भोजन हर जीव-जंतु और मनुष्यों की बुनियादी जरूरत है और इससे ही हमारे शरीर के लिए उन सभी पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है, जो शरीर के विकास तथा रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन जब खाद्य पदार्थों में मिलावट (Food adulteration) होती है या वे अशुद्ध होते हैं, तो उनसे हमारे शरीर को सही ढंग से पोषण (Nutritional deficiency) नहीं मिल पाता और इसका कई तरह से असर शरीर पर पड़ता है। शायद आप नहीं जानती कि आपके घर आने वाली फल-सब्जियाें से लेकर दूध और घी तक बहुत कुछ मिलावटी है। और आपको गंभीर स्वास्थ्य जोखिम (Serious health risk) दे सकता है।
”मिलावट” एक कानूनी शब्दावली का हिस्सा है। जिसका आशय ऐसे खाद्य पदार्थ से होता है जो स्वास्थ्य या सुरक्षा संबंधी मानकों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA 1995, 2000) तथा यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर/सेफ्टी एंड इंस्पेक्शन सर्विस (USDA/FSIS 1999) द्वारा निर्धारित मानकों का अनुपालन नहीं करता।
खाद्य पदार्थों में मिलावट के चलते उनकी क्वालिटी पर असर पड़ता है। ऐसा अधिक मुनाफा कमाने या अन्य किसी कारणवश, उनमें किसी खाद्य तत्व को हटाकर या नकली पदार्थों को मिलाकर अथवा खाद्य सामग्री से किसी महत्वपूर्ण पदार्थ को निकालकर किया जाता है।
मिलावटी पदार्थ ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो हमारे भोजन या पेय पदार्थों में मिले होते हैं। उन्हें मंहगे पदार्थों की मात्रा बढ़ाने के लिए या फिर उत्पादन लागत में कमी लाने के लिए, अथवा किसी अन्य धोखाधड़ी या दुर्भावना के मकसद से मिलाया जाता है।
जानबूझकर या अनजाने में। इसके अलावा एक तीसरी तरह की मिलावट घातक रसायनों की मिलावट होती है।
खाद्य पदार्थों में जानबूझकर मिलावट का कारण उनके स्वरूप, फ्लेवर, टैक्सचर या स्टोरेज गुणों को बढ़ाना होता है। इन्हें मोटे तौर पर फूड एडिटिव्स कहा जाता है। इसके लिए कुछ ऐसे घटिया पदार्थों की मिलावट की जाती है, जो उन पदार्थों से मिलते-जुलते होते हैं। जिनमें इन्हें मिलाया जाता है।
इस तरह, इनका पता लगाना मुश्किल होता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए कई प्रकार के रसायनों जैसे यूरिया, मेलामाइन और अन्य पदार्थों जैसे कि स्टार्च, आटा, गन्ने की खांड, वनस्पति तेल, पानी, स्किम मिल्क, रेत, चॉक पाउडर, शीरा या गुड़, पत्थर, ईंट का चूरा, अरगट, चिकोरी, भुना हुआ जौं चूर्ण, पपीते के पिसे बीज आदि का इस्तेमाल आमतौर पर किया जाता है।
अनजाने में हुई खाद्य मिलावट में कीटनाशकों और ग्रोथ प्रमोटर्स का प्रयोग, पैकेजिंग सामग्री के तत्वों, सॉल्वेंट्स और फूड प्रोसेसिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले एंज़ाइम्स आदि शामिल हैं। सबसे ज्यादा जिस मिलावटी सामग्री का प्रयोग होता है, उसमें कीटनाशक, डी.डी.टी. तथा वनस्पति उत्पादों में मौजूद बचे-खुचे तत्व प्रमुख हैं।
खाद्य पदार्थों में मिलावट का एक और कारण धात्विक मिलावट है। जिसके चलते कीटनाशकों से आर्सनिक जैसी भारी धातुएं, पानी से लैड (सीसा), औद्योगिक अपशिष्टों से मर्करी, कैडमियम और क्रोमियम, कैन्स से टिन जैसी धातुएं शामिल हैं।
खाद्य पदार्थों में मौजूद मिलावटी वस्तुओं की प्रकृति या भौतिक गुणों के आधार पर मिलावट कई प्रकार की होती है:
