लाइफस्टाइल में आने वाले बदलाव कैंसर की समस्या का कारण साबित होते हैं। इसके अलावा मोटापा, शराब का सेवन और अनुवाशिंकता भी इस समस्या को बढ़ा देती है। मगर सही समय पर इलाज मिलने पर इस समस्या को दूर किया जा सकता है। हाल ही में पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर नवजोत सिंह सिद्धु ने प्रेस कांफ्रेस कर दावा किया कि आसान घरेलू नुस्खों की मदद से उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धु कैंसर को मात दे पाई। आपको बताते चलें कि उनकी पत्नी मेटास्टेसिस कैंसर से जूझ रहीं थीं।
नवजोत सिंह सिद्धु ने बताया कि उनकी पत्नी नींबू, तुलसी, हल्दी, नीम की पत्तियों और सेब के सिरके का सेवन करके ठीक हुई है। इसके अलावा वो आंवला, अनार, चुकंदर और सीताफल का भी जूस पीती थी। उनकी इस बात से विवाद गहरा गया है और इसके चलते डॉक्टरों में रोष की स्थिति बनी हुई है। अब जानना ये है कि क्या वाकई हल्दी के सेवन से कैंसर (Can turmeric fight cancer) जैसी गंभीर बीमारी को हराया जा सकता है। आइए जानते हैं एक्सपर्ट से।
कैंसर रिसर्च यूके की रिपोर्ट के अनुसार हल्दी को इंडियन सैफरॉन, जियांग हुआंग, हरिद्रा और हल्दी के नाम से भी जाना जाता है। एशियाई देशों में उगाया जाना ये मसाला अदरक परिवार से संबंधित है और करी पाउडर में विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसका साइंटिफिक नेम करकुमा लोंगा है।
कैंसर सेल्स पर हुई रिसर्च में पाया गया कि करक्यूमिन में एंटी कैंसर प्रभाव होते हैं। इससे कैंसर कोशिकाओं को मारने और अधिक कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने में मदद करते है। फिलहाल मनुष्यों पर हुए किसी रिसर्च से ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता है जो इस बात को जाहिर करता हो कि हल्दी या करक्यूमिन कैंसर को रोकने या इलाज में मदद करती हो।
इसे दूध में पाउडर के समान मिलाकर या पानी में उबालकर पर सकते हैं। इसके अलावा पेस्ट के रूप में भी इसे आहार में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा हल्दी का ऑयल भी बाज़ार में उपलब्ध है।
इस बारे में आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ अंकुर तंवर बताते है कि हल्दी में एंटी कैंसरस और एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव पाए जाते है। इसके सेवन से इन रोगों का जोखिम कम हो सकता है। मगर कैंसर के इलाज के लिए पूर्ण रूप से हल्दी पर निर्भरता नहीं जताई जा सकती है। हल्दी में करक्यूमिन कंपाउड पाया जाता है। इससे शरीर का इम्यून सिस्टम बूस्ट होता है और मौसमी संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। इसका अधिक इस्तेमाल भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। नियमित रूप से सीमित मात्रा में इस्तेमाल करने से फायदा मिलता है।
साल 2013 में इंटरनेशनल लेबोरेटरी स्टडी के रिसर्च के अनुसार करक्यूमिन और कीमोथेरेपी के साथ संयुक्त उपचार के प्रभावों को देखा गया। इसके बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि संयुक्त उपचार अकेले कीमोथेरेपी से बेहतर साबित होता है। कई अन्य अध्ययनों के अनुसार हल्दी में मौजूद करक्यूमिन शरीर में आसानी से अवशोषित नहीं होता है। इससे यह उपचार के रूप में कम कारगर साबित होता है।
विशेषज्ञ इसका सीधा जवाब देते हैं, ‘नहीं’। एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल सोनीपत में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, ब्रेस्ट ऑन्कोलॉजी डॉ वैशाली ज़ामरे का कहना है कि हल्दी में पाए जाने वाले मुख्य यौगिकों में से एक है करक्यूमिन, जिसने कैंसर के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें मौजूद कंपाउंड में सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। यह कैंसर की कोशिकाओं के प्रसार को रोकने और एपोप्टोसिस या एंजियोजेनेसिस जैसे सेलुलर पाथवेज के माध्यम से कैंसर की रोकथाम में मदद करता है।
डॉ वैशाली कहती हैं कि हल्दी थकान और सूजन जैसे कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम कर सकती है। साथ ही रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है। मगर यह अकेले कैंसर सेल से मुकाबला नहीं कर सकती।
उदाहरण के लिए इसकी सूजनरोधी क्रिया कैंसर के उपचार के दौरान आमतौर पर महसूस होने वाले जोड़ों के दर्द या पाचन संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद करती है। इसके अतिरिक्त, करक्यूमिन अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण कैंसर उपचारों के कारण होने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव से स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा कर सकता है।
हल्दी शरीर के लिए फायदेमंद है, लेकिन यह अकेले उपचार का एक रूप नहीं है। इसकी जैव उपलब्धता आम तौर पर कम होती है। इस मसाले को काली मिर्च या हेल्दी वसा के साथ मिलाने से इसकी क्षमता में सुधार होता है। इन सप्लीमेंट्स को लेने से पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह लें। खासतौर पर अगर आप कैंसर का इलाज करवा रहे हैं। वहीं रोजमर्रा के खानपान में हल्दी का इस्तेमाल पूरी तरह से स्वस्थ और सुरक्षित है।
कैंसर एक घातक बीमारी है। सभी में इसके कुछ लक्षण कॉमन होते हैं और कुछ अलग। यही अंतर कारणों में भी है। पर इन दिनों गूगल करने और अपनी मर्जी से इलाज करने की आदत ने इसे और गंभीर बना दिया है। ज़ीरो स्टेज कैंसर हो या कैंसर का कोई भी चरण, आपको डॉक्टर से परामर्श कर, उचित उपचार ही लेना है।