लॉकडाउन में बढ़ने लगा है परिवार में तनाव, एक्‍सपर्ट बता रहे हैं कैसे संभाले परिवार की मेंटल हेल्थ

कोरोना जैसी महामारी ने हमारी जिंदगी को पटरी से उतार दिया है। स्वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाले इसके हानिकारक परिणामों को कौन नहीं जानता। पर इसके साथ ही मन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले इसके घातक परिणामाेें का भी आपको मुकाबला करना है।
अकेलापन वैचारिक उथल-पुथल को जन्‍म देता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 11 Oct 2023, 16:45 pm IST
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क्या पिछले कुछ दिनों में आप यह महसूस कर रहीं हैं कि घर में छोटी-छोटी बातों पर तनाव होने लगा है? यह परिवारों में पनप रहे मेंटल स्ट्रेस के कारण है। इस समय आपको ज्यादा समझदारी और धैर्य की जरूरत है। इस तनाव का सामना करने वाले आप अकेले नहीं हैं। इन दिनों ज्यादातर परिवारों में मेंटल हेल्थ इश्यू देखने में आ रहे हैं। एक्सपर्ट बता रहे हैं कि लॉकडाउन में मेंटल हेल्थ को संभालने के लिए आपको क्या‍ करना है।

लॉकडाउन के कारण सब कुछ यूं रुक जाना आपकी चिंता का कारण है? आपका अपने ही परिवार वालों के साथ रहना आपको अब मुश्किल लगने लगा है। क्या आपको ज्यादा गुस्सा आता है। चिंता मत कीजिए!

इतने लंबे समय से हम इस लॉकडाउन का सामना कर रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी ने हमारी जिंदगी को पटरी से उतार दिया है। स्वाास्य्को पर पड़ने वाले इसके हानिकारक परिणामों को कौन नहीं जानता। पर मन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले इसके घातक परिणामों के बारे में चर्चा कम होती है।

एंग्जायटी एक गंभीर समस्या बन सकती है, इसे हल्के में ना लें। चित्र: शटरस्‍टॉक

इस महामारी के हानिकारक परिणाम हर तबके और हर उम्र के लोगों पर साफ़ नज़र आ रहे हैं। सभी मानसिक अवसाद से गुज़र रहे हैं। चाहे इनमें बुज़ुर्ग हों, विद्यार्थी हों अथवा महिलाएं, बच्चे हों या पुरुष कोई भी इसकी चपेट में आने से नहीं बच पाया।

छात्रों के तनाव का कारण है अनिश्चित भविष्य

जब लॉकडाउन शुरु हुआ तब बहुत से बच्चे अपनी शिक्षा के महत्त्वपूर्ण चरण से गुज़र रहे थे। किसी का बोर्ड था, तो कोई बमुश्किल अपनी स्कूल फीस जुटा अपनी शिक्षा पूरी करना चाहता था। जो बच्चे अपने वार्षिक सत्र के मध्य में थे, अब उन्हें भविष्य ही अंधकारमय लगता होगा। इस सब के बीच ई-लर्निंग पर निर्भर होकर दुबारा से शुरुआत करना कठिन होगा।

ई-लर्निंग की प्रक्रिया और विधा से जूझती नवीं कक्षा कि अलीशा सिद्दीकी ने अपने अनुभव सांझा किये, “इंटरनेट के जरिए पढ़ाई उलझन भरा काम है। कई बार मैं क्लास मिस कर जाती हूं। ये सब मुझे बहुत दुःख देता है, अगले वर्ष मेरे बोर्ड हैं। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूंगी” ?

जबकि कुछ लोग बोर्ड की परीक्षा से निकल चुके हैं, एंट्रेंस एग्जाम का इंतज़ार कर रहे हैं।

कुछ बहुत महत्वपूर्ण परीक्षाएं, जिनमें NEET और JEE भी शामिल हैं, स्थगित हो गईं हैं। 2020 के सभी एंट्रेंस एग्जाम स्थगित हो गए। इन परीक्षाओं को देने के लिए काफी बड़ी संख्या में बच्चे फॉर्म भरते हैं। लेकिन अब तो नए एप्लीकेशन फॉर्म भी नहीं लिए जा रहे।

विद्यार्थियों की इसी कश्मकश और वेदना का प्रभाव उन पर पड़ने वाले मानसिक दबाव की तरह देखा जा सकता है।

चिकित्सा और इंजीनियरिंग में जाने की इच्छुक, याशिका सिंह कहती हैं, “मैं कैरियर की दहलीज पर हूं और मुझे अपना भविष्‍य नजर नहीं आ रहा। मुझे नहीं पता कि ये परीक्षा कब होगी और क्या मुझे अन्य विकल्पों की खोज के लिए समय मिलेगा। मैं गंभीर तनाव में हूं और मेरे माता-पिता भी। ”

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छात्रों के मानसिक तनाव को कम कैसे किया जा सकता है?