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कस्टमाइज़ करें(i) अलग की जा सकने योग्य (सेप्रेबल) – इसमें ऐसे तत्वों/सामग्री की मिलावट की जाती है, जिन्हें पता लगने पर अलग किया जा सकता है।
(ii) अलग न की जा सकने योग्य (इनसेप्रेबल) – इसमें ऐसे तरल पदार्थों या मिलावटी वस्तुओं का प्रयोग किया गया होता है, जो अलग नहीं की जा सकतीं।
आज के दौर में लगभग सभी तरह के खाद्य पदार्थों में किसी न किसी प्रकार की मिलावट की जाती है। जब जानबूझकर सोच-समझकर मिलावट की जाती है, तो प्राय: वह आसानी से पकड़ में नहीं आती या इसे रंग अथवा टैक्सचर की मदद से बखूबी छिपा दिया जाता है।
ऐसी मिलावट स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसानदायक होती है। इनमें से कई से कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। कुछ सामान्य किस्म के खाद्य पदार्थ जिनमें मिलावट की जाती है, वे इस प्रकार हैं:
भारत में दूध में पानी मिलाकर या फिर दूध से उपयोगी चिकनाई हटाकर मिलावट की जाती है। इसके अलावा, अक्सर सोया मिल्क, स्टार्च, मूंगफली का दूध या गेहूं के आटे को भी दूध में मिलाया जाता है। जिसके चलते दूध कम पौष्टिक होता है।
साथ ही, दूध में डिटर्जेंट, चिकनाई या यूरिया आदि भी मिलाया जाता है। घी में अक्सर हाइड्रोजेनेटेड ऑयल और जानवरों की चर्बी, सिंथेटिक रंगों तथा फ्लेवर्स आदि मिलाकर मिलावट की जाती है। जो दिखने में तो घी जैसे लगते हैं, लेकिन असल में घी की क्वालिटी खराब करते हैं।
अनाज में मिलावट करने के लिए रेत या पत्थरों को पीसकर मिलाया जाता है या फिर अनाज का वज़न बढ़ाने के लिए उन पर पानी का छिड़काव किया जाता है। अनाज और दालों में उनसे मिलते-जुलते रंगों और आकार के प्लास्टिक के बीज मिलाए जाते हैं।
इसके लिए फलों को पकाने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है और इन फलों को कैल्शियम कार्बाइड से पकाया जाता है। इसी तरह, मछलियों को ताज़ा दिखाने के लिए फॉर्मेलिन का प्रयोग होता है।
लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कैल्शियम कार्बाइड तथा फॉर्मेलिन रसायन कैंसरकारी होते हैं। तरबूज, मटर, शिमला मिर्च, बैंगन का रंग निखारने के लिए इंजेक्शन से डाइ भरी जाती है। काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाए जाते हैं, जिससे इनके रंग और फ्लेवर्स बढ़ाए जाते हैं।
हमारे दैनिक खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल की जाने वाले अन्य मिलावटी वस्तुओं में मिर्च पाउडर में ईंट का चूरा, चाय पत्ती में इस्तेमाल हो चुकी चाय की पत्तियां, घी में वनस्पति तेल, अनाज में अरगट की मिलावट, आटे में चॉक पाउडर, कॉफी में चिकोरी, काली मिर्च में पपीते के बीज, कॉफी में इमली के बीज का चूर्ण, हल्दी और धनिया पाउडर में वुडपाउडर आम है।
इसी तरह, बच्चों की कैंडीज़ को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए उनमें अक्सर लैड (सीसा), कॉपर (तांबा) या मर्करी (पारा) सॉल्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है।
खाद्य पदार्थों की मिलावट का बुरा प्रभाव डायरिया, पेट दर्द, मितली, उल्टी, आंखों की समस्या, सिर दर्द, कैंसर, खून की कमी, नींद न आना, लकवा और मस्तिष्क को क्षति, पेट के विकार, जोड़ों के दर्द, लिवर विकार, ड्रॉप्सी, आंत्रशोधीय समस्याओं, श्वसन संबंधी परेशानियों, ईडिमा, कार्डियाक अरेस्ट, ग्लूकोमा, गुर्दों में खराबी, पाचन तंत्र के विकारों आदि के रूप में सामने आते हैं।
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