कोविड-19 के उपचार में कई दवाओं और औषधियों पर लगातार शोध और अध्ययन जारी हैं। अब इसी श्रृंखला में ‘डेक्सामेथैसन’ का नाम लिया जा रहा है। खबर है कि भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अब इस दवा के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है।
विश्व के कई देशों में ‘डेक्सामेथैसन’ को लाइफ सेविंग दवा माना जा रहा है। जो कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में मृत्यु दर को कम करने में कामयाब हुई है। ऐसे में आपको जानना चाहिए कि क्या है यह दवा और यह कैसे काम करती है।
कोविड-19 के संक्रमण के उपचार के संबंध में दिन ब दिन बढ़ते चिकित्सीय ज्ञान के साथ कदमताल करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने संक्रमण के हल्के गंभीर से लेकर अधिक गंभीर मामलों में मिथाइलप्रेडीनिसोलोन के विकल्प के रूप में डेक्सामेथैसन के इस्तेमाल को हरी झंडी दे दी है।
मंत्रालय की ओर से जारी सूचना के अनुसार कोरोना संक्रमण के उपचार के क्लीनिकल प्रबंधन प्रोटोकॉल को अद्यतन करते हुए डेक्सामेथैसन के इस्तेमाल को मंजूरी दी गयी है। यह परिवर्तन विशेषज्ञों की रायशुमारी और उपचार में इसके लाभ के पयार्प्त सबूत मिलने पर किया गया है। इससे पहले 13 जून को प्रोटोकॉल अपडेट जारी किया गया था।
डेक्सामेथैसन एक ‘स्टेरायड’ है और इसका इस्तेमाल रोगप्रतिरोध तथा सूजन से संबंधित समस्याओं में किया जाता है। रिकवरी क्लीनिकल ट्रायल में कोविड-19 के मरीजों को यह दवा दी गयी।
इस ट्रायल में यह पाया गया कि गंभीर रूप से बीमार मरीजों को इससे लाभ पहुंचता है तथा वेंटिलटर पर मरीजों की मृत्युदर एक तिहाई और ऑक्सीजन थेरेपी के मरीजों की मृत्युदर करीब 2० प्रतिशत घट गयी। यह दवा जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) का हिस्सा है और आसानी से उपलब्ध है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपडेट प्रोटोकॉल की जानकारी दे दी है। ताकि इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की तैयारी की जा सके और कोरोना संक्रमितों पर आधिकारिक रूप से इसका इस्तेमाल हो सके।
अभी तक डेक्सामेथैसन (Dexamethasone) का इस्तेमाल एलर्जिक, गंभीर एलर्जिक रिएक्शन, श्वदन संबंधी रोग, कैंसर, रूमेटिक विकार, स्किन संबंधी समस्याओं, आई इंफेक्शन और नेफ्रोटिक सिंड्रोम के लिए किया जाता है।
यह दवा सूजन और लालिमा को कम करने के साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने में मददगार होती है। डेक्साकमेथैसन निम्न स्तर के कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स वाले रोगियों में स्टेरॉयड को हटा कर उन्हें ठीक करता है। जिसका निर्माण प्रायः शरीर में कुदरती रूप से होता है।
ब्रिटेन के विशेषज्ञ इस दवा को कोरोना के खिलाफ एक महत्वपूर्ण दवा मान रहे हैं। ब्रिटेन के संदर्भ में उनका मानना है कि अगर समय रहते इस दवा का इस्तेमाल किया जाता तो हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
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कस्टमाइज़ करेंकोरोना से संक्रमित ऐसे मरीज जिन्हें ऑक्सीजन की कमी के चलते वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है, वे कोरोना के सबसे गंभीर रोगी माने जाते हैं। यह दवा इन गंभीर रोगियों के उपचार में मददगार हो सकती है।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम ने अस्पतालों में भर्ती 2000 मरीज़ों को यह दवा दी। अध्ययन के लिए उन्होंने ऐसे 4000 मरीजों से उनकी तुलना की, जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी। अध्ययन में यह पाया गया कि इस दवा के दिए जाने के बाद वेंटिलेटर पर रखे गए मरीजों में मृत्यु का जोखिम 40 से 28 फीसदी तक कम हुआ। ऑक्सीेजन पर रखे गए मरीजों में यह प्रतिशत 25 से 20 फीसदी था।
इस टीम के मुख्य अध्ययनकर्ता प्रोफ़ेसर पीटर हॉर्बी इस दवा के इस्तेमाल के प्रति काफी उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि यह एकमात्र दवा है जिसने कोरोना वायरस से संक्रमितों की मृत्यु दर में कमी लाई है। यह एक बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है।”
डेक्सामेथैसन 1960 के दशक से ही भारत में गठिया और अस्थमा के इलाज में इस्तेमाल की जाती रही है। अभी तक इसके साइड इफैक्ट पर ज्यादा कुछ नहीं सामने आया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके इस्तेमाल के बाद मरीजों में मूड स्विंग का अहसास होता है। पर वह भी अस्थायी है।
(समाचार एजेंसी वार्ता के इनपुट के साथ)