भारतीय स्वास्थ्य प्रबंधन अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष, डॉ. पंकज गुप्ता ने कहा, “छात्रों को वास्तविकता को स्वीकार करने और तनाव का प्रबंधन करने के लिए परामर्श दिया जाना चाहिए। खासकर उन चीज़ों के लिए जो उनके नियंत्रण में नही हैं।

डॉ. गुप्ता आगे कहते हैं, “माता-पिता, अभिभावक और शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों के साथ परामर्श सत्र शुरू करना चाहिए। ताकि तनाव का स्तर कम हो सके।”

बुज़ुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य भी डिस्टर्ब हुआ है

पिछले दो महीनो से लॉकडाउन के चलते वरिष्ठ नागरिकों में मानसिक तनाव की दर बढ़ गई है। हालांकि इसकी शुरुआत में कहा गया था कि यह फैमिली के साथ बिताया गया क्वालिटी टाइम होगा। पर धीरे- धीरे यह समय आपसी मतभेदों और तनाव का जरिया बन गया।

बुजुर्गों को मानसिक तनाव से बचाने के लिए उनके साथ समय बिताएं। चित्र: शटरस्‍टॉक

शीला श्रीवास्तव, एक मां जो लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अपने दो बेटों के साथ रह रही है, कहा, “जब परिवार शुरुआत में एक साथ आया, तो उत्साह था और सभी ने एक साथ रहने का आनंद लिया। लेकिन अब हम एक-दूसरे को बुरे लग रहे हैं। बच्चे हमारे साथ को बोझ की तरह महसूस करते हैं और पोतों को अब हमारी कंपनी अच्छी नहीं लगती। अब हम उस एकांत को याद कर रहे हैं जो हमारे पास पहले था।”

शीला की तरह ही क्या हमारे माता-पिता या दादा-दादी भी चिंता, नींद न आना, भूख न लगना और शारीरिक गतिविधियों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे होंगे? शीला और उनके पति ने हाल ही में आशंकित, क्रोधित और चिंतित महसूस किया है।

अगर आप भी इन सब बातों से जुड़ा महसूस करतें है, तो अपने अंदर झांक कर देखिये और ज़रा माता-पिता या दादा-दादी से उनकी फीलिंग्स बाटियें।

वरिष्ठ नागरिकों और उनके समाधानों की विभिन्न चुनौतियों के बारे में बताते हुए, CHAI Kreative और रिटर्न ऑफ़ मिलियन स्माइल्स के निदेशक, केवल कपूर ने कहा, “वरिष्ठ नागरिक अपने पोते-पोतियों द्वारा अनदेखा महसूस करते हैं, वे अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटर के साथ व्यस्त रहते हैं। वित्तीय निर्भरता भी इसका एक कारण हो सकती है।

सरकार को वरिष्ठों की सहायता करने और उनके लिए विशिष्ट रियायतों की घोषणा करने के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन शुरू करनी चाहिए।”

लॉकडाउन के दौरान महिलाओं कि चुनौतियां

इस तालाबंदी ने लगभग सभी के काम को धीमा कर दिया है। शुरू-शुरू में लगा कि महिलाओं को इससे आराम मिलेगा। रोज़ भागदौड़ से छुट्टी मिलेगी, नहीं बल्कि गृहणियों का तो पहले मुकाबले ज्या दा काम करना पड़ रहा है।

गृहणियों के आंतरिक संघर्ष के बारे में जानकारी देते हुए, एक युवा गृहणी रूचि खन्ना ने बताया, “शुरू में, यह एक आदर्श स्थिति थी, जहां परिवार वाले अपना समय एक साथ बिता रहे थे। मैं उनके लिए खाना बना रही थी क्योंकि घरेलू मदद अनुपस्थित थी। लेकिन अब, मेरे पति काम पर वापस चले गए हैं और बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में व्यस्त हैं।

मेरे ससुराल वाले अस्वस्थ हैं। मैं अकेले ही घर का सारा काम करती हूं। किसी के पास मदद के लिए समय नहीं है। मैं अत्यधिक बोझ महसूस कर रही हूं और अब बेहद तनाव में हूं। ”

जो महिलाएं कर रही हैं घर से काम

इस महामारी के दौरान काम और घर के बीच की लड़ाई में पिसती महिलाएं, दोहरी चुनौती का सामना कर रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, प्रकृति पोद्दार ने बताया, “जिनके पास नौकरी है और जो घर से काम कर रही हैं, उन्हें अलग-अलग चुनौतियों के साथ विभिन्न लोगों के साथ सामजंस्य बिठाने में काफी दिक्कत आ रही है।

महिलाओं को घर और ऑफि‍स दोनों के काम करने पड़ रहे हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

काम चाहे घर का हो या दफ्तर का, उन्हें करते समय अलग-अलग मुश्किल हो रही है। कई महिलाओं को अपने परिवार के जीवन यापन के लिए दोनों मोर्चो पर खड़ा रहना भी ज़रुरी है। जिसके कारण, अक्सर गुस्से का ऊबाल फूट पड़ता है। हाल फिलहाल में ऐसे कई केस रिपोर्ट भी हुए हैं। ”

हम इसका हल कैसे करें ?

हम एक महामारी का सामना कर रहे हैं और उसका अभिन्न अंग है यह मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष। इस बात को हमें स्वीकार कर लेना चाहिए।

“मौजूदा स्थिति में, तनाव जरुरी हो गया है और अधिक जटिल भी। हर कोई चिंता का अनुभव कर रहा है। ” पोद्दार कहतीं हैं, “हम सभी को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए और जब भी हमे ज़रुरत हो, मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबरों पर मदद मांगने से कभी भी परहेज नहीं करना चाहिए”।

स्थिति कठिन है और इसे रोकने के लिए अपनाए गए उपाय, जैसे कि यह सख्त लॉकडाउन, किसी के भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इस परिस्थिति में सकारात्मक रहने का सबसे अच्छा तरीका, नियमित रूप से प्रियजनों के साथ बिताया अच्छा समय है।

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