एक वक्त था जब हम टूथपेस्ट को कोलगेट और डिटर्जेंट पाउडर को सर्फ के नाम से ही जानते थे। पर धीरे-धीरे ढेर सारे ब्रांड्स के लोकप्रिय होने के बाद हमने अपनी समझ में बदलाव किया। मगर दवाओं के बारे में हम अभी दो दशक पुरानी मानसिकता के साथ चल रहे हैं। जबकि जेनेरिक दवाओं की समझ आपके लिए किसी भी बीमारी से निपटना ज्यादा आसान बना देती है।
अक्सर जब हम दवाइयां खरीदने जाते हैं तो हम दवाइयों के नाम से नहीं, बल्कि कंपनी के नाम से दवाइयां खरीद लेते हैं। डॉक्टर भी हमको कंपनी के नाम से ही दवाइयां लिखकर देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कंपनी के नाम से दवाइयां ज्यादातर आराम से मिल जाती हैं। जिन लोगों को दवाइयों के सॉल्ट के बारे में पता नहीं होता है, उन्हें दवाइयां खरीदने में दिक्कत नहीं होती। लेकिन कंपनी की दवाइयां काफी महंगी होती है।
जब बात दवाइयों के नाम ( फॉर्मूला ) की होती है, तो दवाइयों की कीमत काफी हद तक कम हो जाती है। इन दवाइयों को जेनेरिक मेडिसिन के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार भी इन दवाइयों को बढ़ावा देने के लिए योजना चला रही है, जिसे प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र के नाम से जाना जाता है। पीआईबी के अनुसार इन दवाइयों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और उसके तहत बने नियम, 1945 के निर्धारित मानकों का पालन करना आवश्यक है।
किसी भी बीमारी के इलाज को ढूंढते-ढूंढते तमाम रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन ( साल्ट ) तैयार किया जाता है, जिसे आसानी से उपलब्ध कराने के लिए दवाओं की शक्ल दी जाती है। दवा यानी सॉल्ट अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग नामों से बाजारों में महंगे और सस्ते दामों में बेचती हैं।
इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है।
कंपनी की दवाइयां और जेनेरिक दवाइयों के दामों में काफी अंतर होता है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के अनुसार जेनेरिक दवाइयों को कंपनी वाली दवाइयों के मुकाबले 70 प्रतिशत कम दामों में बेचा जाता है। कुछ दवाओं में ये आंकड़ा 90% तक पहुंच जाता है। जेनरिक दवाइयां कंपनी की दवाइयों से सस्ती इसलिए होती है, क्योंकि उसमें कंपनी का मुनाफा नहीं होता।
1 जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवाओं से काफी सस्ती होती हैं। इससे आप हर महीने अच्छी खासी कीमत बचा सकते हैं।
2 जेनेरिक दवाएं बनने के बाद सीधे खरीददार तक पहुंचती हैं।
3 सरकार इन दवाओं की कीमत खुद तय करती है।
4 जेनेरिक दवाओं का असर, डोज और इफेक्ट्स ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होते हैं।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने अक्टूबर 2016 में डॉक्टरों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट में एक संशोधन में सिफारिश की है कि प्रत्येक चिकित्सक को जेनेरिक नामों के साथ दवाएं लिखनी चाहिए। यह जेनेरिक दवाओं की बिक्री को बढ़ावा देगा। यदि आपका डॉक्टर कंपनी के नाम लिखकर दवा देता है, तो आप का हक बनता है कि आप डॉक्टर से जेनेरिक दवाओं का नाम लिखने को कहें।
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