10वीं क्लास में पढ़ने वाली 15 साल की आलिया को सुईं (Vaccine fear) लगवाने से डर लगता था। जनवरी माह में जब उसके स्कूल में कोविड टीकाकरण का दिन था और उसके टीका लगवाने की बारी आई तो वह जोर-जोर से रोने लगी। आलिया जैसे ही कितने बच्चे हैं जिन्हे सुईं लगवाने से डर लगता है। यह तो एक कारण हुआ कि बच्चे कोविड का टीका (Covid-19 vaccine hesitation in kids) लगवाने से डर और झिझक रहे हैं, लेकिन ऐसे और बहुत से कारण है जो किशोरों में कोविड टीकाकरण के अपटेक में रोड़ा बने हुए हैं। महामारी को कमजोर करने और उसके खात्मे कि दिशा में बढ़ने के लिए इन सभी को दूर किया जाना बहुत जरूरी है।
देश में 12 से 18 साल के बच्चों की आबादी लगभग 15 करोड़ है। 12 से 14 साल के 7.5 करोड़ बच्चों में से 3.17 करोड़ बच्चों को पहली डोज़ व 1.2 करोड़ बच्चों को ही दोनों डोज़ लगी हैं। कोविड-19 टीकाकरण के लिए सरकार का मुख्य टारगेट स्कूल जाने वाले बच्चे हैं, लेकिन जो बच्चे स्कूल ड्राप आउट है, सड़कों पर रहने वाले और लेबर करने वाले बच्चे हैं उन तक टीकाकरण की पहुंच अब भी नहीं है और वो मेन टारगेट में भी नहीं है।
ऐसे में कोविड-19 टीकाकरण को लेकर झिझक और स्कूल नहीं जाने वाले व सड़कों पर रहने वाले या मजदूरी करने वाले बच्चों तक पहुंच नहीं होने से कोविड टीकाकरण का अपटेक बढ़ाने में देरी हो सकती है। जबकि साक्ष्य बताते हैं कि कोविड-19 टीकाकरण से कोविड के प्रसार, गंभीरता व कोविड होने पर अस्पताल में भर्ती होने की संभावनाएं कम की जा सकती हैं।
आने वाले समय में कोविड के प्रसार व गंभीरता को कम करने के लिए, सरकार को सरकारी स्कूलों वाले बच्चों के साथ ही प्रावेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे, स्कूल नहीं जाने वाले और सड़कों पर रहने वाले या मजदूरी करने वाले बच्चों को भी प्राथमिकता देते हुए कोविड का टीककारण करवाने पर जोर देना होगा। साथ ही बच्चों में कोविड टीकाकरण को लेकर झिझक कम करने के लिए जागरूकता अभियान को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।
यदि परिवार में बढ़े लोग टीका नहीं लगवा रहे या उनके दोस्त टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं हैं, तो अपने परिवार और दोस्तों को देखकर बच्चे और युवा भी टीका लगवाने से झिझकते हैं।
इसी तरह की झिझक और डर के चलते 15 से 18 साल की उम्र के बच्चों में कोविड टीकाकरण की दोनों डोज़ का कवरेज 50 प्रतिशत से भी कम है। बच्चों और किशोरों में आमतौर पर वयस्कों की तुलना में कोविड संक्रमण के कम और हल्के लक्षण प्रदर्शित हुऐ हैं। साथ ही वयस्को की तुलना में कोविड-19 की गंभीरता के मामले भी कम ही रहे हैं। हल्के और कम लक्षणों के कारण कोविड-19 होने पर भी बच्चों और किशोरों के कोविड टेस्ट कम होते हैं और मामलों की रिपोर्ट भी अधिक नहीं हो रही है। लेकिन यदि बच्चों में कोविड होता है तो उनमें लंबे समय तक उसके लक्षण रह सकते हैं और वे अन्य लोगों में कोविड का प्रसार कर सकते हैं।
भ्रम 1 : माहवारी के दौरान टीका नहीं लगवाना चाहिए।
सत्यता : माहवारी पर टीके का कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है
भ्रम 2 : खून का थक्का जम जाता है।
सत्यता : इस तरह के मामले अभी तक देखने को नहीं मिले हैं।
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कस्टमाइज़ करेंभ्रम 3 : टीके लगवाने पर बुखार आता है।
सत्यता : कुछ लोगों को बुखार आया है लेकिन वो जल्दी ख़त्म भी हो गया।
भ्रम 4 : बहुत कम बच्चों को ही तो कोविड होता है और इससे बच्चों को तो ज्यादा नुकसान भी नहीं है तो टीका लगवाने की क्या जरूरत है।
सत्यता : बच्चों को भी कोविड हो सकता है और लंबे समय तक उसके लक्षण रह सकते हैं। साथ ही बच्चों को कोविड होने पर वह अन्य लोगों में कोविड का प्रसार कर सकते हैं। कोविड का प्रसार और गंभीरता रोकने के लिए सभी को टीका लगवाना जरूरी है। टीका लगवाने से कोई नुकसान नहीं है। टीकाकरण से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
भ्रम 5 : टीका लगने पर अब मास्क,अन्य सुरक्षा उपाय की जरुरत नहीं है।
सत्यता : टीके से संक्रमित होने की दर कम हो सकती है, लेकिन वायरस ख़त्म नहीं होता है। अतः सुरक्षा के सभी उपाय करें।
बच्चों और किशोरों को टीका लगाने के लाभ हैं जो प्रत्यक्ष स्वास्थ्य लाभों से परे हैं। उनके समग्र कल्याण, स्वास्थ्य और सुरक्षा के रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण है बच्चों और किशोरों को कोविड का टीका लगाने से सामाजिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है। इस महामारी के दौरान सभी स्कूली आयु वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा बनाए रखना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता होनी चाहिए।
स्कूल की उपस्थिति बच्चों के विकास और जीवन की संभावनाओं और अर्थव्यवस्था में माता-पिता की भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण है। स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों को टीका लगाने से स्कूल में संक्रमण की संख्या और क्वारंटाइन के कारण होने वाले पढ़ाई के नुकसान को कम किया जा सकता है।
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