेरेंट्स को दिन भर में कुछ एक्टिविटी में इन्वॉल्व करके, उनसे छोटी-छोटी एक्सरसाइज करवा सकती हैं। जैसे – योग करवा सकती हैं, आप कुछ आउटडोर गेम खेल सकती हैं या आप घर के किसी काम में उनकी मदद ले सकती हैं। वे कहती हैं कि फिजिकल एक्टिविटी आपके बूढ़े होते माता-पिता की याददाश्त को दोबारा से जीवित करने में बहुत कारगर साबित होगी।
विश्वकर्मा सुझाव देती हैं, “उनके साथ किसी धार्मिक पाठ, संगीत, कीर्तन या प्रेयर का हिस्सा बनें। आप उनके साथ किसी धार्मिक भजन या प्रेयर को सुन और गा भी सकती हैं। यह आपके और उनके बीच के संबंध को और ज्यादा निखारेगा और उनमें आत्मविश्वास को भी बढ़ाएगा।”
अब तक वह स्थति को आपकी बातों के जरिए या खुद ही समझ गए होंगे। प्रीति सलाह देती हैं, “याद रखिए आपकी चिंता और प्यार उन्हें डॉक्टर के पास जाने और कुछ नए बदलाव करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
प्रीति कहती हैं कि जब इस बारे में अपने माता-पिता से बात करें, तब आप किसी विश्वासपात्र दोस्त या किसी संबंधी को उस बातचीत में शामिल कर सकती हैं। जिससे आपकी बातचीत में ज्यादा वजन पड़े और आपके माता-पिता इसे सीरियसली ले सकें।
यदि आपको अपने पेरेंट्स में याददाश्त कम होने के या किसी और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित लक्षण नजर आते हैं। तब आप उन्हें समझाइए कि उन्हें किसी डॉक्टर के गाइडेंस की जरूरत है। इसके लिए आपको उनसे बात करनी चाहिए कि डॉक्टर्स आपकी स्थिति में सुधार लाएंगे। समय पर इलाज हो जाने से आप जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे तथा अन्य किसी बीमारी से भी बचे रहेंगे।
लेकिन यदि किसी कारण से आपके पेरेंट्स आपकी इस बात को मानने से इनकार कर देते हैं। फिर आप खुद ही किसी मनोरोग विशेषज्ञ से बात कीजिए और उनकी सलाह से अपने पेरेंट्स को मनाइए ऐसा करने से आप उनकी स्थिति में सुधार ला पाएंगे।
यदि आप वर्किंग हैं और अपने पेरेंट्स की देखभाल नहीं कर सकती। इस पर प्रीति सिंह सुझाव देती हैं, “आप किसी होम हेल्थ केयर की मदद ले सकती हैं। यह आपके माता-पिता को दैनिक कार्य करने में मदद करेंगी जैसे खाना खिलाना, उनका खाना बनाना, उनकी दवाइयों की देखभाल करने से लेकर सब कुछ। यह हेल्थ केयर एड आपके माता-पिता को सभी कुछ निश्चित समय पर देना सुनिश्चित करती है।
प्रीति याद दिलाती है कि हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह हमारे माता-पिता हैं और हम उनकी चिंता करते हैं। हम उनसे बहुत प्यार करते हैं और हमें उनकी सेहत की फिक्र भी है। हम चाहते हैं कि वह जल्दी से अच्छे हो जाएं, जबकि हम यह भी जानते हैं कि आगे आने वाले सालों में उन्हें हमारी और भी ज्यादा जरूरत पड़ने वाली है।
हमें कहने की जरूरत नहीं कि आप उन्हें घर पर कभी अकेला मत छोड़िए। खासकर ऐसी परिस्थिति में जो उन्हें और भी ज्यादा कंफ्यूज कर दे। आपको उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए और यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि वह क्या चाहते हैं और उन्हें अब किस चीज की जरूरत है।
बूढ़े होते पेरेंट्स का ख्याल रखते-रखते आपकी सारी एनर्जी खर्च हो जाती होगी। मानसिक और शारीरिक दोनों तरीके से आपको पूरी तरह अलर्ट रहने की जरूरत होती होगी। इस सारे समय में आपको अपना भी ख्याल रखना चाहिए तभी आप उनका ख्याल बेहतर रख पाएंगे। यहां हम आपको बता रहे हैं आप अपना ख्याल कैसे रखें:
विश्वकर्मा कहती हैं, “जो लोग किसी की सेवा करते हैं उन्हें बहुत सारे मानसिक और शारीरिक कष्टों का सामना करना होता है। इसलिए जिनका नज़रिया सकारात्मक होता है, वही किसी की सेवा कर पाने में सक्षम होते हैं। केवल उन्हीं की सेवा से कोई इंसान अपनी बीमारी से बाहर आ पाता है।
यही कारण है की सेवा करने वाले को कभी-कभी अपनी सेवाओं से छुट्टी लेने की जरूरत पड़ती है। जिसे आप उसका आराम करने का समय मान सकते हैं। यही समय उसको दोबारा अपनी जिम्मेदारियां सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है।
आपकी थकान को दूर करने में और मूड को बेहतर करने में एक अच्छी एक्सरसाइज का बहुत बड़ा रोल होता है। आप एक लंबी वॉक पर जा सकती हैं, दौड़ लगा सकती हैं या कोई गाना लगाकर नाच सकती हैं। विश्वकर्मा कहती हैं कि जो भी हो आपको अपने खुश करने वाले हार्मोन को जरूर जागरूक करना चाहिए ऐसा करने से आप बेहतर महसूस करने लगेंगी।
बेशक उस समय सकारात्मक सोचना बहुत मुश्किल सा लगने लगता है कि जब आप अपने पेरेंट्स को बूढ़ा होते हुए और चीज़ों को भूलते हुए देख रहे हो। आपकी बहुत सी कोशिशें जब नाकाम हो रही होती हैं, तब ऐसे दुख के समय में सकारात्मक सोचना मुश्किल सा लगता है।
इस समय विश्वकर्मा सुझाव देती हैं कि आप ऐसे समय का फायदा उठाकर अपने पुराने दोस्तों-रिश्तेदारों को मिलने जाएं। अपने माता-पिता के साथ बाहर भोजन करने भी जा सकती हैं। किसी मूवी को इंजॉय कीजिए, कोई कंसर्ट देखिए, कोई स्पोर्ट्स इवेंट देखिए, स्पा ट्रीटमेंट ले सकते हैं या फिर ऐसा कोई भी काम कीजिए जिससे आप ज्यादा खुश और अच्छा महसूस करें।
हाल ही में अचानक ही इस ज़िम्मेदारी के नए बोझ से हो सकता है कि आप अपना संतुलन खो कर गलत बर्ताव करें। आपका स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगे। ऐसा भी हो सकता है कि आप बात-बात पर गुस्सा करने लगें।
आपको यह मानना होगा कि आपको कभी भी अपने पेरेंट्स पर अथवा हाउस हेल्प पर, दोस्तों पर या किसी भी अन्य परिवार के संबंधी पर चिल्लाना नहीं चाहिए। वह भी तब, जबकि वह लोग आपकी इस परिस्थिति में से निकलने में मदद कर रहे हों।
याददाश्त से जुड़ी जिस समस्या का आपके माता-पिता सामना कर रहे हैं, वह एक उम्र बढ़ने के साथ-साथ आम समस्या है। लेकिन, आपको यह अवश्य समझना होगा कि आपको कब शांत तथा जागरूक रहकर धैर्य के साथ इस परिस्थिति का मुकाबला करना है और आपको सही समय पर सही चिकित्सीय मदद कब लेनी है।