हमारी एक दोस्त कविता ग्रेजुएशन के दौरान ही कुछ अजीब तरीके से व्यवहार करने लगी थीं। आए दिन उसका ग्रुप में किसी न किसी से झगड़ा हो जाता था। कई बार ऐसा भी होता कि सुबह को किया गया झगड़ा या हिंसक व्यवहार दोपहर तक बिल्कुल सामान्य हो जाता। क्लास में भी उसका ध्यान लेक्चर पर नहीं होता था और वह अकसर खोई-खोई रहती थी। धीरे-धीरे क्लास के सभी लड़के-लड़कियां उससे अलग होते चले गए। बल्कि कई बार तो ऐसा महसूस होता था कि वह खुद ही सबसे दूर हो जाना चाहती है। और अंतत: उसने कॉलेज आना भी छोड़ दिया।
अब जब बहुत सालों बाद हम सब दोबारा मिले, तो मालूम हुआ कि उसे सिज़ाेफ्रेनिया हो गया है। अपनी मां के देहांत के बाद से ही उसका व्यवहार बदलने लगा था। यह जानकर हमें न केवल दुख हुआ, बल्कि यह अहसास भी हुआ कि हम इस मानसिक बीमारी से कितने अनजान थे। काश कि हमें उस समय इसके बारे में पता होता, तो उसके प्रारंभिक दौर में ही हम अपनी दोस्त कविता की मदद कर पाते। आज वर्ल्ड सिज़ाेफ्रेनिया डे (world schizophrenia day 2022) पर यह जरूरी है कि हम इस बीमारी के बारे में खुद को और औरों को भी जागरुक करें। ताकि कोई और कविता इस तरह कॉलेज और समाज से गायब न हो जाए।
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यह दिन फ्रांस के फिजिशियन व मनोचिकित्सा के अग्रदूत डॉ फिलिप पिनेल को बतौर सम्मान देने के लिए 24 मई को विश्व भर में मनाया जाता है। दरअसल जुलोजिस्ट व फिजिशियन पिनेल मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की देखभाल और इलाज देने वाले एक बेहद खास शख्सियत के रुप में उभरे थे।
सिज़ोफ्रेनिया एक अजीबोगरीब मानसिक बीमारी है, जिसमें मरीज के समझने की क्षमता में कमी यानी स्प्लिट पर्सनैलिटी दिखाई देती है। लोगों में इस गंभीर मेंटल डिसआर्डर को लेकर जागरुकता फैलाने के मकसद से हर साल आज के दिन विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। इसमें विभिन्न स्वास्थ्य व सामाजिक संंगठन हिस्सा लेते हैं।
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सिज़ोफ्रेनिया एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसका न केवल रोगी पर, बल्कि पूरे परिवार पर असर पड़ता है। वैशाली स्थित मैक्स हॉस्पिटल की कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ दीपिका वर्मा बताती हैं कि सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक स्थिति है, जो दिमाग के सामान्य कामकाज को प्रभावित करती है। यह किसी व्यक्ति के महसूस करने, काम करने और सोचने की क्षमता को भी बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है।
इस बीमारी के लक्षणों में मरीज आमतौर पर अजीब चीजों से डरने लगता है। वह भ्रम और तनाव की स्थिति में रहने लगता है। कई बार मरीज अपने जीवन से बहुत अधिक निराश और हताश भी रहने लगता है। जिससे उसमें खास चीजों के प्रति भी कोई दिलचस्पी न रह जाने, प्रेरणा की कमी, भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त न कर पाने, अव्यवस्थित तरीके से बोलने, अव्यवस्थित व्यवहार, सामाजिक आयोजनों से अलगाव और भावनाओं में लगातार बदलाव जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।
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वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, अभी तक सिज़ोफ्रेनिया के सही कारणों का पता नहीं चल सका है। माना जाता है कि सिज़ोफ्रेनिया आनुवांशिक जीन और कई पर्यावरणीय फैक्टर के बीच आपसी इंट्रैक्शन के कारण हो सकता है। इसके आलावा सिज़ोफ्रेनिया के लिए मानसिक और सामाजिक फैक्टर भी जिम्मेदार हो सकते हैं। कुछ शोधों में भांग के अत्यधिक इस्तेमाल को भी सिज़ोफ्रेनिया का जोखिमकारक बताया गया है।
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कस्टमाइज़ करेंब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस डिपार्टमेंट की राय भी यही है कि सिज़ोफ्रेनिया के लिए जिम्मेदार सटीक कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। पर कुछ चीजें हैं जो इसे ट्रिगर कर सकती हैं या स्थिति को और भी जटिल बना सकती हैं। शोध बताते हैं कि ये कारक पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक भी हो सकते हैं।
इनमें किसी रिश्ते का दुखांत जैसे किसी की मृत्यु या तलाक हो जाना, जॉब से हटाए जाने पर आर्थिक समस्याएं पैदा होना, शारीरिक शोषण या यौन शोषण की घटनाएं, किसी कारणवश भावनात्मक ठेस लगना भी सिज़ोफ्रेनिया को ट्रिगर कर सकता है।
कुछ लोग तनाव कम करने के लिए ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं। जबकि इनकी ओवरडोज़ या इन पर लंबे समय तक होने वाली निर्भरता भी सिज़ोफ्रेनिया के जोखिम को बढ़ा सकती है। इनमें सबसे ज्यादा जोखिम भांग और कोकीन जैसे नशों के कारण रहता है।
जेनेटिक कारणों में उन लोगों में सिजोफ्रेनिया का जोखिम ज्यादा होता है, जिनके परिवार में इसका पहले से इतिहास रहा हो। वहीं जन्म के समय कम वजन होना भी इसके खतरे को बढ़ा सकता है। इसकी वजह उनकी दिमागी संरचना में आए परिवर्तन को माना जाता है। शोध में पाया गया है कि डोपामाइन और सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर के स्तर में गड़बड़ी के कारण भी सिज़ोफ्रेनिया की शिकायत हो सकती है।
सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इसलिए अगर आपके परिवार या मित्रों में से किसी में भी इसके हल्के लक्षण होने पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है। डॉ दीपिका वर्मा कहती हैं, “इस बीमारी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। इस समस्या से जूझ रहे मरीजो का समय पर उपचार न कराया जाए, तो उनमें कई और गंभीर जटिलताएं देखने को मिल सकती हैं। कभी-कभी सिज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त मरीज आत्मघाती कदम भी उठा सकते हैं।”
डॉ दीपिका वर्मा बताती हैं कि सिज़ोफ्रेनिया के उपचार में आमतौर पर दवा, थेरेपी और स्व-प्रबंधन तीनों की जरुरत होती है। जबकि ज्यादातर मानसिक डिसआर्डर के उपचार में थेरेपी कारगर होती है। असल में सिज़ोफ्रेनिया को नियंत्रित करने के लिए थेरेपी के साथ-साथ दवाओं की भी जरुरत पड़ती है। जितनी जल्दी इस बीमारी की पहचान हो पाएगी, उसका उपचार उतना ही आसान होगा। पर उपचार से ज्यादा इसमें परिवार के सदस्यों और दोस्तों का समर्थन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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