कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में कई वैक्सीन आ चुकी हैं। दुनिया भर के देश इनका इस्तेमाल कर अपने देश के नागरिकों को कोविड से सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। पर अब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं। इनमें ज्यादातर के मन में टीके की प्रभावशीलता और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को लेकर आशंका है। अगर अभी तक आपके मन में भी ऐसा ही कुछ चल रहा है, तो आपके लिए इस विशेष रिपोर्ट को पढ़ना जरूरी है।
सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट इस तथ्य पर अड़े हुए हैं कि ये टीके “प्राकृतिक” नहीं हैं और इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर टीका लगवाने से झिझकने वाले लोगों में चिंता पैदा कर दी है।
इस विवाद पर से धूल हटाने के लिए आर्चा फॉक्स, द यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और चार्ल्स बॉन्ड, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में एक साझा संवाद रखा गया। जिसमें पिछली वैक्सीनों की कार्यप्रणाली और निर्माण के साथ ही कोविड वैक्सीन पर विस्तार से बात की गई।
आइए समझते हैं कि एमआरएनए टीकों के ‘कृत्रिम होने का क्या अर्थ है और ऐसा है तो भी क्यों कोई चिंता वाली बात नहीं है?
फाइजर और मॉडर्ना के एमआरएनए टीके हमारे कुछ बेहतरीन हथियारों में शामिल हैं। ये अत्यधिक प्रभावी हैं और दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनी सभी खुराकें ले ली हैं।
ये टीके सबसे पहले कृत्रिम रूप से तैयार किए जाते हैं, यानी ये एक जीवित कोशिका के बाहर बनाए जाते हैं।
लंबे समय से संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए हमारे शरीर को प्रशिक्षित करने के लिए कीटाणुओं का टीका लगाया जाता रहा है। मध्य 18वीं शताब्दी में एडवर्ड जेनर (चेचक का टीका विकसित करने वाले) के प्रसिद्ध प्रयोगों से पहले भी, चीनी और कुछ यूरोपीय समाज चेचक के खिलाफ प्रतिरक्षा के लिए गायों की छालों से मिली सामग्री का इस्तेमाल कर रहे थे।
20वीं सदी में टीका निर्माण के गति पकड़ने के वक्त कमजोर या असक्रिय विषाणुओं का इस्तेमाल किया जाता था। टीकों के लिए कई विषाणओं को मुर्गी के अंडों में विकसित किया जाता था। जो अंडों से एलर्जी वाले लोगों के लिए समस्या पैदा करता था।
कुछ नवीनतम टीके, जैसे एस्ट्राजेनेका का कोविड-19 टीका, बड़े किण्वन (फर्मेंटेशन) टैंकों में कोशिकाओं में विकसित किए जाता है। पुनः संयोजक प्रोटीन टीके, जैसे कि हेपेटाइटिस बी का टीका, बैक्टीरिया के अंदर बनाया जाता है, फिर उपयोग के लिए शुद्ध किया जाता है।
इसलिए अब हमारे पास विभिन्न प्रकार के टीकों की एक पूरी श्रृंखला है। हर टीके को अलग-अलग तरह से बनाया गया है, जो विभिन्न परिस्थितियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन सभी टीकों में समानता यह है कि वे एक जीवित कोशिका के अंदर उगाए जाते हैं। इसलिए इसे “प्राकृतिक” माना जा सकता है।
एमआरएनए के टीके पहले सिंथेटिक टीके हैं। एमआरएनए एक अस्थायी आनुवंशिक निर्देश है, जो हमारी कोशिकाओं को एक विशेष प्रोटीन बनाने के लिए कहता है। इसमें प्रोटीन के लिए आनुवंशिक कोड के साथ एक केंद्रीय भाग होता है और दोनों तरफ छोटे हिस्से होते हैं जो कोड की “पठनीयता” के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
एमआरएनए के टीके प्रतिक्रिया वाहिकाओं (बड़े कंटेनरों) में बनाए जाते हैं। इसमें पहले एमआरएनए बनाना शामिल होता है, फिर इसे तैलीय कोट में लपेटा जाता है।
इसके लिए, हम 1970 के दशक में खोजी गई विधियों का उपयोग करते हैं, जिसे “ट्रांसक्रिप्शन” के रूप में जाना जाता है। जहां एक डीएनए टेम्पलेट की प्रतिलिपि बनाई जाती है, जिससे आनुवंशिक अनुक्रम का एमआरएनए संस्करण बनता है। यह एमआरएनए निर्माण कुछ वैसा ही होता है जैसा हमारी कोशिकाएं जब अपना एमआरएनए बनाती हैं।
कृत्रिम या बनावटी की परिभाषा वह है जहां एक पदार्थ या यौगिक रासायनिक संश्लेषण द्वारा बनाया जाता है। विशेष रूप से एक प्राकृतिक पदार्थ की नकल करने के लिए।
यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि, रासायनिक दृष्टिकोण से, एक यौगिक समान रहता है, चाहे वह किसी कोशिका के अंदर किसी जीवित जीव द्वारा बनाया गया हो, या प्रयोगशाला में बनाया गया हो। यदि एक रसायन विशेषज्ञ एक यौगिक को संश्लेषित करता है, और एक जैव रसायनज्ञ उसी यौगिक को एक प्राकृतिक स्रोत से निकालता है, तो वे दोनों यौगिक एक समान ही होते हैं।
दरअसल, कोशिकाओं के बाहर एमआरएनए के टीके बनाने की क्षमता तकनीक की ताकतों में से एक है। विकसित होती कोशिकाओं, या वायरस की आवश्यकता को समाप्त करके, कुछ मायनों में यह टीके के उत्पादन को सरल करता है।
इसलिए अपने हेल्थ एक्सपर्ट पर भरोसा करें और कोविड-19 से बचाव के लिए वैक्सीन जरूर लें।
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