मार्च के अंतिम सप्ताह में जब लॉकडाउन किया गया था, तब उसके पीछे यही मंशा थी कि कोविड-19 महामारी को बढ़ने से रोका जाए। कहीं न कहीं उन युवाओं के जीवन को भी इससे बचाना था जो इसकी चपेट में आ सकते थे। पर लॉकडाउन अपने साथ और बहुत सारी समस्याएं लेकर आया। अब एक नए अध्ययन में यह सामने आया है कि कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण युवाओं में अकेलापन और गुस्सा इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अब वे खुश होना ही भूल गए हैं।
योर दोस्त एक ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य मंच है। जो मानसिक स्वास्थ्य पर जागरुकता के लिए काम करता है। इसी मंच ने आठ हजार से अधिक युवाओं को अपने अध्ययन और सर्वेक्षण में शामिल किया। जिसमें पाया गया कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन में कॉलेज जाने वाले युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य मंच ‘योर दोस्त की तरफ से संचालित अध्ययन में पाया गया कि बुरी तरह प्रभावित लोगों का दूसरा तबका काम करने वाले पेशेवर लोग हैं। लॉकडाउन की शुरुआत में वे प्रभावित नहीं हुए लेकिन व्यग्रता, क्रोध और अकेलेपन की भावना से वे बुरी तरह प्रभावित हुए।
कोरोना वायरस लॉकडाउन की शुरुआत में किए गए सर्वेक्षण और फिर जून में ‘अनलॉक एक की शुरुआत में किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण कर इस अध्ययन के निष्कर्ष पर पहुंचा गया। इसमें ‘योर दोस्त’ मंच पर विशेषज्ञों के साथ व्यक्ति विशेष की बातचीत के आंकड़ों को भी शामिल किया गया।
अध्ययन के मुताबिक, प्रतिबंधों की शुरुआत में छात्रों के गुस्से और क्षोभ में छह फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई तथा अकेलेपन और बोरियत की भावना में 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
लॉकडाउन बढ़ने के साथ ही छात्र भावनात्मक रूप से बुरी तरह प्रभावित होते गए और उनकी भावनाओं में काफी गिरावट आई और खासकर उनके गुस्से, व्यग्रता, एकाकीपन, नाउम्मीदी में बढ़ोतरी हुई।
अध्ययन में दिखाया गया है कि विभिन्न श्रेणियों में उनकी भावनाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं।
कोरोना वायरस की शुरुआत में अध्ययन में हिस्सा लेने वाले छात्रों की खुशी की भावनाओं में एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई। बहरहाल, लॉकडाउन बढ़ने के साथ उनकी खुशी की भावनाएं 15 फीसदी तक कम हो गईं।
(भाषा के इनपुट के साथ)